उत्तर भारत में जाड़े के मौसम में कई परिवर्तन देखने को मिलते हैं. कभी-कभी तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है. वहीं, कई बार तो कई दिनों तक कोहरा छाया रहता है. इससे फलों के बागों को कई प्रकार के रोगों के लगने की संभावना होती है.
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसके सिंह के अनुसार सर्दियों खासकर दिसंबर-जनवरी के माह में अमरूद के बाग में रोगों के प्रकोप की संभावना अधिक रहती है. अमरूद के पेड़ों में से तो तो कोहरे और ठंड के कारण दूध जैसा स्त्राव होने लगता है. इसकी वजह से पौधे पीले होकर ठिठुरने लगते हैं. लेकिन किसान यदि समय रहते ये उपाय करें तो अमरूद की फसल को सर्दियों में रोगमुक्त रखा जा सकता है.
फल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह के मुताबिक, जनवरी में अमरूद की पत्तियों पर कत्थई रंग आना सूक्ष्म तत्वों की कमी के कारण होता है. ऐसे में कॉपर सल्फेट और जिंक सल्फेट की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
यदि आप बरसात के मुकाबले जाड़ें में अमरूद के बाग से अच्छा उत्पादन लेना चाहते हैं तो फलों की तुड़ाई करने के बाद नेप्थेलिन एसिटिक एसिड (100 पीपीएम) का छिड़काव करें और सिंचाई कम कर दें. इसके साथ ही पिछले मौसम में निकली कलंगियों की शाखाओं के अगले हिस्से को 10-15 सेंटीमीटर तक छांट दें. इससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है और फल भर-भरकर आते हैं.
रोगग्रस्त शाखाओं की कटाई-छंटाई के बाद करते रहें निराई-गुड़ाई
बागवान टूटी हुई, रोगग्रस्त और आपस में उलझी हुईं शाखाओं को भी काटकर पेड़ों से अलग कर दें. पेड़ की छंटाई के तुरंत बाद कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसके साथ ही बोर्डो पेस्ट का शाखाओं के कटे भागों पर लेप लगाना फायेदेमंद रहता है. बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य करें. सीजन में अमरूद के नवरोपित बागों की सिंचाई करना भी लाभकारी होता है.
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ऐसे करें फलों का भंडारण
फल वैज्ञानिक के मुताबिक, जनवरी में अमरूद के बाग से फलों की तुड़ाई काम करनी चाहिए. तुड़ाई का सबसे अच्छा समय सुबह का होता है. इस समय फलों से अच्छी सुगंध भी आती है. पके फलों को तोड़े गए अन्य फलों के साथ न रखें. प्रत्यके फल को अखबार में रखें. इस फलों का रंग सुंदर रहता है. पेटी के आकार के अनुसार ही उसमें फलों को रखें.
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