Dragon Fruit Farming : ड्रैगन फ्रूट, एक तेजी से उगने वाला कांटेदार पौधा है, जिसे अलग-अलग स्थान पर विभिन्न नामों से पहचाना जाता है. इसे - मेक्सिको में पिटाया, मध्य और उत्तरी अमेरिका में पिठाया रोजा, थाईलैंड में पिठाजा और भारत में कमलम नाम से जाना जाता है. बता दें, इस फल को 21 वीं सदी का आश्चर्यजनक फल भी कहा जाता है. यह मूल रूप से मेक्सिको और मध्य व उत्तरी अमेरिका के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाता है. अपने मूल क्षेत्र से यह फल अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया मिडिल ईस्ट के सभी उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र तक पहुंच गया. इस समय यह दुनिया के 22 देशों में उगाया जाता है. इस फल का बाहरी आवरण कांटेदार होता है जोकि पौराणिक कथाओं के अनुसार ड्रैगन नाम के जानवर से मिलता जुलता है. इसलिए इसे ड्रैगन फ्रूट भी कहा जाने लगा है.
उत्पादन के अनुकूल दशाएं
- 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली उष्ण कटिबंधीय जलवायवीय दशाएं इसके उत्पादन के लिए सबसे अच्छी होती है. बहुत अधिक सूर्य का प्रकाश इसके उत्पादन के लिए अच्छा नहीं होता. अधिक सूर्य प्रकाश की स्थिति में इस कृत्रिम रूप से छाया प्रदान की जाती है.
- कैक्टस परिवार से संबंध होने के कारण, ड्रैगन फ्रूट को कम जल की आवश्यकता होती है. हालांकि पौधा लगाने के समय पुष्पन के समय और फल निकालने के समय इसे सिंचाई की आवश्यकता होती है. टपक सिंचाई इसके लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. इसके उत्पादन के लिए न्यूनतम 50 सेमी, वर्षा आवश्यक है.
- यह पौधा बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट तक कई प्रकार मृदाओं में उग सकता है. हालांकी जैविक खाद युक्त बलुई मिट्टी इसके उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. पीएच 5. 5 से 7 इसके उत्पादन के लिए सबसे अच्छा होता है.
ड्रैगन फ्रूट उत्पादन में पंडाल व मचान का महत्व
ड्रैगन फ्रूट के उत्पादन में मचान बहुत महत्वपूर्ण चरण है. पौधे को सहारा देने के लिए लकड़ी या सीमेंट के स्तंभ बनाए जाते हैं जिससे पौधों को उचित सहारा दिया जा सके. यह स्तम्भ पौधों में जब फल निकलते हैं, तो उनके भार को संभाल कर उन्हें सहारा प्रदान करते हैं. इसके अलावा यह मृदा कटाव को भी रोकते हैं. इन्ही स्तंभों के सहारे ये पौधे सीधे खड़े रहते हैं. फलों को पेड़ से काटते समय इन पौधों को स्तंभों से बांध दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को मचान कहते हैं.
भारत में ड्रैगन फ्रूट के उत्पादन को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता
- आयात भारत में 2017 में 327 टन कमलम का आयात किया गया था, जो सन् 2019-20 और 2021 में बढ़कर क्रमशः 9, 162 , 11 , 916 , 15 , 491 टन हो गया. भारत में साल 2021 में इसके आयात की अनुमानित लागत लगभग 100 करोड रुपये रही है.
- आर्थिक लाभ से ड्रैगन फ्रूट रोपन को 2 वर्ष के बाद फल देना आरंभ करता है और पूर्ण उत्पादन लगभग 3 से 4 साल बाद शुरू होता है. इसका जीवन काल लगभग 20 वर्षों का होता है. 2 वर्ष के बाद इसकी औसत उपज लगभग 10 टन प्रति एकड़ हो जाती है. इसका लाभ लागत अनुपात - 2, 58 है.
स्वास्थ्य लाभ
- यह मधुमेह को नियंत्रण रखना कोलेस्ट्रॉल को कम करने और हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करता है.
- यह अस्थमा और आर्थराइटिस से बचाता है और एजिंग को रोकता है.
- यह फल प्रोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है.
सरकारी पहल
- समेकित बागवानी विकास मिशन के तहत इस फसल के वर्तमान उत्पादन 3000 हेक्टेयर को 5 वर्षों में बढ़ाकर 50, 000 हेक्टयर करने के लिए रोड मैप तैयार किया गया है.
- समेकित बागवानी विकास मिशन के तहत भारतीय कृषि और किसान विकास मंत्रालय ने कमलम फल के उत्पादन और प्रबंधन के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट आफ हॉर्टिकल्चर बैंगलोर को सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के रूप में घोषित किया है. सेंटर आफ एक्सीलेंस उच्च गुणवत्ता, वाली प्रजातियों, अच्छी उपज, उच्च पोषक तत्वों वाली किस्म के विकास पर फोकस करेगा.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे
ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण
(बलिया, उत्तर प्रदेश)
Share your comments