आलूबुखारा या प्लम की खेती (Plum cultivation) अधिकतर उत्तराखंड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में की जाती है. आलूबुखारा को अलूचा नाम से भी जाना जाता है. अगर बागान प्लम बागवानी से अधिकतम और गुणवत्तायुक्त उत्पादन चाहते है, तो इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए. इसके साथ ही प्लम की वैरायटी पर विशेष ध्यान देना चाहिए. बता दें कि हिमाचल प्रदेश में कैलिफोर्निया वैरायटी के प्लम काफी धूम मचा रहे हैं, क्योंकि बागवानों को इन वैरायटी के प्लम के दाम काफी अच्छे मिल रहे हैं.
आलूबुखारा की ये किस्मों मचा रही धूम
बागवान ब्लैक अंबर, फ्रायर और एंजीलीनो आलूबुखारा की पैदावार से अच्छी कमाई कर रहे हैं. इन तीनों किस्मों के आलूबुखारा 3 हफ्ते तक खराब नहीं होते हैं, इसलिए बाजार में 180 रुपए किलो तक बिक रहे हैं. वैसे पुरानी सैंटारोजा और फ्रंटियर किस्मों के आलूबुखारा सिर्फ 5 दिन तक स्टोर किए जा सकते हैं. बाजार में इन किस्मों का दाम 50 से 60 रुपए किलो मिल जाता है. मगर अब नई किस्मों के आलुबुखारा से बागवानों की आमदनी अधिक होने लगी है. नई किस्म जल्दी खराब नहीं होती हैं, इसलिए बागवानों को इन्हें बेचने का समय मिल जाता है.
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साल 2007 में किस्में की आयात
बागवानी विभाग ने साल 2007 में कैलिफोर्निया से आलूबुखारा की किस्में आयात की थीं. इसके बाद अब बागवान ब्लैक अंबर, फ्रायर और एंजीलीनो प्लम की किस्मों के पौधों की मांग कर रहे हैं. इसके पौधे 150 रुपए में मिल रहे हैं.
कब तैयार होता है कैलिफोर्निया का आलूबुखारा
इसकी 3 किस्मों को अगस्त से सितंबर के बीच तैयार किया जाता है. ब्लैक अंबर से 15 दिन बाद फ्रायर किस्म तैयार की जाती है. यह काले रंग का बड़ा आलूबुखारा होता है. इन किस्मों के 6 साल के पेड़ 5 किलो के 12 बक्से फल देते हैं. ये किस्में 3 साल के बाद फलों के सैंपल देने लगते हैं. बागवानी विशेषज्ञों कै कहना है कि कोलिफोर्निया की इन 3 किस्मों को काफी पसंद किया जाता है. इनमें फ्रायर की बाजार में मांग ज्यादा रहती है. इस बार यह दिल्ली मंडी में 160 से 180 रुपए किलो तक बिक रहा है.
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