बीते कुछ दिनों से देशभर के अलग-अलग हिस्सों में बारिश का सिलसिला जारी है. ऐसे में बारिश ने लीची उत्पादक किसानों में नई आस जगा दी है. उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी है. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह चाइना लीची के लिए संजीवनी का कार्य करेगी. कुछ लीची उत्पादक किसानों ने लाभ के चक्कर में पहले ही शाही लीची तोड़कर दूरस्त मार्केट में भेज दिए जबकि शाही लीची के फलों में न तो मिठास थी न ही फल में गुद्दे ठीक से बने थे. इस समय लीची फल खट्टा लग रहा है फल से छिलके भी आसानी से नहीं निकल रहे है. लेकिन हो रही थोड़ी सी बारिश से फल के रंग और आकार काफी बेहतर हो जाएंगे. विगत दो तीन साल से नुकसान झेल रहे किसान इस साल लाभ की उम्मीद कर सकते हैं.
बारिश साबित होगी संजीवनी, लेकिन सतर्क रहना भी जरूरी
बिहार के अधिकांश इलाके में इस समय बारिश हो रही है. इससे तापमान में निश्चित गिरावट आयेगी. अप्रैल के महीने में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था, जिसकी वजह से लीची के कुछ फल झुलस गए थे. फलों पर चॉकलेटी रंग के धब्बे बन गए थे जिसकी वजह से फलों का अच्छा मूल्य नहीं मिलता. बारिश और इसकी वजह से गर्मी से मिली राहत से राज्य के लीची किसान काफी खुश हैं. बिहार की मशहूर शाही लीची के फलों पर लाल रंग विकसित हो चुका है. लीची उत्पादक किसान इस बात से खुश है कि बारिश के कारण लीची का रंग और आकार बेहतर होगा, जिससे उनकी कमाई भी बढ़ेगी. हालांकि किसानों को इस वक्त थोड़ा सतर्क रहना होगा, क्योंकि बारिश के बाद कीटों का अटैक बढ़ सकता है. ऐसे में जरूरी है कि किसान के समय रहते छिड़काव कर दें. लेकिन छिड़काव के कम से कम 10 दिन के बाद ही तुड़ाई करनी चाहिए.
बिहार के अधिकांश लीची उत्पादक किसान हो रही बारिश से निश्चित खुश होंगे. उनको लगता है कि इस बारिश के बाद लीची रंग और आकार दोनों में बेहतर होगा और अच्छी कमाई होगी. लेकिन साथ ही साथ किसानों को और भी अधिक सतर्क रहने की है जरूरत उन्हे लगातार बागों की निगरानी करते रहने की सलाह दी जाती है.
लीची में लगने वाले कीट से रहे सावधान
यदि लीची के बाग का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया होगा तो बढ़ेगा फल छेदक कीट/Fruit Borer का अटैक बढ़ेगा. बारिश के बाद फल छेदक कीट के आक्रमण का अंदेशा बढ़ जाता है. लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो, इसके लिए आवश्यक है की साफ-सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाए. थायोक्लोप्रीड (Thiacloprid) और लमडा सिहलोथ्रिन की आधा-आधा मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. किसान नोवल्युरान 1.5 मीली दवा की भी प्रति लीटर पानी में मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं. बारिश होने के ठीक पहले आपने छिड़काव किया था तो फिर से छिड़काव कर दे. लेकिन सावधानी यह रखनी है की छिड़काव के 10 दिन के बाद ही लीची के फलों की तुड़ाई करे.
अत्यधिक तापमान से हुआ है लीची को नुकसान
अप्रैल के अंतिम सप्ताह में एवं विगत दिनों तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच गया था, जिसकी वजह से फल के छिलकों पर जलने जैसा लक्षण दिखाई देने लगा था. धूप से जले छिलकों की कोशिकाएं मर गईं थीं. अब जबकि फल के गुद्दे का विकास अंदर से हो रहा है तो छिलके जले वाले हिस्से से फट जा रहे हैं. इसका समाधान ओवर हेड स्प्रिंकलर ही है.जिस तरह से लीची के फल के विकास की अवस्था में तापमान अक्सर 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच जा रहा है वह लीची के खेती के लिए कत्तई उचित नहीं है.
यदि लीची के फल के विकास की अवस्था में जब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने लगे तब प्रति दिन 4 घंटा ओवर हेड स्प्रिंकलर चलाने से लीची के बाग के ताप क्रम को 35 डिग्री सेल्सियस रक्खा जा सकता है जिससे फल की गुणवक्ता में भारी सुधार होता है. फल के आकार बड़े होते है इसमें गुद्दे भी ज्यादा होता है. मशहूर शाही लीची के फलों की तुड़ाई 20-25 के आस पास करनी है. फलों में गहरा लाल रंग विकसित हो जाने मात्र से यह नहीं समझना चाहिए कि फल तुड़ाई योग्य हो गया है. फलों की तुड़ाई फलों में मिठास आने के बाद ही करनी चाहिए. फलों की तुड़ाई से 10 दिन पहले कीटनाशकों का प्रयोग अवश्य बंद कर देना चाहिए. अनावश्यक कृषि रसायनों का छिड़काव नहीं करना चाहिए अन्यथा फल की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है.
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