भारतवर्ष में गेंदा हर घर में हर मौके पर इस्तेमाल होने के कारण अब यह एक व्यावसायिक नकदी फसल बन गया है। यह फूल सजावटी गमलों में भी प्रयोग किया जाता है साथ ही यह गमलों की दहलीज पार कर बड़े बड़े खेतों में पहुंच गया है। गेंदा की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह वर्ष के बारहों महीनों फूल देता है। जिन महीनों मे कोई अन्य फूल नहीं मिलते हैं उन दिनों में भी गेंदा का फूल सहज ही उपलब्ध होता है। गेंदा हर मौसम में प्राप्त होने के साथ साथ इसकी दूसरी विशेषता है कि यह कई दिनों तक ताजा बना रहता है। गेंदे का पौधा हर प्रकार की जलवायु के प्रति सहनशील होता है तथा लम्बे समय तक फूलता रहता है।
गेंदे का उपयोग विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सजाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग मंदिरों में पूजा के लिए तथा मंदिर को सजाने में भी किया जाता है। विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों में स्वागत हेतु भी गेंदे की फूल का माला बनाकर किया जाता है। पर गेंदे का अत्यधिक प्रयोग खासकर शादी ब्याह में मंडप सजाने, गाड़ी सजाने तथा वरमाला आदि बनाने में होता है।
भूमि का चुनाव व उसकी तैयारी:- गेंदे की खेती को विभिन्न प्रकार की भूमि में किया जा सकता है। पर उचित वानस्पतिक वृद्धि एवं फूलों के समुचित विकास के लिए उचित धूप वाला स्थान सर्वोत्तम माना जाता है। गेंदे की खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 5.6 से 6.5 के बीच हो, अच्छी होती है। क्षारीय और अम्लीय भूमि इसकी व्यावसायिक खेती के लिए बाधक मानी जाती है इसलिए भूलकर भी ऐसी भूमि में गेंदे की खेती नहीं करना चाहिए। पौधों की रोपाई के पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिटटी को भुरभुरी बना लेना चाहिए।
जलवायु:- गेंदे की साल भर, तीनों ही ऋतुओं में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके अच्छी पौदावार के लिए शरद ऋतु उपयुक्त पाई जाती है। इसका पौधा पाले से प्रभावित होता है.
बीज की मात्रा:- गेंदे की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 300-450 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। गेंदे का बीज एक वर्ष से अधिक समय तक अंकुरण क्षमता बनाए रखने वाले होते हैं। इसके बावजूद बहुत पुराना बीज नहीं लगाना चाहिए क्योंकि पुराने बीज की अंकुरण क्षमता घट जाती है।
गेंदे की उन्नत किस्में:- अधिक उपज लेने के लिए परम्परागत किस्मों की जगह केवल सुधरी उन्न किस्मों की ही खेती करनी चाहिए। गेंदे की मुख्यतः दो प्रजातियां अफ्रीकन गेंदा और फ्रांसीसी गेंदा होती है।
अफ्रीकन गेंदा - इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 60 से 80 सेमी तक पायी जाती है। इसके पौधे अनेक शाखाओं से युक्त होते हैं। इसके पुष्प् का आकार बड़े, गुत्थे हुए एवं विभिन्न रंगो जैसे-पीले, नांरगी होते हैं। इसके फूल गोलाकार बहुगुणी पंखुड़ियों वाले होते है। बड़े आकार के फूलों का व्यास 7-8 सेमी तक होता है। इसमें कुछ बौनी किस्में भी होती हैं जिनकी ऊंचाई सामान्यतः 20-25 सेमी तक होती है।
प्रमुख प्रजातियां:- पिस्ता, येलो, सुप्रीम, जीनिया गोल्ड, क्राउन आफ गोल्ड, मैलिंग स्माइल, नांरगी जाइंट डबल पीला, क्राउन आफ गोल्ड येलो स्पेन, फस्र्ट लेडी और सपन गोल्ड।
फ्रांसीसी गेंदा:- इस प्रजाति की ऊंचाई लगभग 20-25 सेमी तक की बौनी तथा छोटे फूलों वाले होते हैं। इसमें अधिक शाखाएं नहीं होती हैं किन्तु इनमें इतने अधिक पुष्प् आते है कि पूरा का पूरा पौधा पुष्पों से ढंक जाता है। यह प्रजाति अफ्रीकन गेंदे की अपेक्षा व्यावसायिक दृष्टि से अधिक लाभदायक है क्योंकि यह प्रजाति जल्दी व अधिक फूल देने वाली किस्म है।
प्रमुख प्रजातियां:- बोलेरो, बटरस्काच, बटरवाल, ब्राउन स्काउट, गोल्डन और गोल्डन जेम, स्टार ऑफ़ इंडिया, येलों क्राउन, रेड हेट आदि।
इसके अतिरिक्त भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा भी गेंदे की दो किस्में पूसा नांरगी गेंदा और पूसा बसंती गेंदा निकाली गई है।
नर्सरी एवं पौध तैयार करना:- बीज बोने से पहले जमीन को 2 प्रतिशत फार्मेलीन से उपचारित कर लेना चाहिए। तत्पश्चात जमीन के दो दिन तक पालीथीन या प्लास्टिक के बोरे के ढंककर रखना चाहिए। इसके बाद जमीन को सुखाकर 3 मीटर लम्बा 1 मीटर चौड़ी क्यारी बना लेते हैं। दो क्यारियों के मध्य 1 फीट का अंतर रखते हैं जिससे पानी देने एवं निदाई गुड़ाई आसानी से किया जा सके। नर्सरी की क्यारियों में 10 किग्रा सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह मिला लेना चाहिए। बीज को 3-4 सेमी की गहराई मे बोना चाहिए। तथा कतार से कतार की दूरी 5 सेमी रखनी चाहिए। बुआई के बाद हल्की भुरभुरी गोबर की खाद से ढंककर सिंचाई करके सुखे घास से ढंक देते हैं, ताकि बीजों का अंकुरण अधिक एवं समान हो।
पौध रोपण समय एवं दूरी:- नर्सरी में बीज बोने के 30-35 दिनों के बाद जब तीन-चार पत्तियां पौधों पर हो जाये तो पौधा रोपाई के लिए तैयार हो जाता है। गेंदा के पौधों की रोपाई समतल क्यारियों में की जाती है। रोपाई की दूरी गेंदे की किस्म पर निर्भर करता है। अफ्रीकन गेंदे में पौधों की दूरी 30 सेमी एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी रखी जाती है जबकि फ्रांसीसी गेंदे में यह दूरी 30 सेमी रखते हैं। रोपण का कार्य सांयकाल के समय करना चाहिए। नर्सरी से पौधे उखाड़ते समय हल्की सिंचाई कर देने से उखाड़ते समय पौधों की जड़ों को क्षति नहीं पहुंचता है। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक है।
ऋतु |
बुवाई का समय |
रोपण |
शीत |
मध्य सितम्बर |
मध्य अक्टूबर
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ग्रीष्म |
जनवरी-फरवरी |
फरवरी-मार्च |
वर्षा |
मध्य जून |
मध्य जुलाई
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गेंदा में पोषक तत्व: - अधिक उत्पादन एवं वृद्धि के लिए नत्रजन, फास्फोरस एंव पोटाश की अतिरिक्त मात्रा की आवश्यकता होती है। जिस भूमि में गेंदे की खेती करनी हो सर्वप्रथम उसमें से फसलों के अवशेष, कंकड़ पत्थर और खरपतवार आदि को चुनकर निकाल देना चाहिए। भूमि की तैयारी से पहले 20 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए। खेत में प्रति हेक्टेयर 350-400 किग्रा नत्रजन, 200-250 किग्रा फास्फोरस एवं 200-250 किग्रा पोटाश रोपाई के पूर्व भूमि में डालकर मिला देना चाहिए। तत्पश्चात खेत में सिंचाई की नलियां तथा क्यारियां बना लेनी चाहिए।
सिंचाई तथा निदाई गुणाई:- गेंदे की फसल में सिंचाई का विशेष महत्व है। सिंचाई की मात्रा फसल की किस्म और मौसम की दशा पर निर्भर करती है। आमतौर पर वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है पर फिर भी काफी समय तक वर्षा न हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए। जाड़े में 8-10 दिन तथा गर्मी 5-6 दिन के अंतर पर सिंचाई करने से फूल का उत्पादन अच्छा होता है। आवश्यकता से अधिक पानी देने से फसल को क्षति हो सकती है। खेत में भूसा, पुवाल एवं कागज की तह बिछा देने पर पानी की आवश्यकता कम पड़ती है। गेंदे की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं जो मुख्य फसले के साथ प्रकाश, पोषक तत्व तथा स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। अच्छे पुष्पोत्पादन हेतु 2 से 3 बाद निदाई गुड़ाई करनी चाहिए। अमोनियम सल्फेट की कुछ मात्रा डालने से फूल अच्छे किस्म व भरपूर खिलते हैं।
पौधों को सहारा देना आवश्यक:- गेंदे के पौधों की बढ़वार अधिक तेजी से होती है। पौधों पर अधिक संख्या में फूल खिलने से वजन बढ़ जाता है जिससे उनके गिरने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में गेंदे के पौधों के साथ बांस की पट्टियां गाड़कर बांध देना चाहिए जिससें पौधे टूटे नहीं।
पौधों की शीर्ष कलियों की कटाई:- अच्छे पुष्पोत्पादन हेतु अफ्रीकन गेंदे की किस्मों को लगाने के 30-40 दिनों के बाद जब प्रथम कली दिखाई पड़े, तो शाखाओं की शीर्ष कलिकाओं के अग्र भाग को ऊपर से दो तीन सेमी काटकर हटा देने से शाखाएं अधिक संख्या में निकलती है और पौधे अधिक घने एवं झाडीदार हो जाते है जिससे फूलों की संख्या तथा आकार बढ़ जाता है और फूलों की कुल उपज बढ़ जाती है।
रोग एवं नियंत्रण:- गेंदा में मुख्य रूप् से आर्द्रपतन (डैम्पिंग ऑफ़) पद गलन (कॉलर राट), फ्यूजेरियम विल्ट (उकठा) एवं विषाणु रोग आदि लगते हैं। आर्द्रगलन एवं कॉलर राट के नियंत्रण के लिये मेटालेक्सिल (एप्रान) या केप्टान के 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उकठा रोग से बचाव के लिये बीजों को थायरम या केप्टान (2 से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) द्वारा उपचारित कर लेवें। विषाणु जनित रोगों के नियंत्रण हेतु रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देवें तथा जरूरत पड़ने पर इमिडाक्लोप्रिड, एसिटामिप्रिड या थायोक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
कीट व्याधियाँ एवं नियंत्रण:- कलिका भेदक, पर्ण फूदका, थ्रिप्स, लाल भुड़ली एवं रेड स्पाइडर माइट आदि गेंदा को अर्थिक हानि पहुँचाते हैं। कलिका भेदक एवं लाल भुड़ली के नियंत्रण हेतु इन्डोक्साकार्ब, क्लोरान्ट्रानिलिप्रोल या फ्लुबेन्डामाइड का छिड़काव करें, जबकि रेड स्पाइडर माइट के लिये स्पाइरोमेसिफेन या फेनपायरोक्सिमेट का छिड़काव करें।
फूलों की तोड़ाई, उपज:- गेंदे की पौधे रोपने के 60-70 दिन बाद फूल देना शुरू कर देते हैं। फूलों को तब तोड़ना चाहिए जब वे पूर्णरूपेण विकसित हो जायें। गेंदे के फूलों को सुबह शाम को तोड़ना चाहिए। फूलों की तोड़ाई के समय यदि खेत में नमी हो तो प्राप्त फूल अधिक समय तक ताजा बने रहते हैं। गेंदे की फूलों की उपज उगाई गई किस्म, भूमि की उर्वरा शक्ति और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। सामान्यता प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल फूल की उपज होती हैं ।
भण्डारण:- टूटे हुए फूलों का भण्डारण शीत गृह में 0 डिग्री सेल्सियस से 1.6 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर किया जाता है।
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