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आज सुबह कुछ ऐसा देखा

बच्चों के ऊपर पढ़ाई का बोझ दिन-प्रति दिन बढ़ता जा रहा हैं, जिसकी वजह से उनका बचपन उनसे छिनता जा रहा हैं, जिसकी वजह से उनका शारीरिक विकास तो हो रहा है लेकिन समाजिक विकास रुक रहा है. अभिभावकों व स्कूल के शिक्षकों को ये ध्यान देना चाहिए कि छोटे-बच्चों पर इतना किताबों का बोझ डालें कि उनका बचपना उनसे छूट जाए और समय से पहले ही बढ़ें हो जाएं.

सावन कुमार
सावन कुमार
The burden of education on children.
The burden of education on children.

आज सुबह कुछ ऐसा देखा

सड़कों पर नन्हें-नन्हें बच्चों के

हाथों में बस्ता देखा.

कुछ नया नहीं,  कुछ अजीब नहीं

ज़िन्दगी के त्रिशंकु पर झूलता बचपन देखा.

कड़क की ठंड हो या हो धूप की तपिश

उन बस्तों के संग खेलते बचपन देखा.

कश्मकश में उलझे बच्चों के माथे पर ना

एक शिकन देखा, तेज़ी से स्कूल भागते बचपन देखा.

किताबों की बोझ से दबा हुआ

बेफिक्र एक बच्चा देखा,

आज सुबह कुछ ऐसा देखा.

होड़ मची है पढ़ने और पढ़ाने की

इस होड़ में बच्चों से उसका बचपन छिनते देखा.

आज कुछ ऐसा देखा...

शाम को बच्चों के हाथ में मोबाइल देखा

हां, सच में बच्चों को एक पल में ही बड़ा होते देखा.

पार्क में धमाचौकड़ी करने वालों बच्चों को गंभीर देखा है.

हां, हां मैने कुछ ऐसा...

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English Summary: The burden of education on children is increasing day by day Published on: 21 September 2023, 01:57 IST

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