पपीता स्वादिष्ट होने के साथ साथ हमारी सेहत के लिए भी लाभकारी है. यह हमारे देश के पांच प्रमुख फलों में से एक है. पपीता के पौधों को अकेला अथवा दूसरे फलदार पौधों जैसे आम, अमरूद, अनार, नीम्बू इत्यादि के बीच में इंटरक्रोपिंग के रूप में आसानी से उगाया जा सकता है. इसके पौधे से रोपण के 8-10 माह बाद फल प्राप्त होने लगते हैं.
जलवायु (Climate)
पपीता उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला फल है, परन्तु इसको सम-षीतोष्ण जलवायु में भी आसानी से उगाया जा सकता है. पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए 24-28 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त पाया गया है. इसकी फसल पर पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है अतः जब रात्रि मे तापमान 12 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है तो पौधों की वृद्धि तथा फलोत्पादन के लिए घातक है.
भूमि (Soil)
इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली हल्की दोमट या दोमट मृदा जिसका पी.एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो उत्तम मानी जाती है. पपीते के पौधे जल भराव के लिए संवेदनशील होते हैं अतः वह क्षेत्र जहां पानी रुकने की संभावना होती है, इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता हैं.
किस्में (Varieties)
पूसा डेलिशियस, ताइवान 786 (रेड लेडी), पूसा मैजेस्टी, पूसा जाइन्ट, पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, कुर्ग हनी ड्यू, सूर्या, को. 1, को.2, को.3, इत्यादि इसकी बेहतरीन किस्में है.
प्रवर्धन का तरीका (Method of propagation)
पपीता का प्रवर्धन बीज के द्वारा किया जाता है. सामान्य रूप से पपीता के एक ग्राम में लगभग 60 से 70 बीज होते है. नए बीज उपयोग करना चाहिए क्योंकि लगभग 6 महिने बाद अकुंरण क्षमता में कमी आने लगती है. एक हेक्टर खेत में पपीता लगाने के लिए लगभग 2500 सें 3000 पौधों की आवश्यकता होती है, जोकि गायनोडायोसियस किस्मों मे लगभग 80-100 ग्राम बीजों से प्राप्त हो जाते हैं जबकि परंपरागत किस्मों के लिए 400-500 ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है.
नर्सरी तैयार करना (Nursery preparation)
पपीते के पौधे जल्दी ही तैयार होने वाले होते हैं अतः बीजों को नर्सरी में मुख्य खेत में रोपने की निर्धारित तिथि से दो महीने पहले बोना चाहिए. दो महीने के पौधो की ऊँचाई लगभग 15-20 सेमी तक हो जाती है. पपीते की पौध क्यारियों, पालिथिन की थैलियों एवं प्रो ट्रे में तैयार की जा सकती हैं. बीजों को बुवाई से पहले किसी फफूंदनाशी दवा कार्बेण्डजीम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 6 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित कर बोना चाहिये. ट्राइकोडर्माका प्रयोग गोबर में मिला कर भी किया जात है. बीजों को बोने के लिये 1.5-2 सेमी गहरी तथा 15 सेमी की दूरी रखते हुए कतारे तैयार कर लें.
खेत की तैयारी एवं पौध रोपण (Field preparation and transplanting)
पपीते के पौधे लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसे समतल कर लेना चाहिए ताकि सिंचाई के समय या वर्षा ऋतु में जलभराव न हो. पपीता का पौधा मुख्य खेत में लगाने के लिए 2X 2 मीटर की दूरी पर 50X 50X 50 सेमी आकार के गड्डे खोद लें, लेकिन बौनी किस्मों जैसे पूसा नन्हा के लिए यह दूरी 1.5X 1.5 मीटर की ही दूरी रखें.पौधों की रोपाई करते समय यह ध्यान रखे की डायोसियस किस्म के 2-3 पौधे तथा गायनोडायोसियस किस्म में एक पौधा प्रति गड्डे में लगाना चाहिए. रोपण के बाद प्रत्येक पौधे की हल्की सिंचाई करनी चाहिए.
इंटरक्रोपिंग (Intercropping)
दो फलदार बड़े पेड़ो के बीज पपीता आसानी से उगाया जा सकता है और यदि पपीता को मुख्य फसल के रूप में उगाया गया है तो कतारों के मध्य में दलहनी फसलें जैसे मटर, मेथी, चना, फ्रेंचबीन व सोयाबीन आदि आसानी से उगा सकते हैं. कुछ सब्जियां भी जिनमें कीट व बीमारियों की समस्या कम आती है को उगा सकते हैं. मिर्च, टमाटर, बैंगन, भिंडी आदि फसलों को पपीते के पौधों के बीच इंटर क्रोपिंग के रूप में न उगायें.
सिंचाई (Irrigation management)
पपीता उथली जड़ वाला पौधा होने के कारण सही समय पर पानी देना जरूरी होता है. गर्मी के दिनों में लगभग एक सप्ताह के अंतराल पर तथा जाड़े के दिनों में 12-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. साथ ही ऐसे क्षेत्र जहां पानी भराव की समस्या ज्यादा होती है वहां पर जल की निकासी के लिए कतारों के मध्य में नालियां बना देनी चाहिए.
खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizers)
खेत तैयार करते समय 10 से 15 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिला देवें, इसके अलावा प्रत्येक फलने वाले पेड़ों को 200-250 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस तथा 250 से 500 ग्राम पोटाश देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है.
पाले से पौधों की रक्षा(Protect plants from frost)
पपीता के पौधों पर पाले का काफी विपरीत प्रभाव पड़ता है सर्दियों में जबतापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाने लगता है तो पाले के कारण कई बार पूरी फसल ही खत्म हो जाती है. अतः पौधो को पाले से समय पर बचाव बहुत जरूरी है. नवम्बर के अंत में जब तापमान गिरने लग जाता है तीन तरफ सें घास-फूस एवं मंजे की टाटी लगाकर अच्छी प्रकार से ढक देना चाहिये. पाले से बचाव के लिए कुछ अन्य तरीके जैसे बागों में पाला पड़ने की सम्भावना होने पर सिंचाई कर दें अथवा रात्री में घास-फूस जलाकर धुंआ कर देने से भी पौधो को ठंड़ से बचाया जा सकता है.
निराई-गुड़ाई (Hoeing and weed management)
पौध रोपण के कुछ समय पश्चात् पौधो के आस-पास विभिन्न प्रकार के खरपतवार उग आते हैं जो कि पौधों के साथ-साथ पोषक तत्वों,स्थान, नमी, आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते रहते है, साथ ही साथ विभिन्न प्रकार की कीट एवं बीमारियों को भी पनपने का मौका देते है.निराई-गुड़ाई करते समय पौधों के तने के पास में मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए जिससे वो पानी के सीधे सम्पर्क में न आये.
फलों का विरलीकरण (Thinning)
अगर फलों के गुच्छे में ज्यादा फल लगे हो तो उनकी उचित बढ़वार नहीं हो पाती है. इसके लिये अच्छे आकार के फल लेने के लिए बीच-बीच से फलों को निकाल कर एक गांठ पर दो-दो फल विपरीत दिशा में छोड़ देना चाहिये. जिससे फलों का आकार एवं गुणवत्ता बढ़ जायेगी.
पपीता के प्रमुख कीट एवं बीमारियां (Papaya's major pests and diseases)
आर्द्रगलन रोग (Damping off):
नर्सरी में लगने वाला यह भयंकर रोग है जो कि पीथियम एफैनिडरमेटनम नामक कवक के कारण होता है. इसका प्रभाव नये अंकुरित पौधे पर ज्यादा होता है, इस रोग के कारण पौधे का तना जमीन के पास से काला होकर सड़ जाता है और कुछ समय बाद पौधा मुरझाकर गिर जाता है. इसके नियंत्रण के लिये नर्सरी में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए. साथ ही जहां तक हो सके नर्सरी की मिट्टी को बीजों की बुवाई से पूर्व फारमेल्डिहाइड दवा (2.5 प्रतिशत घोल) से उपचारित कर पालिथीन से 48 घंटों के लिए ढ़क देना चाहिए.यदि लक्षण दिखाई दे तो कार्बेण्डजीम 50 डबल्यूपी या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP मिश्रण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी से ड्रेंचिंग करें या पानी जड़ों में दे.
तना एवं जड़ सड़न रोग (Collar rot)
यह रोग भूमि जनित कवक पीथियम एफैनिडरमेटम के कारण होता है. सर्वप्रथम इस रोग के कारण तने पर जलीय रूप में धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़कर चारों तरफ फैल जाता हैं. इस रोग के कारण जड़े गलने लगती है साथ ही पौधे की पत्तियाँ भी पीली पड़ने लगती है और पौधा असमय ही नीचे गिर जाता है. इसके नियंत्रण के लिये खेत में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए. रोगी पौधों को जड़ सहित उखाड़कर जला देना चाहिए, और रोगी पौधों के स्थान पर दूसरे नये पौधे नहीं लगाना चाहिए. यदि तने में धब्बे दिखाई देते हों तो कार्बेण्डजीम 50 डबल्यूपी या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP मिश्रण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानीका घोल बनाकर पौधे के तने के पास मिट्टी में छिड़काव करना चाहिए.
पपीता का मौजेक रोग (Mosaic disease of Papaya)
इस रोग का प्रकाप पौधे के सभी अवस्थाओं में हो सकता है, परन्तु यह नये पौधे को काफी प्रभावित करता है. ऊपर की नयी पत्तियाँ आकार में छोटी हो जाती है तथा फफोलेकी तरह धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं. पौधे की वृद्धि काफी कम तथा फल के आकार छोटे हो जाते हैं. इस रोग को फैलाने वाला कीट एफिड होता हैं. अतः रोकथाम के लिये रोगग्रसित पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दें. नीम आधारित कीटनाशी का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधे पर छिड़काव करें .या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. का 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
पपीता में मिलीबग (Mealy bug)
यह एक छोटा सा पॉलीफेगस रस चूसने वाला कीट होता है इससे प्रभावित भाग पर कपास जैसे अपव्यय पदार्थ दिखाई देता है. यह कीट पौधे के ऊपरी भाग से रस चूसता हैं जिससे तना कमजोर हो जाता है साथ ही प्रभावित पत्तियां भी ऐंठ जाती है एवं यह पीली पड़कर सुखने लगती इस कीट का प्रभाव गर्म एवं शुष्क मौसम में ज्यादा होता है.
मिलीबग को शुरुआती अवस्था में आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है. इसके लिए पौधों की प्रभावित शाखाओं को काटकर जला देवें या दबा दें जिससे यह अन्य पौधों में ना फैले. मिलीबग कीट घास या खरपतवारों पर रहना पसंद करता है अतः इनको समय पर हटाते रहे. कीटनाशक जैसे नीम तेल 1 से 2 %उपयोग करें. यदि कीट फिर भी नियंत्रित नही होता है तो प्रोफेनोफॉस 50 ईसी या क्लोरोपाइरीफोस 20 ईसी या ब्यूप्रोफेजिन 25 ईसी, या डायमिथोएट 30 ईसी या इमिडाकलोप्रिड दवा 2 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.
पपीता के फलों की तुड़ाई एवं उपज (Harvesting and yield of Papaya)
पपीता का पौधों में रोपण के लगभग 7-10 महीनों के अन्दर फल लगने प्रारम्भ हो जाते है.फल लगने के 120-130 दिन के बाद वो पकने लगते हैं उस समय इन्हें तोड़ लेना चाहिए. फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है यह रंग फल के शीर्ष भाग सें बदल जाता है. जब पीलापन शुरू हो जाये तब डण्ठल सहित फल की तुड़ाई कर लें.फल पर नाखुन लगाकर भी फल पकने की पहचान कर सकते हैं इसमें फल से दूध की जगह पानी तथा तरलपदार्थ निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया है. सामान्यतः पपीता से प्रति पौधा लगभग 50 से 70 किग्रा. उपज प्राप्त हो जाती है.
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