Papaya Farming Tips: एंथ्रेक्नोस रोग (Colletotrichum gloeosporioides) पपीते की फसल के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या है, जो विशेष रूप से उच्च आर्द्रता और गर्मी में फैलता है. इसके कारण पत्तियों पर भूरी धब्बों, तनों पर झांसी और फलों पर गहरे रंग के घाव दिखाई देते हैं. यह रोग पौधों की वृद्धि को धीमा कर देता है और फलों की गुणवत्ता को खराब करता है, जिससे उत्पादन में कमी होती है. कृषि जागरण के इस आर्टिकल में, हम एंथ्रेक्नोस रोग के लक्षण, कारण, प्रसार और प्रभावी प्रबंधन के तरीकों पर चर्चा करेंगे.
1. रोग के लक्षण
पत्तियों पर लक्षण
पत्तियों पर छोटे, गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. समय के साथ ये धब्बे बढ़कर गोल या अनियमित आकार के हो जाते हैं और केंद्र से हल्के रंग के हो सकते हैं. गंभीर संक्रमण में पत्तियां सूख जाती हैं और गिरने लगती हैं.
फलों पर लक्षण
फलों पर काले, धंसे हुए (depressed) धब्बे दिखाई देते हैं. धब्बों पर गुलाबी रंग के बीजाणु बनते हैं, जो रोग के प्रसार में सहायक होते हैं. संक्रमित फल खराब हो जाते हैं और बाजार में बेचने योग्य नहीं रहते.
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तनों पर लक्षण
तने पर काले धब्बे दिखाई देते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं.
3. रोग के कारण
एंथ्रेक्नोस रोग मुख्यतः Colletotrichum gloeosporioides नामक फफूंद से होता है. यह रोगाणु हवा, पानी के छींटों, संक्रमित उपकरणों और पौधे के अवशेषों के माध्यम से फैलता है. उच्च आर्द्रता (85% या अधिक), गर्म मौसम (25-30°C) और लगातार बारिश रोग के प्रसार को बढ़ावा देते हैं.
4. प्रबंधन के तरीके
निवारक उपाय
- सफाई और स्वच्छता - खेत में रोगग्रस्त पौधों और फलों को तुरंत हटा दें और नष्ट कर दें. उपकरणों को उपयोग से पहले और बाद में साफ करें.
- संतुलित पोषण प्रबंधन - पपीते को संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश दें. सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक और बोरॉन का उपयोग पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है.
- सिंचाई प्रबंधन - ओवरहेड सिंचाई से बचें क्योंकि यह रोग के प्रसार को बढ़ावा देता है. ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें ताकि पानी सीधे जड़ों तक पहुंचे और पत्तियों पर न गिरे.
- वायु प्रवाह बनाए रखना - पौधों की उचित दूरी पर रोपाई करें ताकि हवा का प्रवाह अच्छा बना रहे और आर्द्रता न बढ़े.
जैविक प्रबंधन
- एंडोफाइट्स का उपयोग- रोग नियंत्रण के लिए ट्राईकोडर्मा हर्जियानम (Trichoderma harzianum), बेसिलस सब्टीलिश (Bacillus subtilis) और सूडोमोनस फ्लोरोसेंस (Pseudomonas fluorescens) जैसे जैव-एजेंट का उपयोग करें. ये एजेंट रोगजनक फफूंद के खिलाफ जैविक प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं.
- नीम आधारित उत्पाद - नीम के तेल (2-3%) का छिड़काव रोग के प्रबंधन में सहायक होता है.
- जैव उर्वरकों का उपयोग - पौधों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जैविक उर्वरकों का उपयोग करें.
रासायनिक प्रबंधन
- फफूंदनाशकों का उपयोग - कार्बेंडाजिम (Carbendazim) (0.1%), मैंकोजेब (Mancozeb) (0.25%), या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड (Copper oxychloride) (0.3%) का छिड़काव करें. फलों पर धब्बे दिखने से पहले 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
- पूर्व संक्रमण उपचार - फलों को तोड़ने के बाद गर्म पानी (48°C) में 10 मिनट तक डुबोकर रोगजनकों को नष्ट करें.
- फफूंदनाशक मिश्रण - एक्सिस्ट्रोबिन (Azoxystrobin) और डाइफेनाजोल (Difenoconazole) का मिश्रण अधिक प्रभावी हो सकता है.
5. फसल चक्र अपनाएं
पपीते की फसल को अन्य गैर-होस्ट फसलों के साथ चक्र में उगाएं. इससे मिट्टी में रोगजनक फफूंद का दबाव कम होता है.
प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग
एंथ्रेक्नोस-प्रतिरोधी पपीते की किस्मों का चयन करें. हालांकि, बाजार में सीमित प्रतिरोधी किस्में उपलब्ध है, इसलिए अन्य प्रबंधन उपायों को अपनाना अनिवार्य है.
6. रोगग्रस्त पौधे और अवशेषों का प्रबंधन
रोगग्रस्त पत्तियों और फलों को खेत से दूर ले जाकर गहरे गड्ढे में दबा दें. जलाने से बचें क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषण हो सकता है.
नोट: रासायनिक फफूंदनाशक का उपयोग करते समय लेबल पर दिए गए निर्देशों और खुराक का पालन करें. जैविक और रासायनिक उपायों का संतुलित इस्तेमाल लंबे समय तक अच्छे परिणाम दे सकता है.
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