सघन बागवानी पद्धति में कुछ कार्य करने पड़ते हैं जिनमें पौधों को आकार देना और पौधों की समय पर काट-छांट करना भी सम्मिलित है। कटाई-छंटाई पौधे की पैदावार तथा फलों की गुणवत्ता को बढ़ाती है। नियमित रूप से कटाई-छंटाई करने से धूप व हवा आसानी से पेड़ के हर भाग को मिलती रहती है। बाग लगाने के आरम्भ के सालों में काट-छांट पौधे को मजबत आकार देने के लिए की जाती है जिसे ट्रेनिंग कहते हैं।
बाद में पौधे में काट-छांट अनउपजाऊ टहनियों, बीमार व मरी हुई टहनियों को काटने के लिए की जाती है जिससे फलदार टहनियों की मात्रा बढ़ जाती है तथा फलों को पर्याप्त हवा एवं धूप मिलती रहती है जिससे फलों का अच्छा रंग बनता है और फलों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। सामान्यतः आरम्भ की काट छांट (ट्रेनिंग) साल के किसी भी माह में कर सकते हैं परन्तु फल देने वाले पौधे में काट-छांट, सदाबहार पौधे में फलों की तुड़ाई के बाद और पत्तियां गिराने वाले पौधों में जब पेड़ की पत्तियां गिरा दे तब की जाती है।
नियमित कटाई न करने के कारण अन्दर का भाग खाली हो जाता है तथा कुछ ही वर्षों में शीर्ष फलन होने लगती है इसलिए पौधों की नियमित काट-छांट करनी चाहिए। फलदार पौधों की काट-छांट इस प्रकार करें:-
आड़ू: आड़ू में खाली शीर्ष विधि ही सबसे अच्छी विधि है। इस विधि में बीच वाला शीर्ष 45 से.मी. पर काट दिया जाता है इसके बाद चारों दिशाओं में चार टहनिया रखी जाती हैं। हर वर्ष कटाई के समय में सभी टहनियों को एक तिहाई काट दिया जाता है। ऊपर की टहनियों को 15 से.मी. भाग रख कर काट दिया जाता है।
काट-छांट दिसम्बर में पत्ते झड़ने पर करनी चाहिए।
नाशपाती : नाशपति में मोडीफाईड लीडर प्रणाली से पौधे को आकार दिया जाता है। इस प्रणाली में पौधों को जमीन से 60 से 90 से.मी. की ऊंचाई पर काट दिया जाता है इसके बाद 3-5 टहनियां चारो दिशाओं में फैली हुई हो, को रखा जाता है।
पुराने पौधों में दिसम्बर के माह में मध्यम काट-छांट करनी चाहिए। अधिक फलदार टहनियां लेने के लिए पीछे की टहनियों को काट-छांट कर हटा देना चाहिए।
अलूचा: अलूचा के पौधों की प्रायः मोडीफाईड लीडर प्रणाली से ट्रेनिंग की जाती है। अलूचा का फल एक साल पुरानी छोटी स्पर पर लगता है इसलिए हर साल दिसम्बर जनवरी माह में हल्की काट-छांट करनी चाहिए। जिससे हर साल फल लगते रहे। धूप एवं हवा आसानी से मिलती रहे इसलिए सीधी बढ़ती हुई टहनियों को निकाल देना चाहिए। अच्छी धूप व हवा मिलने से फलों में रंग अच्छा बनता है और फलों के गुणों में सुधार होता है। तने और मुख्य शाखाओं पर निकलने वाली पानी खींचने वाली टहनियों को काटते रहना चाहिए।
अनार: अनार के पौधों को झाड़ीनुमा आकार में तैयार किया जाता है इसके लिए जमीन की वतह से कई मुख्य तने बढ़ने दिये जाते हैं। पौधे को लगाते समय ही साइड की शाखाओं को काट दिया जाता है और मुख्य तने को एक मीटर की ऊंचाई पर काट दिया जाता है। कटे हुए भाग से 25-30 से.मी. नीचे 4-5 शाखाओं को जोकि चारो दिशाओं में फैली हो, को बढ़ने दिया जाता है। इस तरह 2-3 साल में पौधे का आकार बन जाता है।
अनार के पौधे में स्वाभाविक काट-छांट करने की आवश्यकता नहीं होती केवल आकार देने के लिए और बीमारी लगे हुए भाग को हटाने के लिए काट-छांट की जाती है। टहनियों के आगे के भाग को ज्यादा काटने से पत्तों की बढ़वार ज्यादा होती है तथा फल नहीं लगते जिससे फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
अच्छा ढांचा बनाये रखने के लिए और फसल लेने के लिए प्रत्येक वर्ष नई शाखाएं पौधे के चारो तरफ लेनी चाहिए।
फालसा: फालसा में कटाई-छंटाई का अधिक महत्व है। हर वर्ष दिसम्बर जनवरी के माह में जब पौधा सुशुप्त अवस्था में होता है, पौधे में काट-छांट की जाती है। पौधे लगाने के आरम्भ के वर्षों में पौधे को आकार देने के लिए कटाई-छंटाई की जाती है। फालसा में दो तरह की किस्में होती हैं लम्बी एवं बौनी किस्में। आकार देने के लिए लम्ब्ी किस्मों को जमीन से 0.9-1.2 मीटर की ऊंचाई पर काटा जाता है और बौनी किस्मों को 40-60 से.मी. की उंचाई पर काटा जाता है।
बेर: बेर के पौधों को आरम्भ में सहारे के जरूरत पड़ती है, लकड़ी या बांस के सहारे बांध देना चाहिए जिससे पौधा सीधा बढ़ सके। मुख्य तने से केवल 3-4 शाखाएं जो कि जमीन से 75 से.मी. ऊंचाई पर हो को ही बढ़ने देना चाहिए। बेर का पेड़ गर्मी के मौसम में अपनी पत्तियां गिरा देता है और इस समय मई से जून के बीच में ही बेर की कटाई छंटाई करनी चाहिए। बेर में कटाई छंटाई का विशेष महत्व है क्योंकि नई शाखाओं पर पत्तियों के कक्ष में ही फूल निकलते हैं। इसकी कारण पिछले वर्ष की टहनियों को काटना चाहिए एवं काटते समय पिछले वर्ष की प्राथमिक शाखाओं से निकली छटी से आठवीं द्वितियक शाखाओं के ऊपर से काटना चाहिए।
रिन्कु रानी, जीत राम शर्मा, अन्नू
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