Malbhog Variety of Banana: अपने असाधारण स्वाद और अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाने वाला मालभोग केला, केले की किस्मों में एक विशेष स्थान रखता है. मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, विशेष रूप से बिहार और असम में उगाया जाने वाला यह केला अपने समृद्ध स्वाद, बनावट और सुगंध के लिए जाना जाता है. सिल्क समूह के मशहूर केला मालभोग के संबंध में बताना चाह रहा हूं,जो बिहार में पनामा विल्ट रोग की वजह से लुप्त होने की कगार पर है. इसकी खेती हाजीपुर के आस पास के कुछ गांवों तक सीमित हो के रह गया है. यह मशहूर केला सिल्क (एएबी) समूह में आता है . इसमें मालभोग, रसथली, मोर्तमान, रासाबाले, एवं अमृतपानी, आदि केला आते है.
मालभोग बिहार की एक मुख्य किस्म है जो अपने विशिष्ट स्वाद एवं सुगन्ध की वजह से एक प्रमुख स्थान रखती है. यह अधिक वर्षा को सहन कर सकती है. इसका पौधा लम्बा, फल औसत आकार का बड़ा, छाल पतली तथा पकने पर कुछ सुनहला पीलापन लिए हुए हो जाती है. घौंद के 6-7 हथ्थों के फल की छिमियाँ पुष्ट होती है. घौंद के हथ्थे 300 के कोण पर आभासी तना से दिखते हैं. फल धीरे-धीरे पकते है तथा गुद्दा कड़ा ही रहता है. फलों के घौंद का वजन 15-25 किलोग्राम फल की संख्या लगभग 125 के आस पास होती है. बिहार में यह प्रजाति पानामा विल्ट की वजह से लुप्त होने के कगार पर है. फल पकने पर डंठल से गिर जाता है. इसमें फलों के फटने की समस्या भी अक्सर देखी जाती है.
मालभोग केला को प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है , जहां ड्वार्फ केवेंडिश समूह के केला 50 से 60 रुपया दर्जन बिकता है वही मालभोग केला 150 से 200 रुपया दर्जन बिकता है.आज के तारीख में बिहार में मालभोग प्रजाति के केले वैशाली एवं हाजीपुर के आसपास के मात्र 15 से 20 गावों में सिमट कर रह गया है इसकी मुख्य वजह इसमें लगने वाली एक प्रमुख बीमारी जिसका नाम है फ्यूजेरियम विल्ट जिसका रोगकारक है फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ एसपी क्यूबेंस रेस 1 है.
उत्पत्ति और वितरण
मालभोग केला, जिसे चंपा केला भी कहा जाता है, भारत का मूल निवासी है. इसकी खेती बिहार एवं असम के उपजाऊ मैदानों में व्यापक रूप से की जाती है, जहाँ जलवायु और मिट्टी की स्थिति केले की खेती के लिए आदर्श है. इन क्षेत्रों का गर्म और आर्द्र मौसम, जलोढ़ मिट्टी के साथ, मालभोग केले के विकास के लिए एकदम सही वातावरण प्रदान करता है.
भौतिक विशेषताएं
मालभोग केला अपने सुनहरे-पीले छिलके से आसानी से पहचाना जा सकता है, जो पूरी तरह से पकने पर काले धब्बों के साथ गहरे पीले रंग का हो जाता है. फल आकार में मध्यम से बड़े होते हैं, जिनका आकार थोड़ा घुमावदार होता है. अन्य केले की किस्मों की तुलना में छिलका अपेक्षाकृत पतला होता है, और गूदा मलाईदार सफेद, मुलायम और मीठा होता है जिसमें एक समृद्ध, सुखद सुगंध होती है.
पोषण मूल्य
मालभोग केले न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि अत्यधिक पौष्टिक भी होते हैं. वे विटामिन सी, विटामिन बी6, पोटेशियम और आहार फाइबर सहित आवश्यक विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत हैं. ये पोषक तत्व मालभोग केले को विभिन्न स्वास्थ्य पहलुओं के लिए फायदेमंद बनाते हैं, जैसे कि प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना, पाचन में सुधार करना और हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करना. उच्च पोटेशियम सामग्री रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करती है, जबकि आहार फाइबर एक स्वस्थ पाचन तंत्र को बनाए रखने में सहायता करता है.
पाक उपयोग
मालभोग केला अपने पाक अनुप्रयोगों में बहुमुखी है. इसे आम तौर पर इसके स्वादिष्ट स्वाद और बनावट के कारण ताजा खाया जाता है. इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जा सकता है, जिसमें मिठाई, स्मूदी और फलों के सलाद शामिल हैं. पारंपरिक असमिया और बिहारी व्यंजनों में, मालभोग केले का उपयोग कभी-कभी मिठाई और नमकीन व्यंजन तैयार करने में किया जाता है. पके केले को मैश करके पैनकेक, केक और फ्रिटर्स में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे प्राकृतिक मिठास और स्वाद मिलता है.
आर्थिक महत्व
मालभोग केले की खेती उन क्षेत्रों की स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जहां वे उगाए जाते हैं. कई छोटे और सीमांत किसान अपनी आजीविका के लिए केले की खेती पर निर्भर हैं. यह फल न केवल स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है, बल्कि भारत के अन्य हिस्सों और विदेशों में भी निर्यात किया जाता है, जिससे कृषक समुदायों के आर्थिक उत्थान में योगदान मिलता है.
चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं
अपनी लोकप्रियता और माँग के बावजूद, मालभोग केले की खेती कई चुनौतियों का सामना करती है. इनमें पनामा रोग या फ्यूजरियम विल्ट और केले के बंची टॉप वायरस जैसी बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता, साथ ही कीटों का हमला शामिल है. जलवायु परिवर्तन और अनियमित मौसम पैटर्न भी केले की खेती के लिए खतरा पैदा करते हैं. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, शोधकर्ता और कृषि वैज्ञानिक प्रजनन और जैव प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से रोग प्रतिरोधी और उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित करने पर काम कर रहे हैं. नुकसान को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि फल उपभोक्ताओं तक सर्वोत्तम संभव स्थिति में पहुंचे, कटाई के बाद के प्रबंधन में सुधार करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं. उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों से किसानों को अवगत कराने के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है.
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