Tips For Banana Crop: केला विश्व के प्रमुख फलों में से एक है और इसका उत्पादन कई देशों में होता है. लेकिन केले की खेती को विभिन्न विषाणुजनित रोगों से गंभीर खतरा है. ये रोग न केवल उपज और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान भी पहुंचाते हैं. केले में मुख्य रूप से केला बंची टॉप वायरस (Banana Bunchy Top Virus, BBTV), केला मोसाइक वायरस (Banana Mosaic Virus) और केला स्ट्रिक वायरस (Banana Streak Virus) जैसे रोग प्रमुख हैं. इन रोगों के कुशल प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं.
1. विषाणुजनित रोगों की पहचान
विषाणुजनित रोगों के लक्षणों की पहचान उनके प्रबंधन के लिए अत्यंत आवश्यक है:
केला बंची टॉप वायरस (BBTV)
पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और वे शिखर की ओर गुच्छे के रूप में दिखाई देती हैं. पत्तियों पर गहरे हरे रंग की धारियां बनती हैं. पौधे का विकास रुक जाता है.
केला मोसाइक वायरस (CMV)
पत्तियों पर हल्के और गहरे हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. पौधे कमजोर हो जाते हैं और फलन कम हो जाता है.
केला स्ट्रिक वायरस (BSV)
पत्तियों पर पीले या भूरे रंग की धारियां बनती हैं. यह रोग असमान फलन और पौधों की मृत्यु का कारण बन सकता है.
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2. रोग प्रबंधन के उपाय
(क) रोकथाम (Prevention)
1. स्वच्छ पौध सामग्री (Clean Planting Material)
केवल प्रमाणित और रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग करें. टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे लगाएं क्योंकि ये रोगमुक्त होते हैं.
2. रोग प्रतिरोधी किस्में (Resistant Varieties)
BBTV और अन्य विषाणुओं के प्रति सहनशील किस्मों का चयन करें.
3. रोग वाहक का प्रबंधन
बीबीटीवी को फैलाने वाला मुख्य वाहक एफिड (Pentalonia nigronervosa) है. इसे नियंत्रित करने के लिए निम्न उपाय करें जैसे, नीम तेल (5%) या बायोपेस्टीसाइड का छिड़काव करें. रासायनिक कीटनाशकों जैसे इमिडाक्लोप्रिड (0.05%) का प्रयोग करें.
4. फसल चक्र (Crop Rotation)
केला के अलावा अन्य फसलों को फसल चक्र में शामिल करें ताकि रोग और उसके वाहकों की समस्या कम हो.
5. साफ-सफाई का ध्यान रखें
खेत में पुराने और संक्रमित पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट करें. खेत के चारों ओर घास और खरपतवार की सफाई करें, क्योंकि ये रोग वाहकों का आश्रय स्थल हो सकते हैं.
(ख) रोग के फैलाव को रोकना (Containment)
1. संक्रमित पौधों का उन्मूलन (Rogueing)
खेत में जैसे ही रोगग्रस्त पौधे दिखाई दें, उन्हें उखाड़कर जला दें.
2. समूह प्रबंधन (Area-Wide Management)
आस-पास के सभी किसानों के साथ मिलकर सामूहिक रूप से एफिड और अन्य रोग वाहकों का नियंत्रण करें.
3. फसल पर निगरानी (Monitoring)
खेतों का नियमित निरीक्षण करें ताकि रोग प्रारंभिक अवस्था में पहचाना जा सके.
4.जैविक नियंत्रण (Biological Control)
रोग वाहकों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे लेडीबर्ड बीटल और लेसविंग्स का संरक्षण करें.
(ग) उन्नत तकनीकें और अनुसंधान
1. विषाणु मुक्त पौधों का उत्पादन
पौधशालाओं में टिश्यू कल्चर तकनीक द्वारा रोग मुक्त पौधे तैयार करें.
2. मॉलिक्यूलर तकनीक का उपयोग
RT-PCR और ELISA तकनीकों से विषाणु रोगों का शीघ्र और सटीक निदान करें.
3. जैविक उपायों का प्रयोग
रोग रोधी जैव उत्पाद जैसे एंटीवायरल बायोफॉर्मूलेशन विकसित करें.
4. इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS)
रोग प्रबंधन के साथ-साथ बेहतर उत्पादन के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाएं.
(घ) किसानों को प्रशिक्षण
किसानों को विषाणुजनित रोगों की पहचान, रोकथाम और नियंत्रण के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें. रोग प्रबंधन में उपयोग होने वाले कीटनाशकों और जैविक उपायों के उचित उपयोग की जानकारी दें.
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