कढ़ीपत्ता (मीठी नीम) आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी–बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसमें एंटीऑक्सिडेंट, एंटीमायोटिक, एंटीकार्सिनोजेनिक और हेपेटो-सुरक्षात्मक जैसे कई औषधीय गुण हैं. यह कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा, फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, लोहा, तांबे और खनिजों जैसे पोषक तत्वों में समृद्ध है. इसमें निकोटीनिक एसिड और विटामिन ए, बी, सी व ई, एमिनो एसिड, ग्लाइकोसाइड्स और फ्लेवोनोइड भी शामिल हैं. इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी होना बन्द होती है, पत्तों को पानी के साथ पीसकर छानकर पीने से खूनी दस्त और रक्तार्श मिटते हैं और पत्तों को चबाकर खाने से पेचिश मिटती है. इसके मूल के 2 तोला रस में अथवा उसके पत्तों के 4 तोला रस में 1 माशा इलायची दानों का चूर्ण डालकर पीने से मूत्रावरोध दूर होता है और पेशाब साफ आता है.
पत्तों को पीसकर लेप करने से अथवा उसकी पल्टिश करके बाँधने से जहरीले कीड़े के डंक से आई हुई सूजन और वेदना मिटती है. कढ़ीपत्ता का प्रतिदिन सेवन करने से मधुमेह और मोटापा कम होने में मदद मिलती है. इसको पीसकर छाछ में मिलाकर खाली पेट सेवन करने से कब्ज व पेटदर्द से छुटकारा मिलता है. इसकी कोमल पत्तियों को धीरे–धीरे चबाने से दस्त की शिकायत दूर हो जाती है व शहद के साथ सेवन करने से बवासीर में आराम मिलता है. इसकी पत्तियों के चूर्ण को कटे भागों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है. भुनी हुई पत्तियों के चूर्ण का उल्टी रोकने में इस्तेमाल किया जाता है. जल जाने व खरोंच लग जाने पर इसकी पत्तियों को पीसकर घाव पर बांधने से फायदा होता है. इसकी जड़ के रस का सेवन करने से गुर्दे से संबंधित दर्द में आराम मिलता है तथा तेल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, परफ्यूम वगैरह में किया जाता है. तेल का इस्तेमाल एंटीफंगल के रूप में भी किया जाता है. कढ़ी पत्ते में उच्च मात्रा में विटामिन ए होता है इसलिए दृष्टि के लिए अच्छा है. कढ़ीपत्ते इंसुलिन गतिविधि को प्रभावित करके रक्त शर्करा के स्तर को कम कर देते हैं.
कढ़ीपत्ता एक फैलने वाली झाड़ी है. इसका तना गहरे हरे से लेकर भूरे रंग का होता है जिसमें असंख्य बिन्दु बने होते है. मुख्य तने की परिधि लगभग 16 से.मी. होती है. पत्तियाँ 30 से.मी. लंबी होती है. साथ ही प्रत्येक पर 24 पत्रक होते है. पत्रक भाले के आकार के लगभग 4.9 से.मी. लंबे व लगभग 1.8 से.मी. चौड़े होते हैं. इसके डंठल की लम्बाई लगभग 0.5 से.मी. होती है. पुष्प 15 अप्रैल से प्रारम्भ होकर 15 मई तक समाप्त होते हैं जो सफेद कीप के आकार और मीठी सुगंध वाले होते है. एक पूर्ण खिले हुये फूल का औसत व्यास लगभग 1.12 से.मी. होता है. 15 मई के बाद मीठी नीम में फलन प्रारम्भ होती है. फल आयताकार लगभग 1.4-1.6 से.मी. लंबे, 1.0-1.2 से.मी. व्यास के होते हैं. इनका वजन लगभग 880 मिलीग्राम होता है. परिपक्व फलों की सतह बहुत चमकीली के साथ काले रंग की होती है. फलों की संख्या प्रति समूह 32-80 होती है. प्रत्येक फल में एक बीज होता है जो 11 मिमी लंबा और 8 मिमी व्यास का होता है. पौधा लगभग 2.5 मीटर ऊँचाई बढ़ता है.
पौधे उगाने के लिए ताजे बीजों को बोना चाहिए, सूखे या मुरझाये फलों में अंकुर-क्षमता नहीं होती. फल को या तो सम्पूर्ण रूप से या गूदा निकालकर बोना चाहिए. पौधे में जब पर्याप्त वानस्पतिक विकास हो जाये और शाखाओं में पत्तियाँ पूर्ण विकसित हो जाएँ तब तुड़ाई कर सकते हैं. वैसे तो आवश्यकता पड़ने पर इसकी पत्तियों को किसी भी समय तोडा जा सकता है. परिपक्व व बड़ी पत्तियों की तुड़ाई हाथ से करनी चाहिए. अविकसित पत्तियों की तुड़ाई न करें. ऐसी पत्तियों की तुड़ाई अगले चक्र में करें. तोड़ी गयी सभी संपूर्ण पत्तियों को इकट्ठा करके छायादार जगह में सुखा लें. पत्तियों को पलटते रहें जिससे की पत्तियां सड़ने न पायें अन्यथा उनकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. बाजार में ऐसी पत्तियों का उचित दाम भी नही मिल पाता और ऐसी पत्तियों से बनाएं चूर्ण में भी अन्य स्वस्थ पत्तियों से बनाये गये चूर्ण के बराबर खुशबू व गुणवत्ता नही होती है. पत्तियों की पैकेजिंग हेतु वायुरोधी थैले आदर्श व सर्वोत्तम माने जाते हैं. पत्तियों को पालीथीन या नायलाँन के थैलों में बाजार में भेजने के लिए पैक किया जाता है. पत्तियों को शुष्क स्थान में भंडारित करना चाहिए.
लेखक: डॉ॰ विपिन शर्मा; रसायन विशेषज्ञ
डॉ. हैपी देव शर्मा; प्राध्यापक शाक विज्ञान
दीपक शर्मा; शोधार्थी
डॉ॰ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय
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