Banana Farming: अधिकतम उपज के लिए केले के गुच्छों के प्रबंधन में विभिन्न उपाय और विचार शामिल होते हैं जो केले के पौधों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ाने में योगदान देते हैं. उत्तर भारत में केला लगाने का सर्वोत्तम समय जून–जुलाई को माना जाता है. उत्तक संबर्धन विधि से तैयार केला के पौधों में फूल 9 महीने में आ जाते है और उसके तीन महीने में परिपक्व हो जाते हैं, जबकि सकर (प्रकंद) से लगाये गए केले में बंच आने में लगभग 12 महीने लगते हैं और उसके 3 महीने के बाद कटाई योग्य हो जाते है. घौद(बंच) का वजन अच्छा हो एवं उसमे लगे फल स्वस्थ एवं आकर्षक हो, इसके लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए...
1. साइट चयन और तैयारी
अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और पर्याप्त धूप वाली उपयुक्त जगह का चयन करके शुरुआत करें. उर्वरता में सुधार के लिए खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ डालकर मिट्टी तैयार करें. जलभराव की स्थिति को रोकने के लिए उचित जल निकासी सुनिश्चित करें, अन्यथा जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है.
2. किस्म का चयन
केले की ऐसी किस्में चुनें जो आपकी जलवायु और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हों. कीट और रोग संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों पर विचार करें.
ये भी पढ़ें: एप्पल बेर में पीलापन आना है इस बीमारी का सकेंत, जानें कैसे करें प्रबंधन
3. पौधारोपण
केले के सकर्स या ऊत्तक संवर्धन से तैयार पौधे (नए अंकुर) को लगभग 1.5-2.5 मीटर की दूरी पर प्रजाति के अनुसार लगाएं. उन्हें सही गहराई पर रोपें, ताकि कार्म मिट्टी की सतह के ठीक नीचे रहे.
4. उर्वरकों का प्रयोग
फलों के विकास में सहायता के लिए पोटेशियम के उच्च अनुपात के साथ संतुलित उर्वरक का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है. स्थानीय अनुशंसाओं का पालन करते हुए नियमित रूप से खाद डालें और अत्यधिक उर्वरक के प्रयोग से बचें. उर्वरकों की सस्तुत मात्रा को तीन या चार हिस्सों में विभाजित करके देना चाहिए. कुल उर्वरकों का पहला हिस्सा केला लगाने से पहले ही दे देना, दुसरा हिस्सा तीसरे चौथे महीने में देना चाहिए. तीसरा हिस्सा 6वें से 7वें महीने में केला के मुख्य पौधे से 75 सेंटीमीटर दूर रिंग बनाकर 150 से 200 ग्राम यूरिया एवं 200 से 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग करना चाहिए जिससे, अधिकतम वजन के घौद (बंच) प्राप्त करने में आसानी होती है. उर्वरकों का चौथा हिस्सा केला में फूल निकलने से ठीक पूर्व देना चाहिए.
जब पौधे में फूल आ जाय, तब इसके बगल में दूसरा पौधा को उगने के लिए छोड़ना चाहिए. घौद (बंच) में अंतिम हथ्था के निकलने के लगभग एक हफ्ते बाद, नर फूल को 20-25 सेमी लंबी डंठल के साथ छोड़कर काट देना चाहिए. इसके बाद 2% पोटेशियम सल्फेट यानि 20 ग्राम पोटेशियम सल्फेट को प्रति लीटर पानी में घोलकर, इसमे स्टीकर मिलाकर गुच्छों पर छिडकाव करने से घौद के सभी फलों में अच्छा विकास होता है, 20-25 दिनों के बाद पुनः इसी घोल से (2% पोटेशियम सल्फेट) छिडकाव करना चाहिए. ऐसा करने से फलों के आकार, गुणवत्ता को बढ़ाने और घौद (बंच) के ग्रेड में सुधार होता है.
5. सिंचाई
केले को लगातार नमी की आवश्यकता होती है. मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली या मल्चिंग का उपयोग करें.
पानी की कमी से बचें, जिससे फलों का विकास ख़राब हो सकता है. इस समय 3 से 4 दिन के अंतर पर हल्की हल्की सिचाई करते रहना चाहिए.
6. कीट एवं रोग प्रबंधन
कीटों या बीमारियों के लक्षणों के लिए पौधों का नियमित रूप से निरीक्षण करें. रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए जैविक नियंत्रण सहित एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) रणनीतियों को अपनाएं.
यदि आवश्यक हो तो लेबल निर्देशों का पालन करते हुए उचित कीटनाशकों का उपयोग करें.
केला के घौद (बंच) को ढकने (कवर) से कीट खासकर स्कार्रिंग बीटल के हमले या फलों की सतह को किसी भी यांत्रिक चोट से बचाव होता है. इसके लिए 100 गेज मोटी सफेद या नीले पॉलिथीन के थैले जिसमे 6 प्रतिशत छेद हो का प्रयोग प्रभावी पाया गया है. केला के घौद (बंच) को आमतौर पर आखिरी हथ्था निकलने के और गुच्छा से नर फूल को हटाने के 5-7 दिन बाद 100 गेज मोटी सफेद या नीले पॉलिथीन से ढका जाता है, जिसमे लगभग 6 % छिद्र होते हैं. बिहार की जलवायु में, पॉलीथीन कवर केला के घौद (बंच) के वजन बढ़ाता है और गुच्छा को आकर्षक बनाता है और साथ ही 7-8 दिन पहले केला के फल परिपक्वता हो जाते हैं, ऐसा करने से केला के घौद का वजन भी बढ़ता है एवं घौद आकर्षक होते हैं.
7. सहायता प्रदान करें
पौधों को गुच्छों के भार से गिरने से बचाने के लिए बांस या रस्सियों के माध्यम से सहायता प्रदान करें.
8. खरपतवार नियंत्रण
केले के पौधों के आसपास के क्षेत्र को खरपतवार से मुक्त रखें, क्योंकि वे पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं.
9. रोग निवारण
बीमारी के दबाव को कम करने के लिए मृत पत्तियों और मलबे को हटाकर अच्छी स्वच्छता अपनाएं.हर समय कम से कम 13 से 14 स्वस्थ पत्तियों का होना आवश्यक है. सुखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों को समय समय पर काटते रहना चाहिए.पनामा रोग और सिगाटोका लीफ स्पॉट जैसी सामान्य बीमारियों को रोकने के लिए रोगनिरोधी उपचारों पर विचार करें.
10. कटाई
केले की कटाई तब करें जब वे पूरी तरह परिपक्व हो जाएं लेकिन फिर भी हरे हों. इन्हें बहुत लंबे समय तक पौधे पर छोड़ने से बचें, क्योंकि इससे कीट आकर्षित हो सकते हैं और गुणवत्ता कम हो सकती है.
गुच्छों को काटने के लिए एक तेज चाकू का उपयोग करें, तने का एक हिस्सा फल से जुड़ा छोड़ दें.
11. कटाई के बाद की देखभाल
चोट या क्षति से बचने के लिए केले को सावधानी से संभालें. केलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उन्हें ठंडे, हवादार क्षेत्र में स्टोर करें.
12. फसल चक्र
कटाई के बाद, मिट्टी की कमी को रोकने और बीमारियों के पनपने के जोखिम को कम करने के लिए फसल चक्र अपनाए.
13. रिकॉर्ड रखना
अपने केले के पौधों के प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए रोपण तिथियों, उर्वरकों के प्रयोग की तिथि, कीट और रोग प्रबंधन और फसल की पैदावार का रिकॉर्ड रखें.
14. सतत सीखना
केले की खेती में नवीनतम शोध और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में सतत जानकारी हासिल करते रहें. केले की खेती की तकनीक को बेहतर बनाने के लिए कार्यशालाओं में भाग लें या कृषि विशेषज्ञों से परामर्श लेंते रहे.
नोट: अगर आप बागवानी से जुड़ी फसलों की खेती करते हैं और इससे सालाना 10 लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं, तो कृषि जागरण आपके लिए MFOI (Millionaire Farmer of India Awards) 2024 अवार्ड लेकर आया है. यह अवार्ड उन किसानों को पहचानने और सम्मानित करने के लिए है जो अपनी मेहनत और नवीन तकनीकों का उपयोग करके कृषि में उच्चतम स्तर की सफलता प्राप्त कर रहे हैं. इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर विजिट करें.
Share your comments