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बेर की फसल को पाउडरी मिल्ड्यू से बचाने के लिए अपनाएं ये बेहतरीन उपाएं, पैदावार में होगी बढ़ोतरी

Powdery Mildew of plum Crop: बेर की खेती में पाउडरी मिल्ड्यू रोग एक प्रमुख समस्या है. समय पर इसके लक्षणों की पहचान और प्रभावी प्रबंधन से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार किया जा सकता है. किसानों को इस रोग से बचाव के लिए सुझाए गए कदमों का पालन करना चाहिए. इससे न केवल उनके खेत की पैदावार बढ़ेगी, बल्कि बाजार में फलों की मांग भी पूरी होगी.

डॉ एस के सिंह
डॉ एस के सिंह
Ber ki Fasal
"बेर की फसल को पाउडरी मिल्ड्यू से बचाएं, उपज बढ़ाएं!" (सांकेतिक तस्वीर)

Ber ki Fasal: बेर, जिसे चाइनीज सेव और चीनी खजूर के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुउपयोगी कांटेदार फलदार वृक्ष है. इसके फलों का सेवन लोग ऊर्जा और पोषक तत्वों के लिए करते हैं, जबकि पत्तियों का उपयोग पशु चारे के रूप में होता है. इसकी लकड़ी ईंधन, बाड़ निर्माण, और फर्नीचर निर्माण में सहायक होती है.

बेर के फल पोषण और स्वास्थ्य लाभों से भरपूर होते हैं. इसमें विटामिन सी, विटामिन ए, पोटैशियम, और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, त्वचा को चमकदार बनाए रखने, और पाचन सुधारने में सहायक है. बेर का उपयोग लीवर समस्याओं, हड्डियों की मजबूती, और कैंसर रोकथाम में भी फायदेमंद है.

बेर की खेती में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का महत्व

बेर की सफल खेती के लिए यह आवश्यक है कि इसकी पत्तियों और फलों पर लगने वाले पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णी फफूंद) रोग का समय पर प्रबंधन किया जाए. यह रोग पौधों की बढ़वार, पत्तियों और फलों की गुणवत्ता, और फसल उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है.

पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण

  1. प्रारंभिक लक्षण: सफेद पाउडर जैसा पदार्थ पत्तियों, फूलों, और नए फलों पर दिखाई देता है. यह चूर्ण फूलों और फलों की सतह पर फैल जाता है.
  2. पत्तियों पर प्रभाव: नई पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है, जिससे वे सिकुड़ने लगती हैं और समय से पहले झड़ जाती हैं.
  3. फलों पर प्रभाव: फलों की सतह पर सफेद चूर्ण की परत बन जाती है, जो बाद में भूरे या गहरे भूरे रंग में बदल जाती है. प्रभावित फल विकृत, खुरदरे, और फटे हुए दिखते हैं. ऐसे फल अक्सर बाजार के योग्य नहीं रह जाते.
  4. रोग का प्रसार: फफूंदी सर्दियों में सुप्त अवस्था में कलियों में रहती है. वसंत में अनुकूल परिस्थितियों (80-85% सापेक्ष आर्द्रता और 24-26°C तापमान) में यह सक्रिय हो जाती है और नए संक्रमण का कारण बनती है.

पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रबंधन

  1. रोग की रोकथाम

कृषि क्रियाएँ: खेत की नियमित सफाई और रोगग्रस्त हिस्सों का निपटान करें.पौधों के बीच उचित दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह सुचारू हो और आर्द्रता कम हो.

सिंचाई प्रबंधन: अधिक आर्द्रता से बचने के लिए पौधों पर ओवरहेड सिंचाई न करें.

  1. फफूंदनाशकों का उपयोग

पहला छिड़काव: फूल आने और फल लगने के बाद केराथेन (@1 मिली प्रति लीटर पानी) या घुलनशील गंधक (@2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.

दूसरा छिड़काव: पहले छिड़काव के 15 दिन बाद उपरोक्त घोल का दोबारा छिड़काव करें.

आवश्यकतानुसार छिड़काव: यदि रोग का प्रकोप अधिक हो, तो फल तुड़ाई के 20 दिन पूर्व एक और छिड़काव करें.

  1. जैविक विकल्प: जैविक फफूंदनाशकों का उपयोग जैसे ट्राइकोडर्मा की विविध प्रजातियां (Trichoderma spp.) या अन्य एंटीफंगल बैक्टीरिया. नीम के तेल का छिड़काव भी प्रारंभिक रोग प्रबंधन में सहायक हो सकता है.

4.प्रतिरोधी किस्में: रोग प्रतिरोधी बेर की किस्मों का चयन करें.

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पाउडरी मिल्ड्यू प्रबंधन का महत्व

पाउडरी मिल्ड्यू रोग के कुशल प्रबंधन से न केवल बेर के उत्पादन में वृद्धि होती है, बल्कि फलों की गुणवत्ता भी बेहतर होती है. इसके लिए फफूंदनाशकों का सही समय पर उपयोग, जैविक विकल्पों का समावेश, और फसल की उचित देखभाल महत्वपूर्ण है. बेर जैसे पौष्टिक और बहुपयोगी फल के संरक्षण और उत्पादन में यह रोग प्रबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उचित उपायों से किसान न केवल अपनी उपज बढ़ा सकते हैं बल्कि अपने आर्थिक लाभ को भी सुनिश्चित कर सकते हैं.

English Summary: protect plum crop from powdery mildew Published on: 07 January 2025, 11:03 IST

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