देश में इन दिनों किसानों के बीच एक प्रचलन देखने को मिल रहा है. और यह प्रचलन है हमेशा कुछ नई-नई चीजों की खेती के प्रयास करना. किसान भी अब बाजार के माहौल के अनुसार खेती करना चाहते हैं. इन दिनों भारत में विदेशी सब्जियों ने धूम मचा रखी है और किसान इस अपना भी रहे हैं. वैसे सब्जियों की अगर बात करें तो यह विटामिन्स का एक बहुत बड़ा स्रोत होती हैं. विदेशी सब्जियों की मांग रेस्तरां, होटलों, और अन्य जगह काफी बढ़ी हैं जिसके वजह से देश में इसकी खेती में बढ़ावा मिला है. और देश में विदेशी सब्जियों की उपयोग इतनी बढ़ी है की इसका बाज़ार दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.
देश में कई राज्यों के किसान जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के किसान विदेशी प्रजातियों वाली सब्जियां उगाकर लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. विदेशी सब्जियां उगाने में परंपरागत खेती की तुलना में कई तरह की कठिनाइयां होती हैं लेकिन इसमें भरपूर मुनाफे के साथ कई विशेष सुविधाएं भी होती हैं. जैसे कि यह सभी सब्जियां छत पर गमलों में भी उगाई जा सकती हैं. इन सब्जियों में विटामिन ए, सी के साथ-साथ लौह, मैग्नेशियम, पोटाशियम, जिंक आदि बहुत मात्रा में उपलब्ध होती हैं जिसकी वजह से भी इनकी मांग ज्यादा होती हैं.
विदेशी सब्जियों के मुख्य प्रकार :
देश में अनेक प्रकार की विदेशी सब्जियां उपलब्ध हैं जिनमें एसपैरागस, परसले, ब्रुसल्स स्प्राउट, स्प्राउटिंग, ब्रोकली, लेट्यूस (सलाद), स्विस चार्ड, लिक, पार्सनिप व लाल गोभी आदि प्रमुख हैं. यह सब्जियां मुख्य तौर पर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से भी बचाव करती हैं. साथ ही शरीर में अंदरूनी घावों को भरने के लिए रामबाण की तरह काम करती हैं.
इसे भुरभुरी दोमट और उपजाऊ मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. इसमें विटमिन ए प्रोटीन, लोहा, कैल्शियम तथा खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती हैं.
इसके लिए धूपदार अधिक नमी वाली भूमि चाहिए. इसकी डिमांड पंच सितारा होटलों के अलावा विदेशी दूतावासों से जुड़े परिसरों में भी होने लगी है.
आज हम जिस विदेशी सब्जी के बारे में आपको विस्तृत जानकारी देंगे वो है लीक.
लीक
किस्में : पालम पौष्टिक
उर्वरक व खाद
गोबर का खाद : 20-25 टन/ है.
नाइट्रोजन : 150 किलो. ग्राम/ है.
फॉस्फोरस : 75 किलो. ग्राम/ है.
पोटाश : 100 किलो. ग्राम/ है.
आधी नाइट्रोजन तथा अन्य खादें खेत तैयार करते समय भूमि में मिला दें. नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो भागों में बांटकर रोपाई के एक-एक महीने पश्चात् निराई-गुड़ाई के साथ डालें.
बीज की मात्रा रू 5-6 कि.ग्रा प्रति है.
बुवाई का समय रू अक्तूबर से नवम्बर - मार्च से मई
रोपाई : पौधों की रोपाई 30 सेटीमीटर की दूरी पर बनाई गई पंक्तियों में किया जाना चाहिए. 15- 20 सेंटीमीटर के अन्तराल पर 10-15 सेंटीमीटर गहरी नालियों में किया जाना चाहिए, जो पौधों के बढ़वार के साथ-साथ भरी जानी चाहिए... पौधे का तना 2.5 सेंमी व्यास का हो जाता है और इसमें प्याज की तरह गांठें नहीं होतीं.
सस्य क्रियाएं - रोपाई से दो से तीन दिन पहले जब खेत में पर्याप्त नमीं हो तब खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प का 3 लिटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना आवश्यक है. समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए तथा सिंचाई लगभग 15 दिन के अंतराल पर करें.
तुड़ाई व उपज - जब लीक से पौधों के तने 2-3 सेंमी. व्यास के हो जाएँ तो इन्हें उखाड़ लें. ऊपर से 4-5 सेंमी हरे पत्ते काटकर पौधों को अच्छी तरह धोकर हरे प्याज की तरह गांठें बांध कर मंडी में भेजें. यह फसल बुवाई से तुड़ाई तक लगभग 28-30 सप्ताह लेती है. पैदावार औसतन 35-40 टन प्रति हेक्टेयर होती है.
बीजोत्पादन - लीक की खेती केवल पर्वजीय क्षेत्रों में ही सम्भव है. लीक की फसल से दो वर्ष तक उत्पादन लिया जा सकता है.
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