मंदिर से न मस्ज़िद से
न गीता, कुरान से
क्यों अंजान हो धरा पर
जीना सीखो किसान से
सबको जीवन देकर उसकी
तुलना नहीं महान से
तप- तप कर जलकर भी वो
शीतल है जहांन से
वो मगन रहता है अपनी धुन में
घंमड से न अभिमान से
कैसे मानें सबको अपना
ये सीखो किसान से !
गिरीश पांण्डे, कृषि जागरण
Share your comments