बिहार के बेगुसराय में औषधीय पौधों की खेती की ओर काफी संख्या में किसान जागरूक होने लगे है और सतावार, मूसली, तुलसी आदि की खेती हो रही है. इसी कड़ी में छौहाड़ी प्रखंड स्तरीय अमृत वनौषधि उत्पादक कृषक हित समूह का गठन किया गया है. इसमें 15 सदस्यीय समूह में सर्वसम्मति से कुंदन कुमार चौधरी को सदस्य बनाया गया है.
समूह के सभी सदस्यों ने चार एकड़ में पीला सतावर को लगाने का फैसला किया है. सतावर उत्पादक किसान विमलेश कुमार चौधरी ने सतावर की कृषि तकनीक उत्पादन प्रसंस्करणऔर मार्केटिंग के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सतावर के सहारे प्रति एकड़ दो साल में छह से सात लाख रूपये की आय प्राप्त कर सकते है.
क्या होता है सतावर
सतावर एक औषधीय पौधों वाला पादप है. इसको शतावर, सतमूली आदि के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत और श्रीलंका पूरे हिमालय क्षेत्र में उगता है. इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त कांटेदार लता के रूप में एक से दो मीटर के रूप में लंबा होता है. इसकी जड़े गुच्छों के रूप में पाई जाती है. आज इसको विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. इसकी बेल 1 से 2 मीटर लंबा होती है जो कि हर तरह के जंगल में पाई जाती है. इसकी खेती को 2 हजार वर्षो से भी पहले किया जाता रहा है.
इसकी जो भी शाखाएं निकलती है उनके बाद वह पत्तियों का रूप धारण कर लेती है. औषधीय पौधा सतवार के बीज का अकुंरण करीब 60 से 70 प्रतिशत तक होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.पौधशाला को तैयार करते समय एक मीटर चौड़ी और दस मीटर लंबी क्यारी को बनाएं और उनसे कंकड़ पत्थर को निकाल दें. पौधशाला की एक भाग मिट्टी में तीन भाग गोबर की सड़ी खाद की मिला देनी चाहिए. नर्सरी क्यारी में 15 सेंमी की गहराई में बोकर उनको हल्की सी मिट्टी में दबा देना चाहिए. इसकी बुवाई के तुरंत बाद आपको सिंचाई कर लेनी चाहिए.
ठीक तरह से रोपाई की जरूरत
सतावर के लिए इस तरह के पौधों को चुनना चाहिए जिनमें छोटी-छोटी जड़े आपको दिखाई देती हो. अगस्त के महीने में जब पौधे 10 से 15 सेमी की ऊंचाई के हो जाते है तब उनको तैयार करके भूमि में 60 सेमी की दूरी पर 10 सेमी गहरी नालियों में रोप दिया जाता है.
सम्बन्धित खबर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें !
गांव में आसानी से प्राप्त होने वाली इस औषधि में कई गुण हैं...
यहां पौध से पौध की दूरी 60 सेमी तक रखी जाती है. फसल की खुदाई करते वक्त भूमिगत जड़ों के साथ छोटे-छोटे अंकुर भी प्राप्त हो जाते है. बाद में दोबारा से पौधा तैयार कर लिया जाता है.
Share your comments