कई बार सेब के बागीचों या फलों को कई रोग बुरी तरह प्रभावित कर देते हैं, जिससे फलों की पैदावार कम हो जाती है. सेब में लगने वाले रोगों में स्कैब रोग, नर्सरी पौधों का अंगमारी, श्वेत जड़ सड़न, कॉलर सड़न, कैंकर रोग, चूर्णिल आसिता, पत्तों के धब्बे, फल सड़न और विषाणु रोग आदि प्रमुख माने गए हैं. यह रोग सेब में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. आज हम सेब में लगने वाले इन्हीं रोग एवं उन पर नियंत्रण पाने की जानकारी के लेकर आए हैं-
सेब में लगने वाले प्रमुख रोग
स्कैब रोग
इस रोग के प्रकोप से फलों का आकार टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है, साथ ही उनका विकास रुक जाता है. इसके साथ ही फलों पर काले-भूरे रंग के उभरे हुए सख्त धब्बे पड़ जाते हैं. कई बार फल फटने भी लगता है.
प्रबंधन
सेब में लगने वाले स्कैब रोग की रोकथाम के लिए हेक्सास्टॉप का प्रयोग करना चाहिए. यह रोगों को नियंत्रित करने और उनका उपचार करने में बहुत सहायक है. इसके अलावा पौधों में फुफंदी की बीमारियों को नियंत्रित करने में भी काफी प्रभावी है. यह मानव, पक्षी व स्तनधारी तीनों जीवों के लिए सुरक्षित है.
हेक्सास्टॉप की मुख्य विशेषताएं
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यह कई रोगों को नियंत्रित करता है, तो वहीं फफूंदनाशक जाइलेम द्वारा पौधे में संचारित होता है.
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इसका उपयोग बीज उपचार, पौधे में स्प्रे और जड़ो की ड्रेंचिंग में किया जाता है.
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यह सल्फर परमाणु के कारण फाइटोटॉनिक प्रभाव (हरेभरे पौधें) दिखाता है.
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नर्सरी पौधों का अंगमारी रोग
इस रोग से सेब के पौधे पूरी तरह मर जाते हैं. अगर बारिश का मौसम है, तो सरसों के रंग जैसे छोटे-छोटे कवक जमीन के साथ वाले तने के भाग पर दिखाई देते हैं.
प्रबंधन
इस रोग से संक्रमित पौधों को नष्ट कर देना चाहिए. इसके साथ ही थिरम (0.3 प्रतिशत) या ऑरियोलगीन (0.04 प्रतिशत) के घोल के साथ नर्सरी की सिंचाई करें. इसके अलावा बुवाई से पहले मिट्टी को पारदर्शी पौलीथीन शीट का प्रयोग करके जीवाणु रहित करें.
श्वेत जड़ सड़न
इस रोग से प्रभावित पत्तियां पीली हो जाती हैं फिर मर जाती हैं. जड़े भूरे रंग की हो जाती हैं.
प्रबंधन
खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध रखें. संक्रमित जडों को नवम्बर से दिसम्बर में काटकर अलग कर दें. इसके साथ ही बारिश के मौसम में कम से कम तीन बार कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) के घोल से तौलिये की मिट्टी को तर कर दें.
कॉलर सड़न
यह बीमारी खराब जल निकासी व्यवस्था की वजह से फैलती है. इसमें तने का जमीन के साथ वाला भाग भूरा, नर्म व स्पंज जैसा हो जाता है.
प्रबंधन
नवम्बर से दिसम्बर में तने के आस-पास की मिट्टी हटा देना चाहिए. इसके साथ ही तने वाले भाग को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ दें.
कैंकर रोग
इस रोग की वजह से तने और टहनियों पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं. शुरूआत खुले घाव से होती है और छाल पर भूरे रंग के जलयुक्त गहरे धंसे या काले रंग के फोड़े जैसे घाव बनते हैं.
प्रबंधन
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर झुलसे हुए और कैंकर युक्त भाग को काट दें. फल तोड़ने के बाद और कलियां बनने के समय कॉपरआक्सीक्लोराईड (0.3 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव कर दें.
चूर्णिल आसिता रोग
इस रोग की वजह से कलियां, नई टहनियां और पत्तों की बढ़वार प्रभावित होती है. इन भागों पर सफेद रंग के चूर्ण जैसे धब्बे बन जाते हैं.
प्रबंधन
नर्सरी में जैसे ही रोग दिखाई दे, वैसे ही बिटरटानौल (0.05 प्रतिशत) या हैक्साकोनाजोल (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव कर दें. यह आपको 14-14 दिनों के अन्तराल पर करना है.
पत्तों के धब्बे
गर्मी और बारिश में पत्तियों पर विभिन्न आकार, रंग व रूप के दाग धब्बे बन जाते हैं. इसमें पत्तियां पीली पड़कर समय से पहले ही गिरने लगती हैं.
प्रबंधन
बारिश में कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) मैंकोजेब (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए.
फल सड़न
सेब के फलों में पेड़ पर या भण्डारण के समय विभिन्न प्रकार के सड़न रोग लग जाते हैं.
प्रबंधन
अगर फलों में सड़न हो, तो फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा फलों को भण्डाण से पहले कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) के घोल में 5 मिनट तक डुबाकर रखें.
विषाणु रोग
इस रोग से पत्तों पर मोजैक के लक्षण दिखाई देते हैं और पत्ते मुड़ भी जाते हैं. इसके साथ ही सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं.
प्रबंधन
इस रोग की रोकथाम के लिए ग्राफ्टिंग या बडिंग के लिए कलम या कलिका संक्रमित पौधे से न लें.
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