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जैव उर्वरकों को प्रयोग एवं तैयार करने की विधि, लाभ एवं सावधानियां

जैव उर्वरकों को चार विभिन्न तरीकों से खेती में प्रयोग किया जाता है। 1. बीज उपचार विधि: बीजोपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक का आधा लीटर पानी में घोल बनाएँ इस घोल को 10-15 किलो बीज के ढेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथों से मिलाएँ जिससे कि जैव उर्वरक अच्छी तरह और समान रूप से बीजों पर चिपक जाएँ। इस प्रकार तैयार उपचारित बीज को छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर दें।

जैव उर्वरकों को चार विभिन्न तरीकों से खेती में प्रयोग किया जाता है।

  1. बीज उपचार विधि: बीजोपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक का आधा लीटर पानी में घोल बनाएँ इस घोल को 10-15 किलो बीज के ढेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथों से मिलाएँ जिससे कि जैव उर्वरक अच्छी तरह और समान रूप से बीजों पर चिपक जाएँ। इस प्रकार तैयार उपचारित बीज को छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर दें।
  2. पौध जड़ उपचार विधि:धान तथा सब्जी वाली फसलें जिनके पौधों की रोपाई की जाती है जैसे टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, प्याज इत्यादि फसलों में पौधों की जड़ों को जैव उर्वरकों द्वारा उपचारित किया जाता है। इसके लिए किसी चौड़े व छिछले बर्तन में साथ मिला लेते हैं। इसके उपरांत नर्सरी में पौधों को उखाड़ कर तथा जड़ो में मिट्टी साफ करने के पश्चात 50-100 पौधों को बंडल में बांधकर जीवाणु खाद के घोल में 10 मिनट तक डुबो देते है। इसके बाद तुरंत रोपाई कर देते है
  3. कन्द उपचार:गन्ना, आलू, अदरक, अरबी जैसी फसलों में जैव उर्वरकों के प्रयोग हेतु कन्दों को उपचारित किया जाता है। एक किलोग्राम जैव उर्वरकों को 20-30 लीटर घोल में मिला लेते है। इसके उपरांत कन्दों को 10 मिनट तक घोल में डुबोकर रखने के पश्चात बुवाई कर देते है
  4. मृदा उपचार विधि:5-10 किलोग्राम जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर व पी.एस.बी. आधा आधा) 70-100 किग्रा. मिट्टी या कमोस्ट का मिश्रण तैयार करके रात भर छोड़ दें। इसके बाद अंतिम जुताई पर खेत में मिला देते है।

  जाने कैसे तैयार होता है कम्पोस्ट खाद

कम्पोस्टिंग वनस्पति और पशु अपशिष्ट को तुरन्त गलाकर खेत में मौजूद अन्य अपशिष्टों को भी पौधे के भोजन के लिए तैयार करते हैं। इन अपशिष्टों में पत्तियाँ, जड़ें, ठूंठ, फसल के अवशेष, पुआल, बाड़, घास-पात आदि शामिल हैं। तैयार कम्पोस्ट भुरभुरे, भूरा से गहरा भूरा आद्रता वाली सामग्री का मिश्रण जैसी होती है। मूल रूप से कम्पोस्ट दो प्रकार के होते हैं। पहला एरोबिक और दूसरा गैर-एरोबिक।

वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

केंचुआ खाद तैयार करने के लिए छायादार स्थान में 10 फीट लम्बा, 3 फीट चौड़ा, 12 इंच गहरा पक्का ईंट सीमेंट का ढाँचा बनाएँ जमीन से 12 इंच ऊँचे चबूतरे पर यह निर्माण करें। इस ढाँचे में आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद बिछा दें। इसमें 100 केंचुए डालें। इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम पानी डालते रहें। इसमें 60 प्रतिशत से ज्यादा नमी ना रहे। दो माह बाद यह खाद बन जाएगी, 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करें। वर्मी कम्पोस्ट के लिए केंचुए की मुख्य किस्में- आइसीनिया फोटिडा, यूड्रिलस यूजीनिया और पेरियोनेक्स एक्जकेटस है। यह मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को लम्बे समय तक बनाए रखती हैं। मृदा की उर्वराशक्ति बढती है जिससे फसल उत्पादन में स्थिरता के साथ गुणात्मक सुधार होता है। यह नाइट्रोजन के साथ फास्फोरस एवं पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी सक्रिय करता है।

ज़ैव उर्वरकों के लाभ

  1. यह उपज में लगभग 10-15 प्रतिशत की वृद्धि करते है।
  2. यह रासायनिक खादों विशेष रूप से नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरत का

20-25 प्रतिशत तक पूरा कर सकते है।

  1. फसलों की वृद्धि में सहायक होते है।
  2. जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते है।
  3. मृदा जनित बीमारियों तथा सूखे से फसल को बचाते है।

 

जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियां

  1. जीवाणु खाद को धुप व गर्मी से दूर दूर सूखे एवं ठण्डे स्थान पर रखे
  2. इसके प्रयोग से फसल की उपज में 20-35 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  3. राइजोबियम जीवाणु हारमोन्स एवं विटामिन भी बनते हैं, जिससे पौधो की बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
  4. इन फसलों के बाद बोई जाने वाली फसलों में भी भूमि की उर्वरता तथा स्वास्थ्य सुधारने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
  5. फसल के अनुसार ही जैव उर्वरक का चुनाव करें।
  6. उचित मात्रा का प्रयोग करें।
  7. जैव उर्वरक खरीदते समय उर्वरक का नाम बनाने की तिथि व फसल का नाम इत्यादि ध्यान से देख लें।
  8. जैव उर्वरक का प्रयोग समाप्ति की तिथि के पश्चात न करें।
  9. जैव उर्वरक को कीट नाशक के साथ प्रयोग न करें।

 

    जैव उर्वरकों को प्रयोग एवं तैयार करने की विधि, लाभ एवं सावधानियां   

डॉ. हादी हुसैन खान                             पुष्पेंद्र सिंह साहू                                       डॉ. हुमा नाज़ (शोध सहयोगी)                                \

(एम.एस.सी. एग्रीकल्चर)                   (शोध सहयोगी)कीट विज्ञान विभाग             कीट विज्ञान विभाग                  

केन्द्रशुआट्स, इलाहाबाद, भारत            वनस्पति  संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह           अमृतसर, पंजाब, भारत                                                                         निदेशालय, फरीदाबाद, हरियाणा, भारत

 

 

 

 

English Summary: Article on Vermi Compost Published on: 27 February 2018, 01:32 IST

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