यह सर्व विदित है कि अलंकृत बागवानी को आदिकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है, जिसके प्रमाण हमें प्राचीन ग्रंथों से मिलते है. जिनमें विष्णु पुराण, शाकुन्तलम, रामायण, महाभारत, गीता आदि विशेष रूप् से उल्लेखनीय है. इन ग्रंथों के अध्ययन में यह बात एकदम स्पष्ट हो जाती है कि हमारे पूर्वजों को शोभाकारी पेड़-पौधों से कितना लगाव था.
अंलकृत उद्यान की शैलियां
उद्यान विज्ञान में उद्यान निर्माण की दो प्रमुख शैलियां प्रचलित हैं. एक शैली के अनुसार ज्यामितीय नियमों का पालन करके उद्यान का निर्माण किया जाता है. दूसरी शैली में ज्यॉमितीय नियमों की अवहेलना करके आधुनिक उद्यान कला (मॉडर्न गार्डन आर्ट) के सिद्धांत के आधार पर उद्यान का निर्माण किया जाता है. दोनों प्रकार के उद्यान एक दूसरे से भिन्न होते है. प्राकृतिक पद्धति द्वारा निर्मित उद्यानों में मुख्यतः प्राकृतिक तत्वों का सृजन किया जाता है इनको भू दृश्य उद्यान (Land Scaping) की संज्ञा दी जाती है, जिनमें वृक्षों, झाड़ियों और झुरमुट, लम्बे चौड़े घास के मैदानों आदि के द्वारा प्राकृतिक तत्वों का समावेश किया जाता है. अधिकतर इस प्रकार के उद्यान ग्रामीण परिवेश के घोतक हैं. नगरों में औपचारिक उद्या नहीं सुगमता से बन पाते हैं. इन दो शैलियों के अलावा उद्यान निर्माण की एक तीसरी शैली भी है, जिसमें औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों शैलियों के कुछ प्रमुख तत्वों को लेकर उद्यान का निर्माण किया जाता है जिसे कलात्मक पद्धति के उद्यान (picturesque) की संज्ञा दी जाती है.
1. उदयान के निर्माण से निम्न सिद्धांतो का पालन करना आवश्यक है:
जहां तक संभव हो सके प्राकृतिक तत्वों का समावेश किया जाये. इससे यह लाभ होगा कि समयानुसार कम खर्च करके उसका अनुरक्षण और सुरक्षा हो सकेगी
2. उद्यान में पौधों को लगाने की योजना सोच समझकर इस प्रकार बनाई जाये, जब उन्हें उद्यान में उगाया जए तो वे दर्शकों का मन मोह लें. ऐसा करने के लिए एक प्रजाति के पौधों को झुण्ड में उगाना होगा. साथ ही प्रजातियों में फूल आने के समय एकान्तरण हो, ताकि हर मौसम में हर समय उद्यान आकर्षक बना रहे
3. अंलकृत उद्यान का दृश्य इतना आकर्षक होना चाहिये कि दर्शक गणों के मन में उसे बार-बार अवलोकन करने की इच्छा जागृत हो. यह दृश्य पत्थर की मूर्ति का होना चाहिये जिसे उद्यान की शब्दावली में विस्टा की संज्ञा दी जाती है. इसके समावेश से न केवल उद्यान की सुन्दरता में अभिवृद्धि होगी अपितु मानव की अमानवीय प्रवृतियों से छुटकारा दिलाने की सहायता भी मिलेगी
4. अलंकृत उद्यान का रेखांकन उसकी उपयोगिता और शोभा को ध्यान में रखकर किया जाए
5. एक ऐसे स्थान को आधार बिन्दु मानना चाहिये, जहां से खड़ होकर सारे अलंकृत उद्यान में सुगमता से दर्शन किया जा सके.
1. उद्यान के सभी आवश्यक तत्वों अर्थात बाड़, एजिंग, फूल हरियाली, लताओं इत्यादि का होना आवश्यक है
2. उद्यान में एक साथ घने पौधे नहीं लगाने चाहिये, क्योकि ऐसा करने से उनका समुचित विकास नहीं होगा जिसके कारण वे कमजोर रह जायेंगे, जो देखने में अच्छे नहीं लगेंगे
3. उद्यान में फूलों की विभिन्न किस्मों को उगाना चाहिये, ताकि उनके रंग बिरंगे फूलों से उद्यान आकर्षक लग सके.
शैलियों को निम्न तीन भागों में विभक्त किया जाता है
1. औपचारिक शैली (Formal Syle)
2. अनौपचारिक शैली (Informal Syle)
3. स्वतंत्र शैली (Free Syle)
4. औपचारिक शैली (Formal Syle)
इस विधि को ज्यामितीय (geometrical) या सममित (symmetrical) शैली के नाम से जाना जाता है. इसमें कृत्रिम वातावरण के सृजन को प्राथमिकता दी जाती है. यह उद्यान विभिन्न विचारों पर आधारित होते हैं. ये उद्यान परिस्थिति के अनुसार बनाये जाते हैं जिसमें निर्माणकर्ता के विचारों को परिकल्पना प्रदर्शित होती है.
इस विधि से उद्यान लगाने से पूर्व अभिकल्प (Design) तैयार किया जाता है और उनमें यह ध्यान रखा जाता है कि उद्यान में सभी चीजें सन्तुलित रूप् से हो यदि उद्यान के मध्य में मार्ग या सड़क है तो उनके दोनों ओर अभिकल्प या पौधों का ऐसा प्रावधान किया जाता है कि वे एक प्रकृति के हों. दिल्ली का गार्डन , अगारे का ताज गार्डन, पिनजौर का पिनजौर गार्डन इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं. मुगल गार्डन का निर्माण शाहजहां ने कराया था जिसे 16 भागों में विभक्त किया गया है. इसके प्रत्येक भाग से हरियाली (Lawn) अलंकृत झाड़ियां, पौधे और फूल वाले पौधे लगे है. मुख्य मार्ग के दोनों और एक ही प्रकार के पौधे हैं और मौसमी पौधो के लिये क्यारियां बनी हुई है, जिनमें प्रतिवर्ष मौसमी फूलों के पौधे उगाये जाते हैं. बाउण्डरी से ईटों अथवा पत्थरों की बनी है. इस प्रकार के उद्यान लगाने या बनने से अधिक श्रम व धन की आवश्यकता होती है, परन्तु उद्यान देखने में अत्यन्त आकर्षक और मनभावन होता है. भारत के विभिन्न भागों में ऐसे उद्यानों का निर्माण किया गया है जिनमें से प्रमुख उद्यानों के नाम निम्न सूची दर्शाये गये हैं.
औपचारिक उद्यानों में कृत्रिम कलात्मक वस्तुओं का बाहुल्य होता है-
चार दिवारी (Surrounding Walls) : इन उद्यानों के चारों पक्की ईटों द्वारा निर्मित दीवारे होती है. मुख्य द्वार अत्यन्त सुंदर ढंग से बना होता है. यह चार दीवारी उद्यान में उगे पेड़-पौधों, मौसमी, फूलों आदि को तेज हवाओं से बचाती है. इसके अलावा पशु आदि द्वारा होने वाली हानि से भी बचाती है.
मार्ग (Paths) : उद्यानों से मार्गों का होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि इनके द्वारा ही दर्शक एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से पहुंच सकते है, वरना उन्हें हरियाली (लॉन) में होकर गुजरना पड़ेगा, जिससे घास के मरने का भय रहता है. अतः उद्यान के विभिन्न भागों में पहुंचने के लिये पक्के लाल पत्थरों द्वारा सुन्दर मार्गो का निर्माण किया जाता है, जो सीधे या तिरछे भी हो सकते हैं.
बहता जल (Running Water) : प्राचीन काल में इस प्रकार के उद्यानों का निर्माण अधिकांशतः उन पहाड़ियों के समीप किया जाता था, जहां से झरने निकलते हों. इस प्रकार के झरनों के निर्माण से पूर्व पानी की उपलब्धता का ध्यान रखना आवश्यक होता था, क्योंकि ऐसे उद्यानों के मध्य में बहता हुआ पानी अत्यन्त आवश्यक होता है. बहता हुआ जल उद्यान की सुन्दरता में और अभिवृद्धि कर देता है. वृन्दावन गार्डन (मैसूर) में बहता हुआ पानी इसका उदाहरण है.
फव्वारे (Fountains): उद्यान में यदि बहते हुए पानी में फव्वारे लगे हो, जिनके चलने पर प्रकाश की किरणों से सुन्दर दृश्य दिखाई देता है. वृन्दावन गार्डन (मैसूर) में लगाये गये फव्वारे रात्रि में अत्यन्त मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं, जिन्हें देखने के लिए दर्शक देश - विदेश से वहां जाते हैं. चलचित्रों में इसकी सुन्दरता का प्रदर्शन किया जाता है.
बारादरी (Baradari) : उद्यानों में अधिकांशतः 12 बड़े दरवाजों वाला एक कमरा होता है. दर्शक वर्षा के मौसम में उसमें बैठकर मनोरंजन करते हैं. मुगलकालीन अधिकांश उद्यानों में बारादरी बनी हुई है, जिससे उद्यानों की शोभा भी बढ़ाती है.
अनौपचारिक शैली (Informal Syle) : किसी भी छोटे या बड़े भूभाग पर भू-दृश्य कोई प्राकृतिक दृश्य बनाया जाता है, तो यह अनौपचारिक उद्यान कहलाता है. रूटे एवं केली के अनुसार कोई भी भू-भाग जिस पर सुन्दर दृश्य संजोया गया है. अनौपचारिक या भू-दृश्य उद्यान है. इस प्रकार की शैली में अंलकृत वृक्षों और झाड़ियों को किसी मनोरम विधि से लगाया जाता है कि वे सभी ओर से सुन्दर दृष्टिगोचर हो.
इन उद्यानों को प्राकृतिक रूप से प्रदान करने के लिये पहाड़ियां, नदी, पूल, नाले, झरने, तालाब, टेके रास्ते या ऊंचे -नीचे स्थान बनाये जाते हैं. झील और तालाबों में कमल के पौधे उगाये जाते हैं, जो लाल उत्पन्न करके सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं.
इन उद्यानों का प्रमुख उद्देश्य मानव को शान्ति प्रदान करना होता है. इसलिये सौंदर्यता को प्राथमिकता न देकर प्राकृतिक सौंदर्यता को प्राथमिकता दी जाती है. इस प्रकार के उद्यानों में निम्न बातों पर विशेष रूप से बल दिया जाता है.
1. सदाबहार और पर्णपाती दोनों प्रकार के पौधों को साथ - साथ उगाया जाता है
2.गुलाब, लिली, सूरजमुखी, गुलदाउदी, जीनिया आदि को प्राथमिकता न देकर बॉस, चीड़, सिल्वर कमल, आइरिस इत्यादि को प्राथमिकता दी जाती है
3. स्वतन्त्र शैली (Free Style) इस विधि को अपूर्व चित्र शैली (pictureqe style) या कलात्मक शैली (artistic style) के नाम से भी पुकारा जाता है. इस प्रकार के उद्यानों का निर्माण औपचारिक और अनौपचारिक दोनों विभिन्न के मिश्रण से किया जाता है. जिस स्थान को जिस योग्य समझा जाता है, उसी के अनुसार उपरोक्त शैली का उपयोग किया जाता है. इस शैली को अपनाने का प्रचलन शहरों में धीरे -धीरे बढ़ता जा रहा है.
लेखक:
सोनू दिवाकर, एस.पी. शर्मा. तोरन लाल साहू, हेमंत साहू, ललित कुमार वर्मा
पंडित किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र राजनांदगांव (छ.ग.)
Share your comments