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वर्मी वॉश एक वरदान

खेती किसानी के लिए वर्मी वॉश वरदान साबित हो रहा है। खेतों और फसलों पर इसे छिड़कने से उत्पादन दोगुना हो जाता है। लत होने के साथ ही उस पर वर्मी वॉश का छिड़काव कर दिए जाने से निर्धारित समय से 15 दिन पहले ही लत में सब्जी उगने लगती है। यही नहीं फलन का समय समाप्त होने के बाद भी एक माह तक सब्जी फलती रहती है। यही नहीं, सब्जियों में कीट लगने भी भी संभावना नहीं रहती है। इसे तोड़ने के तीन-चार दिन बाद तक सब्जियां ताजी रहती हैं। उपज दोगुनी होती है। कद्दू, ककड़ी, नेनुआ, झिंगनी, खीरा, परवल आदि सब्जियों को अधिक फायदा पहुंचता है। खाद की नहीं होती जरूरतवर्मी वॉश के छिड़काव के बाद खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती है।

खेती किसानी के लिए वर्मी वॉश वरदान साबित हो रहा है। खेतों और फसलों पर इसे छिड़कने से उत्पादन दोगुना हो जाता है। लत होने के साथ ही उस पर वर्मी वॉश का छिड़काव कर दिए जाने से निर्धारित समय से 15 दिन पहले ही लत में सब्जी उगने लगती है। यही नहीं फलन का समय समाप्त होने के बाद भी एक माह तक सब्जी फलती रहती है। यही नहीं, सब्जियों में कीट लगने भी भी संभावना नहीं रहती है। इसे तोड़ने के तीन-चार दिन बाद तक सब्जियां ताजी रहती हैं। उपज दोगुनी होती है। कद्दू, ककड़ी, नेनुआ, झिंगनी, खीरा, परवल आदि सब्जियों को अधिक फायदा पहुंचता है। खाद की नहीं होती जरूरतवर्मी वॉश के छिड़काव के बाद खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती है। अन्य फसलों के लिए भी यह फायदेमंद है। इसके छिड़काव से मृत हो चुकी मिट्टी फिर से जिंदा हो जाती है। बड़े पैमाने पर होता है आम-लीची का उत्पादन

भागलपुर में आम, लीची और सब्जियों की खेती किसान बड़े पैमाने पर करते हैं। वर्मी वॉश के छिड़काव से सब्जियों की फसल के साथ-साथ आम और लीची के मंजर को भी फायदा पहुंचता है। इसके प्रयोग से पके हुए आम और लीची एक सप्ताह तक सड़ते भी नहीं हैं। बिहार स्टेट शीड एंड

आर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी (बासोका) के साथ जैविक प्रमाणिकरण पर काम कर रहे एलपी शाही कॉलेज पटना के प्रो. ध्रुव कुमार ने टेक्निकल रिसर्च सेंटर की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे वर्मी वॉश के फायदे और बनाने की विधि के साथ-साथ जैविक खेती और बाजार से संबंधित जानकारी भी दे रहे हैं। प्रो. ध्रुव नवगछिया के बिहपुर प्रखंड के अमरपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके सान्निध्य में बिहपुर के बभनगामा, समस्तीपुर के पोठिया, खगड़िया के मेहसोरी में किसानों के द्वारा वर्मी वॉश का प्रयोग किया जा रहा है। वे खुद 30 एकड़ में लगी आम और लीची के मंजर पर इसका प्रयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि उनकी लीची की मांग विदेशों में भी है। ध्रुव उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड में जैविक खेती पर काम करा चुके हैं। उनका कहना है कि अब 70 फीसद किसान वर्मी वॉश को जानने लगे हैं। वर्मी वॉश को 30 रुपये लीटर खरीदा जा सकता है। इसमें गोमूत्र मिला देने से यह कीटनाशक का भी काम करता है। इससे उपज तो दोगुनी होती ही है, पेड़-पौधों को भी नुकसान नहीं पहुंचता है।

कैसे बनता है वर्मी वॉश

एक ड्रम को चार-चार इंच के तीन लेयर में खड़ा किया जाता है। सबसे नीचे चार इंच का बड़ा पत्थर और उसके ऊपर छोटा तथा सबसे ऊपर सबसे छोटा पत्थर रखा जाता है। ड्रम में गोबर और कचरा भरकर पांच से सात दिन सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद उसमें केंचुआ डाला जाता है। ड्रम के ऊपर एक घड़े को टांग दिया जाता है। घड़े में पानी डाला जाता है और उसका पानी धीरे-धीरे ड्रम में गिरता है। पानी केचुआ और कंपोस्ट में घुलते हुए ट्यूब के माध्यम से ड्रम के नीचे लगे घड़े में गिरता है। यही वर्मी वॉश कहलाता है। जिसे छान लिया जाता है। जहां वर्मी वॉश तैयार होता है वहां धूप और रोशनी नहीं पड़नी चाहिए। वर्मी वॉश में भी उपयोग के पहले धूप नहीं लगनी चाहिए। केचुआ के शरीर से रस निकलता है, जिसे सिलोमिक फ्लूड कहा जाता है। केचुआ के रस में एनजाइम और हार्मोन होता है। साथ ही वर्मी कंपोस्ट का घोल मिलने के कारण वर्मी वॉश फलों और सब्जियों के लिए फायदेमंद होता है।

आम और लीची को भी फायदा

आम और लीची सहित अन्य पेड़ों पर मंजर और फूल लगने के दौरान वर्मी वॉश का छिड़काव करने से फसल दोगुनी होती है। मंजर और फूल भी नहीं गिरता। कीड़ा नहीं लगता है। मधुमक्खियों को नुकसान नहीं पहुंचता है। जिस पेड़ पर वर्मी वॉश का छिड़काव हुआ है उस पेड़ का पका आम और लीची एक सप्ताह तक सड़ता नहीं है। स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह नहीं होता है।

English Summary: Vermi Wash is a boon Published on: 28 March 2018, 05:31 IST

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