भारतीय व्यंजनों में हरी सब्जिया अपना एक अलग ही महत्व रखती हैं. इन दिनों में मक्की की रोटी और सरसों, पालक का साग लोगो को ख़ासा पसंद आता है. पालक का अपना विशेष महत्व है. यह एक ऐसी सब्जी है जो को आयरन, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की 1 बार बुवाई करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई की जाती है. पालक की फसल पूरे साल ली जाती है. अलग अलग महीनों में इस की बुवाई करनी पड़ती है..
खेत की तैयारी : पालक की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए. इसके लिए हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 बार जुताई की जानी चाहिए. जुताई के समय ही खेत से खरपतवार निकाल देने चाहिए. अच्छी उपज के लिए खेत में पाटा लगाने से पहले 25 से 30 टन गोबर की सड़ी खाद व 1 क्विंटल नीम की खली या नीम की पत्तियों से तैयार की गई खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में बिखेर देना चाहिए. बुवाई के लिए पालक की उन्नत प्रजातियों का चुनाव करे.
बुवाई का समय: वैसे तो पालक की बुवाई पूरे साल की जा सकती?है, लेकिन फरवरी से मार्च व नवंबर से दिसंबर महीनों के दौरान बुवाई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है.
बीज की मात्रा व बुवाई : पालक की उन्नत प्रजातियों के 25-30 किलोग्राम बीज 1 हेक्टेयर खेत के लिए सही रहते हैं. बुवाई से पहले बीजों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगो कर रखने से बीजों का जमाव बेहतर होता है.
प्रजातियाँ: पालक की उन्नत प्रजातियों में जोबनेर ग्रीन, हिसार सिलेक्सन 26, पूसा पालक, पूसा हरित, आलग्रीन, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, लांग स्टैंडिंग, पूसा भारती, पंत कंपोजिटी 1, पालक नंबर 15-16 खास हैं. इन प्रजातियों के पौधे लंबे होते हैं. इन के पत्ते कोमल व खाने में स्वादिष्ठ होते हैं. बुवाई के समय खेत में नमी होना जरूरी है. अगर पालक को लाइनों में बोया जा रहा है तो लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर व पौध की दूरी भी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. यदि आप छिटकवां विधि से बुवाई करते है तो यह ध्यान रखें कि बीज ज्यादा पासपास न गिरने पाएं.
खरपतवार व कीट नियंत्रण : पालक में वैसे तो कीटो का प्रकोप कम होता है लेकिन खरपतवार होने की संभावना अधिक बनी रहती है. पालक की फसल में किसी तरह के रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचना चाहिए. अगर फसल में खरपतवार उग आएं तो उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहिए. पालक की फसल में पत्ती खाने वाले कीट का प्रकोप देखा जाता है. कैटर पिलर नाम का यह कीट पहले पत्तियों को खाता है और बाद में तने को नष्ट कर देता है. इस कीट से निजात पाने के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है. जैविक कीटनाशक के रूप में किसान नीम की पत्तियों का घोल बना कर 15-20 दिनों के अंतर पर छिड़काव कर सकते हैं. इस के अलावा 20 लीटर गौमूत्र में 3 किलोग्राम नीम की पत्तियां व आधा किलो तंबाकू घोल कर फसल में छिड़काव कर कीट नियंत्रण किया जा सकता है.
खाद व उर्वरक : पालक की खेती के लिए गोबर की सड़ी खाद व वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल सब से सही होता है. इससे मिटटी को सही पोषक तत्व मिलते है और पालक की फसल भी अच्छी होती है.बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालने से पैदावार में काफी इजाफा होता है. इस के अलावा हर कटाई के बाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन का बुरकाव खेत में करते रहना चाहिए. इससे उत्पादन में अच्छी वृद्धि होगी.
पैदावार व लाभ : पालक की बुवाई के 1 महीने बाद जब पत्तियों की लंबाई 15-30 सेंटीमीटर के करीब हो जाए तो पहली कटाई कर देनी चाहिए. यह ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों से 5-6 सेंटीमीटर ऊपर से ही पत्तियों की कटाई की जानी चाहिए. हर कटाई में 15-20 दिनों का फर्क जरूर रखना चाहिए. हर कटाई के बाद फसल की सिंचाई करें इससे फसल तेजी से बढ़ती है.
जहाँ तक उत्पादन और आय का सवाल है तो 1 हेक्टेयर फसल से 150-250 क्विंटल तक की औसत उपज हासिल की निकल आती है, जो बाजार में 15-20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेची जा सकती है. इस प्रकार अगर प्रति हेक्टेयर लागत के 25 हजार रुपए निकाल दिए जाएं तो 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से 200 क्विंटल से 3 महीने में ही 2 लाख, 75 हजार रुपए की आय आसानी से हो जाती है.
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