1. Home
  2. बागवानी

Maize Protein: बढ़ती महंगाई में प्रोटीन का सस्ता स्त्रोत मक्का

मक्का विश्व की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल (Food Crop) है. मक्का में विद्यमान अधिक उपज क्षमता और विविध उपयोग के कारण इसे खाद्यान फसलों की रानी कहा जाता है. पहले मक्का को विशेष रूप से गरीबो का मुख्य भोजन माना जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है.

KJ Staff
KJ Staff
Maize
Maize Crop in India

वर्तमान में मक्का का उपयोग मानव आहार (24 %) के अलावा कुक्कुट आहार (44 % ),पशु आहार (16 % ), स्टार्च (14 % ), शराब (1 %) और  बीज (1 %) के  रूप में किया जा रहा है.

गरीबों का भोजन मक्का अब अपने पौष्टिक गुणों के कारण अमीरों के मेज की शान बढ़ाने लगा है. मक्का के दाने में 10 प्रतिशत प्रोटीन, 70 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 4 प्रतिशत तेल, 2.3 प्रतिशत क्रूड फाइबर, 1.4 प्रतिशत राख तथा 10.4 प्रतिशत एल्ब्यूमिनोइड पाया जाता है. मक्का के  भ्रूण में 30-40 प्रतिशत तेल पाया जाता है. मक्का की प्रोटीन में ट्रिप्टोफेन तथा लायसीन नामक दो आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी पाई जाती है.

परन्तु विशेष प्रकार की उच्च प्रोटीन युक्त मक्का में ट्रिप्तोफेंन एवं लाईसीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जो  गरीब लोगों को उचित आहार एवं पोषण प्रदान करता है साथ ही पशुओं के लिए पोषक आहार है. गुणवत्ता प्रोटीन मक्का में लायसीन व ट्रप्टोफान की अधिकता होती है तथा ल्युसिन तथा आइसो ल्युसिन की मात्रा कम होती है.

गुणवत्ता प्रोटीन मक्का का तुलनात्मक अध्यन (Comparative Study of Quality Protein Maize)

 

साधारण मक्का

गुणवत्ता प्रोटीन मक्का

लाईसीन

1.88 %

4.07%

ट्रिप्तोफेंन

0.35%

0.92%

ल्युसिन

14.76%

9.19%

आइसो ल्युसिन

4.13%

3.63%

प्रोटीन मात्रा

8.49%

9.22%

यह मक्का की हाइब्रिड किस्म है जिसे प्रजनक ने OPAQUE -2 जीन के जोड़ने से निर्मित किया है.

क्यों करें मक्का की खेती (Why cultivate maize) 

दक्षिण राजस्थान में 45 प्रतिशत जनसँख्या मक्का को मुख्य भोजन के रूप में उपयोग करती है तथा वर्तमान समय में दालों के भाव इतने बढ़ चुके हे कि सभी लोग उनका उपभोग नही कर पाते. गुणवत्ता प्रोटीन मक्का में उपस्थित आवश्यक दलहनी प्रोटीन के कारण यह सभी के लिए दलहनी प्रोटीन का एक सस्ता स्त्रोत साबित होगा.

कैसे करे भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी (How to choose the land and prepare the field)

मक्का की खेती लगभग सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमियों में की जा सकती है परन्तु अधिकतम पैदावार के लिए गहरी उपजाऊ दोमट मिट्टी  उत्तम होती है, जिसमे वायु संचार व जल निकास उत्तम हो तथा जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में हों. मक्का की फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के मध्य (अर्थात न अम्लीय और  न क्षारीय) उपयुक्त रहता हैं. जहाँ पानी जमा होने की सम्भावना हो  वहाँ मक्के की फसल नष्ट हो जाती है. खेत में 60 से.मी के अन्तर से मृदा कूंड पद्धति  से वर्षा ऋतु में मक्का की बोनी करना लाभदायक पाया गया है.

भूमि की जल व हवा संधारण क्षमता बढ़ाने तथा उसे नींदारहित करने के उद्देश्य  से ग्रीष्म-काल में भूमि की गहरी जुताई करने के उपरांत कुछ समय के लिये छोड़ देना चाहिए. पहली वर्षा होने के बाद खेत में दो बार देशी हल या हैरो से जुताई  करके मिट्टी नरम बना लेनी चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर कर खेत समतल किया जाता है. अन्तिम जोताई के समय गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में मिला देना चाहिए.

उन्नत किस्में (Improved varieties)

  • HQPM-1, HQPM-5, HQPM-7, HQPM-9: यह पीले रंग की किस्म है जो 90-100 दिन की अवधि की है तथा इससे 40-50 क्विंटल प्रति हक्टेयर उपज मिलती है.

  • VIVEK QPM-9- पीले रंग के साथ 80 से 85 दिन की अवधि की है तथा 30-35 क्विंटल प्रति हक्टेयर उपज मिलती है.

बुवाई का उचित समय (Proper sowing time)

  • भारत में मक्का की बुवाई वर्षा प्रारंभ होने पर की जाती है. देश के विभिन्न भागो में मक्का की बुवाई मुख्य रूप से वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने के साथ जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम पखवाड़े में की जाती है. मक्का की अगेती बुवाई लाभदायक होती है क्योंकि देर से बुवाई करने से उपज में कमी हो जाती है.

  • रबी में अक्टूबर अंतिम सप्ताह से 15 नवम्बर तक बुवाई के लिए सही समय माना गया है.

  • जायद की फसल में बुवाई के लिए फ़रवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के तृतीय सप्ताह तक का समय उचित रहता है .

  • खरीफ की फसल के अपेक्षा यानि की मक्का में अधिक उपज प्राप्त होती है क्योंकि खरीफ में खरपतवारों के साथ साथ कीटों की अधिक समस्या रहती है. पोषक तत्वों का अधिक ह्रास होता है तथा मौसम में बदल होने के कारण पौधों को सही से सूर्य का प्रकाश नही मिल पता है जिससे अच्छी उपज नही हो पाती है. जबकि वही रबी में जल एवं मृदा प्रबंधन सही होने के साथ साथ कीट तथा रोग व खरपतवार का प्रकोप कम हो जाता है तथा फसल को प्रकाश भी सही मात्र में उपलब्ध हो जाता है.

मक्का की सही बीज दर कितनी है ?(What is the correct seed rate of maize?)

संकर मक्का का प्रमाणित बीज प्रत्येक वर्ष किसी विश्वसनीय संस्थान से लेकर बोना चाहिये. संकुल मक्का  के लिए एक साल पुराने भुट्टे के बीज जो  भली प्रकार  सुरक्षित रखे  गये हो , बीज के लिए अच्छे रहते है. पहली फसल कटते ही अगले  वर्ष बोने के लिए स्वस्थ्य फसल की सुन्दर-सुडोल बाले (भुट्टे) छाँटकर उन्हे उत्तम रीति से संचित करना चाहिए. यथाशक्ति बीज को  भुट्टे से हाथ द्वारा अलग करके बाली के बीच वाले  दानो  का ही उपयोग अच्छा रहता है. पीटकर या मशीन द्वारा अलग किये गये बीज टूट जाते है जिससे अंकुरण ठीक नहीं होता.  भुट्टे के ऊपर तथा नीचे के दाने बीच के दानो  की तुलना में शक्तिशाली नहीं पाये गये है. बोने के पूर्व बीज की अंकुरण शक्ति का पता लगा लेना अच्छा होता  है. यदि अंकुरण परीक्षण नहीं किया गया है तो प्रति इकाई अधिक बीज बोना अच्छा रहता है.

गुणवत्ता प्रोटीन मक्का के लिए (Quality Protein for Maize)

  • बीज दर (किग्रा. प्रति एकड़)                     18-20          

  • कतार से कतार की दूरी (सेमी)                 60-75        

  • पौधे  से पौधे  की दूरी (सेमी.)                    20-22

ट्रेक्टर चलित मेज प्लांटर अथवा देशी हल की सहायता से  रबी मे 2-3 सेमी. तथा जायद व खरीफ में 3.5-5.0 सेमी. की गहराई पर बीज बोना चाहिए. बोवाई किसी भी विधि से की जाए परंतु खेत में पौधों की कुल संख्या 65-75 हजार प्रति हेक्टेयर रखना चाहिए. बीज अंकुरण के 15-20 दिन के बाद अथवा 15-20 सेमी. ऊँचाई ह¨ने पर अनावश्यक घने पौधों की छँटाई करके पौधों के बीच उचित फासला स्थापित कर खेत में इष्टतम पौध संख्या स्थापित करना आवश्यक है. सभी प्रकार की मक्का में एक स्थान पर एक ही पौधा  रखना उचित है.

मक्का बुवाई की विधियाँ (Methods of sowing maize)

मक्का बोने की तीन विधियाँ यथा छिटकवाँ, हल के पीछे और  डिबलर विधि प्रचलित है, जो की निम्न प्रकार है :

छिटकवाँ विधि: सामान्य से सभी किसान छिड़क कर बीज बोते हैं जिससे की बीज उचित दूरी पर नहीं गिरते तथा उनमे दूरी भी सही रूप से प्राप्त नहीं हो पाती है तथा प्रति इकाई इष्टतम पौध संख्या प्राप्त नहीं हो पाती है. तथा इसके पश्चात फसल में निराई गुड़ाई करने में भी बहुत दिक्कत होती है व बीज भी अधिक लगता है.

कतार बौनी : हल के पीछे कुंड में बीज की बुवाई सर्वोत्तम विधि है जिसमे कतार से कतार की उचित दूरी रखी जाती है जिससे पौधों की इष्टतम संख्या प्राप्त होती है. इससे उपज भी अधिक प्राप्त होती है. मक्का की बुवाई के लिए मैज प्लान्टर का उपयोग भी किया जाता है .

वैकल्पिक जुताई-बुवाई (Alternate tillage-sowing)

शोध परिणामों से ज्ञात हुआ है की शून्य भूपरिष्करण, रोटरी टिलेज एवं फर्ब पद्धति जैसी तकनीकों को अपनाकर किसान उत्पादन लागत को कम कर सकता है तथा अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है.

जीरो टिलेज या शून्य-भूपरिष्करण तकनीक (Zero tillage or zero-terrain technology)

जीरो  टिलेज विधि में पिछली फसल की कटाई के पश्चात बिना जुटी किये नई फसल को मशीन के द्वारा बोया जाता है. इस विधि में खेत की जुटी किये बिना खाद तथा बीज को एक साथ बोया जाता है. इस विधि से चिकनी मिटटी के अलावा अन्य सभी प्रकार की मृदा में बुवाई की जा सकती है. जीरो टिलेज मशीन साधारण ड्रिल की तरह ही है, परन्तु इसमें टाइन चाकू की तरह होता है. यह टाइन मिट्टी में नाली के आकार की दरार बनाता है, जिसमें खाद एवम् बीज उचित मात्रा में सही गहराई पर पहुँच जाता है.

फर्ब तकनीक से बुवाई (Sowing by Ferb Technique)

इस पद्धति से खाद एवं बीज की बहुत बचत होती है और उत्पादन भी प्रभावित नही होता है. इस  तकनीक को मक्का के बीज उत्पादन के लिए भी उपयोग किया जा रहा है. इसमे मक्का को ट्रेक्टर चालित रिज़र कम ड्रिल से मेड़ों पर पंक्ति में बोया जाता है. इससे अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उत्पादित किये जाते है.

खाद एंव उर्वरक (Fertilizer)

मक्के को  भारी फसल की संज्ञा दी जाती है जिसका भावार्थ यह है कि इसे अधिक मात्रा  में पोषक तत्वो  की आवश्यकता पड़ती है. गुणवत्ता मक्के की अच्छी फसल को भूमि से ओसतन 175  किग्रा. नाइट्रोजन,  40 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 25 किग्रा जिंक सलफेट की जरुरत होती है. पूरी जिंक सलफेट बुवाई के समय ही देनी चाहिये. नाइट्रोजन को चार भागो में विभाजित करके दिया जाता है :

  • एक चौथाई बुवाई के समय

  • एक चौथाई 6-8 पत्ती की अवस्था पर

  • एक चौथाई पुष्पन अवस्था में

  • एक चौथाई दाने भरने की अवस्था पर 

सिंचाई हो समय पर (Irrigation on time)

मक्के की प्रति इकाई उपज  पैदा करने के लिए अन्य फसलो  की अपेक्षा अधिक पानी लगता है. शोध परिणामों में पाया गया है कि मक्के में वानस्पतिक वृद्धि (25-30 दिन) व मादा फूल आते समय (भुट्टे बनने की अवस्था में) पानी की कमी से उपज में काफी कमी हो जाती है. अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मादा फूल आने की अवस्था में किसी भी रूप से पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. खरीफ मौसम में अवर्षा की स्थिति में आवश्यकतानुसार दो से तीन जीवन रक्षक सिंचाई चाहिये.

राजस्थान में  रबी मक्का के लिए 4 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है. यदि 6 सिंचाई की सुविधा हो तो 4-5 पत्ती अवस्था, पौध  घुटनों तक आने  से पहले व तुरंत बाद, नर मंजरी आते समय, दाना भरते समय तथा दाना सख्त होते समय सिंचाई देना लाभकारी रहता है. सीमित पानी उपलब्ध होने पर एक नाली छोड़कर दूसरी नाली में पानी देकर करीब 30 से 38 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है. सामान्य तौर पर मक्के के पौधे 2.5 से 4.3 मि.ली. प्रति दिन जल उपभोग कर लेते है. मौसम के अनुसार मक्के को पूरे जीवन काल(110-120 दिन) में 500 मि. ली. से 750 मि.ली. पानी की आवश्यकता होती है. मक्के के खेत में जल भराव  की स्थिति में फसल को भारी क्षति होती है. अतः यथा संभव खेत में जल निकासी की व्यवस्था करे.

खरपतवारों से फसल की सुरक्षा कैसे करें (How to protect crop from wee

मक्के की फसल तीनों ही मौसम में खरपतवारों से प्रभावित होती है. समय पर खरपतवार नियंत्रण न करने से मक्के की उपज में 50-60 प्रतिशत तक कमी आ जाती है. फसल खरपतवार प्रतियोगिता के लिए बोआई से 30-45 दिन तक क्रांन्तिक समय माना जाता है. मक्का में प्रथम निराई 3-4 सप्ताह बाद की जाती है जिसके 1-2 सप्ताह बाद बैलो  से चलने वाले  यंत्रो  द्वारा कतार के बीच की भूमि गोड़ देने से पर्याप्त लाभ होता है. सुविधानुसार दूसरी गुड़ाई कुदाल आदि से की जा सकती है. कतार में बोये गये पौधो  पर जीवन-काल में, जब वे 10-15 सेमी. ऊँचे हो , एक बार मिट्टी चढ़ाना  अति उत्तम होता है. ऐसा करने से पौधो  की वायवीय जड़ें  ढक जाती है तथा उन्हें  नया सहारा मिल जाता है जिससे वे लोटते (गिरते)नहीं है. मक्के का पोधा जमीन पर लोट   जाने पर साधारणतः टूट जाता है जिससे फिर कुछ उपज की आशा रखना दुराशा मात्र ही होता है.

प्रारंम्भिक 30-40 दिनों तक एक वर्षीय घास व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों  के नियंत्रण हेतु एट्राजिन नामक नीदनाशी 1.0 से 1.5 किलो प्रति हेक्टेयर को 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद खेत में छिड़कना चाहिए. खरपवारनाशियो  के छिड़काव के समय मृदा सतह पर पर्याप्त नमी का होना आवश्यक रहता है. इसके अलावा एलाक्लोर 50 ईसी (लासो) नामक रसायन 3-4 लीटर प्रति हक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के बाद खेत में समान रूप से छिड़कने से भी फसल में 30-40 दिन तक खरपतवार नियंत्रित रहते हैं. इसके बाद 6-7 सप्ताह में एक बार हाथ से निंदाई-गुडाई व मिट्टी चढ़ाने का कार्य करने से मक्के की फसल पूर्ण रूप से खरपतवार रहित रखी जा सकती है.

कटाई-गहाई (Threshing)

मक्का की प्रचलित उन्नत किस्में बुवाई से पकने तक लगभग 90 से 110 दिन तक समय लेती हैं. प्रायः बुवाई  के 30-50 दिन बाद ही मक्के में फूल लगने लगते है तथा 60-70 दिन बाद ही हरे भुट्टे भूनकर या उबालकर खाने लायक तैयार हो  जाते है. आमतौर पर  संकुल एंव संकर मक्का की किस्मे पकने पर भी हरी दिखती है, अतः इनके सूखने की प्रतिक्षा न कर भुट्टो कर तोड़ाई करना  चाहिए. एक आदमी दिन भर में 500-800 भुट्टे तोड़ कर छील सकता है. गीले भुट्टों का ढेर लगाने से उनमें फफूंदी  लग सकती है जिससे दानों की गुणवत्ता खराब हो जाती है. अतः भुट्टों को छीलकर धूप में तब तक सुखाना चाहिए जब तक दानों में नमी का अंश 15 प्रतिशत से कम न हो जाये. इसके बाद दानों को गुल्ली से अलग किया जाता है. इस क्रिया को शैलिंग कहते है.

उपज एंव भंडारण (produce and storage)

सामान्य तौर पर सिंचित परिस्थितियों में संकर मक्का की उपज 50-60 क्विंटल है, तथा संकुल मक्का की उपज 45-50 क्विंटल ./हे. तक प्राप्त की जा सकती है. मक्का के उचित भण्डारण के लिए 12.5 – 13 % तक नमी सही रहती है. सुखाने के पश्चात बीजो को साफ़ स्थान पर रखना चाहिए.

टिकेन्द्र कुमार यादव एवं नूपुर शर्मा

(सस्य विज्ञान विभाग)

English Summary: The cheapest source of protein in rising inflation Published on: 24 May 2018, 04:55 IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News