कुटकी एक औषधिया पौधा होता है. यह बहुत ही कड़वा एवं बारहमासी बहुवर्षीय पौधा है और इसकी पत्तियां 5 से 10 सेंटीमीटर लम्बी और पैनी होती हैं. इसे कटुका, कुरु, कटवी, कटकी और कतूरोहिनी आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है. प्राचीन काल से ही इसका उपयोग औषधि बनाने के लिए किया जाता रहा है. इसकी खेती देश के विभिन्न राज्यों जैसे कि हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर की जाती है.
खेती करने की प्रक्रिया-
मिट्टी
इसकी बुवाई का सही समय नवंबर से लेकर जनवरी महीने के बीच का होता है. अल्पाइन क्षेत्रों में इसकी खेती मई के माह में की जाती है. रेतीली धार वाली मिट्टी की परतें इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं. कुटकी की खेती के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन को एक सप्ताह के लिए सौरीकरण के लिए खुला छोड़ा जाता है, जिससे मृदा की उर्वरक क्षमता अच्छी बनी रहे. कुटकी के उत्पादन के लिए एक एकड़ भूमि में लगभग 50,000 पौधों को लगाया जा सकता है.
पौधे की रोपाई
पौधों की रोपाई के लिए खाद की जरूरत होती है. एक एकड़ खेत में लगभग 60 से 70 क्विंटल खाद की आवश्यकता पड़ती है. खेती के दौरान कुछ अंतराल पर पौधों की निराई बराबर रूप से की जाती है और इस दौरान खेत में पर्याप्त नमी भी बनाए रखने की जरुरत होती है. इस पौधे को सौंफ और आलू के साथ भी उगाया जा सकता है.
फसल की कटाई
कुटकी के पौधे 3 से 5 महीने में पूरी तरह से परिपक्व हो जाते हैं. जमीन की ऊंचाई के हिसाब से इनकी प्रजनन की प्रक्रिया अलग-अलग होती है. अल्पाइन क्षेत्रों में पौधे सितंबर से अक्टूबर महीने के बीच ही पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं, जबकि कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह पौधे सितंबर माह के शुरू में परिपक्व होने लगते हैं. भारत देश में अधिकतर किसान कुटकी की कटाई सितंबर माह के शुरुआती दिनों में ही शुरू कर देते हैं.
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भंडारण
कुटकी के जड़ों को काफी अच्छे से सुखाया जाता है और नमी से बचाने के लिए इस जूट की थैलियों में सुरक्षित रखा जाता है. एक एकड़ जमीन में लगभग 400 से 600 किलोग्राम कुटकी का उत्पादन होता है. आपको बता दें कि कुटकी का जीवन चक्र तीन वर्षों का होता है, जिसमें इसके बीजों को पकने में लगभग 1 से 2 वर्ष का समय लग जाता है.
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