पौधों को आवश्यकतानुसार समय पर सिंचाईं, निराई, गुड़ाई तथा खाद देना चाहिए। जल प्ररोह को पौधों से काटकर अलग कर देना चाहिए तथा ढांचे को ठीक बनाने हेतु थोड़ी मात्रा में कटाई एवं छटाई करते रहना चाहिए। पौधों के चारों ओर थाले बनाए जाते हैं तथा इन्हीं थालों में निराई-गुड़ाई, सिंचाईं एवं खाद देते हैं। पौधों के फैलाव के अनुसार थालों का आकार बढ़ाते जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में पौधों को जाड़ों के दिनों में 15-20 दिन एवं गर्मियों में एक सप्ताह के अंदर के अंतर से सिंचाईंयां देते हैं। लगभग तीन सिंचाईयों के उपरान्त खरपतवारों को निकालकर थालों की मिट्टी को गाड़ देते हैं।
खाद-देना-
पौधों को वर्षा ऋतु के प्रारंभ में गोबर की खाद देना उचित समझा जाता है। उद्दान एक्सपर्ट के अनुसार एक वर्ष पुराने पौधों को अच्छी सड़ी हुई खाद देनी चाहिए। खाद की यह मात्रा 45 किग्रा प्रति पौधा हो जाती है। यह मात्रा पूरे जीवनकाल देते रहते हैं।
3 से 4 वर्ष पूर्ण कर चुके पौधो को अमोनियम सल्फेट 5.7 किग्रा/पौधा वर्ष में दो बार देना चाहिए।
सहफसल- अगर उद्दान की मिट्टी अधिक कमजोर होती है तो पौधों के बीच मटर, मूंग, बरसीम इत्यादि उगाना चाहिए। अच्छी मिट्टी वाले उद्दानों में फूलगोभी, मूली, गाजर इत्यादि पैदा की जाती है।
मयंक तिवारी, कृषि परास्नातक शोध छात्र, आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्दालय झांसी
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