1. Home
  2. पशुपालन

डेयरी फार्मिंग को लेकर साझा किए अपने-अपने अनुभव

सीआईआई एग्रोटेक के दूसरे दिन किसान गोष्ठी में डेयरी फार्मिंग में देशी नस्लों के महत्व जोर दिया गया। इस सैशन को किसानों की ओर से काफी अच्छा रिस्पांस मिला। गुरमीत सिंह भाटिया, वाइस चेयरमैन, सीआईआई पंजाब स्टेट काउंसिल समेत इस उद्योग के विशेषज्ञ डॉ इंद्रजीत सिंह, निदेशक, डेयरी पंजाब डेयरी देव बोर्ड, प्रोफेसर पी कश्मीर उप्पल, सलाहकार, एनिमल हसबैंडरी पंजाब, डॉ आर. के. सिंह, पूर्व निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, डॉ इंद्रजीत सिंह, निदेशक, भैसों पर अनुसंधान केंद्र, हिसार, बी.वेणु गोपाल, अंकुश; श्री एम.पी. यादव, अध्यक्ष, पशु चिकित्सा सूक्ष्म जीव विज्ञानी, प्रतिरक्षाविज्ञानी और विशेषज्ञ और सुश्री कैरोलीन थीडेन, एम.डी. प्लेट्स, भारतीय-ब्रिटेन संघ ने डेयरी फार्मिंग में स्वदेशी नस्लों से कैसे फायदा हो सकता है, पर बात की।

सीआईआई एग्रोटेक के दूसरे दिन किसान गोष्ठी में डेयरी फार्मिंग में देशी नस्लों के महत्व जोर दिया गया। इस सैशन को किसानों की ओर से काफी अच्छा रिस्पांस मिला। गुरमीत सिंह भाटिया, वाइस चेयरमैन, सीआईआई पंजाब स्टेट काउंसिल समेत इस उद्योग के विशेषज्ञ डॉ इंद्रजीत सिंह, निदेशक, डेयरी पंजाब डेयरी देव बोर्ड, प्रोफेसर पी कश्मीर उप्पल, सलाहकार, एनिमल हसबैंडरी पंजाब, डॉ आर. के. सिंह, पूर्व निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, डॉ इंद्रजीत सिंह, निदेशक, भैसों पर अनुसंधान केंद्र, हिसार, बी.वेणु गोपाल, अंकुश; श्री एम.पी. यादव, अध्यक्ष, पशु चिकित्सा सूक्ष्म जीव विज्ञानी, प्रतिरक्षाविज्ञानी और विशेषज्ञ और सुश्री कैरोलीन थीडेन, एम.डी. प्लेट्स, भारतीय-ब्रिटेन संघ ने डेयरी फार्मिंग में स्वदेशी नस्लों से कैसे फायदा हो सकता है, पर बात की। साथ ही अपने-अपने क्षेत्रों में अपनी विशेषता को साझा किया।

 श्री गुरमीत सिंह भाटिया, वाइस चेयरमैन, सीआईआई पंजाब स्टेट काउंसिल ने बताया कि कैसे दिन-ब-दिन बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का मवेशियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।उन्होंने कहा कि मौसम, नमी और तापमान में बदलाव के कारण स्वदेशी नस्लों के महत्व को समझना बहुत जरूरी है। क्योंकि ये देशी नस्ले अलग-अलग हालात का सामना कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि राजस्थान में पंजाब के सीमावर्ती इलाकों के मुकाबले तापमान भिन्न है। वास्तव में देश के हर नुक्कड़ और कोने में तापमान में बहुत अधिक विविधता मिलती है और आने वाले समय में वनों की कटाई की वजह से हालात और बदलने वाले हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि हम स्वदेशी नस्लों के महत्व को समझें हैं और जाने कि कैसे हम डेयरी फार्मिंग में नस्लों को बढ़ावा दे सकते हैं।

प्रोफेसर पीके उप्पल, सलाहकार, पशुपालन विभाग पंजाब ने कहा कि  गायों और भैंसों की भारतीय नस्लों देश में गर्म और ठंडे तापमान का सामना कर सकती हैं और इन नस्लों को एक बार फिर खोजना बहुत ही जरूरी है, ताकि भारत में डेयरी फार्मिंग को जीवित रखा जा सके।

उन्होंने कहा कि क्रास-ब्रीडिंग में चार दशकों में जो कुछ हुआ है कि उससे भारतीय स्वदेशी मवेशियों के उत्कृष्ट नस्लों में से कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। डॉ. आर. के. सिंह, पूर्व निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर ने डेयरी फार्मिंग में गायों के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा, गायें सिंधु घाटी सभ्यता के बाद से मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं। यह सिर्फ एक पवित्र पशु ही नहीं है, लेकिन देश में गायें की  40 से अधिक नस्लें पंजीकृत हैं। उन्होंने बताया कि गायें कम चारा खाती हैं और अपेक्षाकृत अधिक दूध देती हैं। ये ए2 प्रकार का दूध देती हैं, जो कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए सर्वोतम माना जाता है। गौरतलब है कि इस सैशन में बड़ी संख्या में डेयरी फार्मिंग में रुचि रखने वाले किसानों ने भाग लिया और इस संबंध में सवाल-जवाब किए।

English Summary: Shared experience with dairy farming Published on: 08 September 2017, 10:35 IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News