आम भारत का प्रमुख फल है जिसे फलों के राजा की उपाधि भी दी गई है। इसके स्वादिष्ट उम्दा सुगंध के साथ यह फल विटामिन ए तथा सी का एक प्रचुर स्रोत है। तथा साथ ही इसे फलों के राजा की संज्ञा भी दी गई है।
आम का पौधा प्रकृति में दढृ होता है अतः कम कीमत व कम मेहनत में इसका रखरखाव किया जा सकता है। भारत में कुल फल उत्पादन क्षेत्र 1.2 मिलियन हेक्टेयर में आम का उत्पादन क्षेत्र का प्रतिशत लगभग 22% है यह उत्पादन 11 मिलियन टन है।उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश सर्वाधिक आम उत्पादक क्षेत्र हैं इसका उपयोग अपरिपक्व तथा परिपक्व दोनों अवस्थाओं में किया जाता है कच्चे अपरिपक्व फलों का उपयोग चटनी, अचार व जूस बनाने में किया जाता है वह पके हुए फलों का उपयोग वह पके हुए फलों का उपयोगखाने में तथा अन्य उत्पाद जैसे की जैम , जेली, स्क्वैश,मर्मलेड,नेक्टरबनाने में होता है
आम के विभिन्न वृद्धि अवस्थाओं में कई प्रकार के रोगों का आक्रमण होता हैजिनमें से कुछ प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन निम्न प्रकार है-
(अ)सफेद रतुआ (पाउडरी मिल्डयू)-यह रोग फफूंद द्वारा होता हैइस रोग में पत्तियों डंठलों फलों व फूलों पर सफेद रंग का पाउडर चूर्ण जमा हो जाता है ग्रसित फल व फूल शीघ्र ही गिर जाते हैं गंभीर परिस्थितियों में फल भी नहीं लगते नई पत्तियों के दोनों तरफ फफूंद का आक्रमण होता है वह बाद की अवस्था में पत्तियां बैंगनी गुलाबी हो जाती है पुष्पन के समय ठंडी रातें बारिश में धुंध के मौसम में रोग का प्रकोप अधिक होता है
प्रबंधन-
1.रोग ग्रस्त पौधों पर 5 किलोग्राम प्रति पौधे के हिसाब से सल्फर चूर्ण का छिड़काव करें
2.पुष्पन के बाद शीघ्र हीआद्रसल्फर 0.2% याकार्बेंडाजिम 0.1% या ट्रायडेमार्फ0.1% या केराथेन0.1% का छिड़काव करें तथा दितीय छिडकाव का 15 दिन के अंतराल में करें।
(ब)कुरचनारोग- यह आम का बहुत ही गंभीर रोग है इस रोग के दो प्रकार हैं कायकिय कुरचना तथा पुष्पीयकुरचना।नवोद्भिदो ,वृक्षों तथा ग्राफ्टिंग वाले आम के पौधों में यह रोग होने की शंका होता है संक्रमितनवोद्भिदअत्यधिक शाखाएं उत्पन्न करता है जो किसी सीमित वृद्धि दी करती है तथा फूली हुई वह छोटे पर्ववाली होती है। जिससे पौधा झाड़ीनुमा दिखाई देने लगता है।
प्रबंधन- वर्तमान समय में इस रोग के सटीक प्रबंधन की खोज नहीं हो सकी है परंतु विभिन्न उपचारों द्वारा इसका संक्रमण कम किया जा सकता है
1.रोग ग्रस्तपादप भागों की छटाई कर देने कर देने तथा उन्हें जला देवें
2.केवल प्रमाणित पौधों को ही संवर्धन के लिए उपयोग में लेवें
(स)अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग- यह रोग अल्टरनेरिया नामक फफूंद से होता है इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बे बनते हैं जो कि बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं रोग के लक्षण पत्ती की निचली सतह पर दिखाई देते हैं प्रभावित पत्तियां गिर जाती है
प्रबंधन-
1.इस रोग के उपचार के लिए फलोधान में नियमित अंतराल पर कॉपर फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
2.रोग ग्रस्त पादप भागों को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।
(द)जीवाण्विय केंकर- यह रोग एक प्रकार के जीवाणु जेन्थोमोनास मैंजिफेरीसे होता है। इस रोग में पत्तियों पर छोटे अनियमित तथा कोणीय उठे हुए जलभरे घाव बनते हैं। बाद में पत्तियां पीली होकर गिर जाती है।
प्रबंधन-
1.इसके प्रबंधन के लिए कॉपर फफूंदनाशक का उपयोग करना लाभदायक है 2.फलोद्यान का निर्मित सर्वेक्षण करें।
3.प्रमाणित नवोद्भिद को ही बुवाई के लिए प्रयुक्त करें
4. फलोंधान में सफाई व्यवस्था को बनाए रखें
(य)श्यामव्रण रोग(एन्थ्रेक्नोज)-यह रोग एक प्रकार की फफूंद कोलेटोट्राइकम द्वारा होता है इस रोग में पत्तियों पर पर धब्बे तथा पुष्प पूंज का झुलसना टहनियों झुलसना फल गलन जैसे लक्षण देखे जाते हैं कोमल प्ररोह तथा पत्तियां आसानी से इस रोग से ग्रसित हो जाते हैं जिस कारण नई शाखाओं में अंततः डाईबैक हो जाता है पुरानी टहनियोंमें घावों द्वारा फफूंद के प्रवेश से संक्रमित हो सकती हैं वपेनीकल तथा फलों पर काले धब्बे बन जाते हैं गंभीर परिस्थितियों में फल ही नहीं बनते हैं। तथा इस रोग के कारण उत्पादन में 10 से लेकर 90% तक हानि देखी गई है। नमी वाले मौसम में यह रोग तीव्रता के साथ फैलता है।
प्रबंधन-
सभी रोग ग्रस्त पादप भाग जैसे की टहनियां फूल फल आदि की छटाई कर देनी चाहिए तथा इन्हें जला देना चाहिए
2.पूष्पपूंज में होने वाले संक्रमण को वर्षा ऋतु में सर्वांगी या फिर स्पर्शी फफूंद नाशी के हर हर 12 से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव द्वारा रोका जा सकता है
प्रस्तुति- विजय श्री गहलोत,स्नातकोत्तर छात्रा,पादप रोग विज्ञान विभाग,कॉलेज ओफएग्रीकल्चर, स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी(एसकेआरएयू),बीकानेर ,राजस्थान
Share your comments