टमाटर एक लोकप्रिय सब्जी है। टमाटर में कार्बोहाइड्रेट , विटामिन , कैल्शियम , आयरन तथा अन्य खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके फल में लाइकोपीन नामक रसायन पाया जाता है। जो बहुत ही फायदेमंद है। टमाटर की फसल पर अनेक प्रकार के कीटों का आक्रमण होता है जो इसकी गुणवत्ता एवं पैदावार में कमी के मुख्य कारण हैं। प्रस्तुत लेख में टमाटर में लगने वाले प्रमुख कीटों एवं उनकी रोकथाम के बारे में बताया गया है जिसे अपनाकर किसान अधिक पैदावार ले सकते हैं।
सफेद मक्खी - यह कीट आकार में बहुत छोटा है लेकिन सब्जियों जैसे टमाटर मिर्च, भिण्डी में बहुत नुकसान करते हैं। क्योंकि यह इन फसलों में मरोड़िया रोग फैलाता है। यह कीट सफेद पंखों वाला है जिसका शरीर पीले रंग का होता है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इस कीट के आक्रमण के कारण पौधे छोटे रह जाते है, पत्ते मुड़ जाते हैं तथा फल कम लगता है, इस कीट का प्रकोप बरसात की फसल में अधिक होता है।
चेपा - ये कीट हरे रंग के जूं की तरह होते हैं। इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते हैं। इनके असर से पत्तियाँ किनारों से मुड़ जाती हैं। इस कीट की पंखदार जाति विषाणु रोग भी फैलाती हैं। ये कीट अपने शरीर से चिपचिपा पदार्थ निकालते हैं, जिससे पत्तियों के ऊपर काली फफूंदी पैदा हो जाती है जो कि पौधों की भोजन बनाने की क्रिया पर असर डालती हैं।
रोकथाम - सफेद मक्खी व चेपा के नियंन्नण के लिए 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।
फल छेदक सूण्ड़ी - इस कीट का प्रौढ़ मध्यम आकार का व पीले भूरे रंग का होता है। फसल में नुकसान सूण्डियों द्वारा होता है। इसके शरीर के ऊपरी भाग पर तीन लम्बी कटवां स्लेटी रंग की, दोनों ओर सफेद धरियां होती हैं। शुरूआत में ये सूण्डियाँ पत्तियों, मुलायम तनों व फूलों को खाती हैं व फूलों व फलों में सुराख कर देती है। ग्रसित फल बाद में सड़ जाते हैं व फलों में छेद होने के कारण गुणवत्ता खराब होती हैं व बाजार में मूल्य कम मिलता है।
रोकथाम - इस कीट के नर वयस्कों को फेरोमैन ट्रैप लगाकर एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए। टमाटर की 15-20 कतारों के बाद एक कतार गेंदा की लगानी चाहिए, क्योंकि यह कीट गेंदा पर अण्डे देना पंसद करता है।
कीट का प्रकोप होने पर 75 मि.ली. फैनवलरेट 20 ई.सी या 200 मि.ली. डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई.सी या 60 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. या 150 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 10 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर 15-15 दिन के अन्तर पर छिडकाव करें तथा छिड़काव से पहले खाने योग्य फल तोड़ लें।
मार्च महीने में पत्तों पर जैसे ही इस कीट के अण्डे दिखाई दें, 20,000 ट्राईकोग्रामा किलोनिस परजीवी छोडें व इसके चार दिन बाद फिर से 20,000 परजीवी प्रति एकड़ फसल पर छोड़ दें। इसके बाद 10-10 दिन के अन्तर पर 1 लीटर निम्बीसीडिन, 400 ग्राम बेसिलस थुरिनजियेंसिस (बी.टी.) 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रूमी रावल, तरूण वर्मा एवं आदेश कुमार
कीट विज्ञान विभाग,
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
कृषि विज्ञान केन्द्र, भरारी, झाँसी
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