1. Home
  2. पशुपालन

मौनवंशों में माइट की समस्या एवं प्रबंधन

मधुमक्खियों के शत्रुओं में अष्टपदियाँ (माइट) एक गम्भीर समस्या है. इस तरह से कई प्रकार के माइट मौनवंशो में पाए जाते हैं जो अग्रलिखित हैं-

KJ Staff
KJ Staff
Bee Keeping
Bee Keeping

मधुमक्खियों के शत्रुओं में अष्टपदियाँ (माइट) एक गम्भीर समस्या है. इस तरह से कई प्रकार के माइट मौनवंशो में पाए जाते हैं जो अग्रलिखित हैं-

वरोआ माइट

सन् 2001 -02 में पहली बार केरल राज्य में इसका प्रकोप देखा गया जो धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया. इनका प्रसार प्रौढ़ मधुमक्खियों द्वारा होता है. मधुमक्खियों में लगने वाले माइटों की तुलना में वरोआ माइट काफी बड़े और चैड़ाई लम्बाई से अधिक होती है. शरीर चपटा एवं छोटे बालों से ढका हुआ सा, मादा चमकीले लाल भूरे रंग की, प्रौढ़ नर मादा की तुलना में छोटा, गोलाकार लिए हुए पीले रंग का होता है. मुख्यतः इसकी दो किस्में, वरोआ जैकाब्सोनी एपिस सेराना पर एवं वरोआ डेस्ट्रक्टर एपिस मेलीफेरा पर पायी जाती है.

लक्षण

मधुमक्खी बाक्स के प्रवेश द्वार पर दुबली पतली विकृत टांगो और पंखों वाली मधुमक्खियां रेंगती दिखती है या भरे हुए लार्वी बाहर पड़े दिखते हैं. खाली शिशु कोशों की दीवारों पर सफेद छींटे जैसा या छत्ते में छिद्रित ब्रूड कोश व उनमें इस माइट को देखा जा सकता है. धीरे-धीरे वंशों का विकास रूक जाता है.

प्रबंधन  

  • स्वस्थ एवं ग्रसित मधुमक्खियों के छतों व प्रयोग में आने वाले उपकरणों को एक साथ न मिलाएं तथा दो बक्सों के बीच में कम से कम एक मीटर की दूरी रखें.

  • अधिक ग्रसित मौनवंशों को नष्ट कर दें तथा लूटपाट बकछुट व भागने की समस्या से बचाएं. रानी मक्खी को 10-12 दिन तक रानी पिंजड़ा में रखें तथा मधु व शिशु खण्ड के बीच में रानी अवरोधक जाली लगाकर अण्डा देने से रोकें.

  • छते में मौजूद निखट्टू शिशुओं को समय -समय पर नष्ट करते रहना चाहिए.

  • तलपट व शिशु कक्ष के बीच में चिपकाहट वाला कागज या लोहे की जाली का प्रयोग करें तथा कागज को माईट सहित जला दें.

  • छत्तों के बीच में मधुमक्खियों के ऊपर 2 ग्रा. पीसी हुई चीनी को 5-5 दिन के अंतराल पर बुरकाव करने से छुटकारा मिलता है. फार्मिक अम्ल (85 प्रतिशत) की 5 मि.ली. मात्रा को स्पंज के टुकड़े में भिगोकर प्लास्टिक लिफाफे में छेद बनाकर 10 दिनों तक प्रति वंश तलपट पर रखने से आक्रमण में कमी आती है.

  • थाइमोल धूल की 250 मि.ग्रा. मात्रा प्रति मौनवंश के हिसाब से बुरकाव करने से काफी लाभ मिलता है.

  • आक्सेलिक अम्ल 3.2 प्रतिशत का चीनी के 50 प्रतिशत घोल के साथ मिलाकर 5 मि.ली. प्रति फ्रेम की दर से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें.

  • गन्धक धूल को चैखटों (फ्रेमों) के उपर या तलपट या प्रवेश द्वार पर 10 ग्राम प्रति मौनगृह की दर से 15 दिन के अन्तराल पर प्रयोग करने से माइट की संख्या कम हो जाती है.

ट्रोपीलिलैपस क्लैरी 

इस माइट का प्रसार मक्खियों के लूटपाट, बहक व स्थानान्तरण से होता है. यह वरोआ माइट से छोटी होती है. मादा माइट लाल भूरे रंग की अण्डाकार आकार की होती है जो पाँच दिन की आयु वाले मधुमक्खी शिशु कोशों में घुसकर शिशुओं को नष्ट कर देती है.

लक्षण

ग्रसित मधुमक्खियाँ अपंग, पंखरहित या पंख मुड़ा हुआ और मौनगृह के सामने रेंगती नजर आती है शिशु कोशों की टोपियाँ दबी-दबी या उनमें छिद्र दिखाई देता है.

प्रबंधन

  • रानी मक्खी को 15-21 दिनों तक रानी पिंजड़े में बंद करके कुछ दिनों तक अलग रखने से ब्रुड रहित हो जाएगा. इस तरह माईट को शिशु नहीं मिलने से उसकी संख्या में कमी आ सकती है.

  • 5 मि.ली. फार्मिक अम्ल ;85 प्रतिशत द्ध की मात्रा छोटी शीशी में भरकर उसके मुँह पर रूई की मोटी बत्ती लगाकर फ्रेमों के बीच में ऊपर की तरफ 2 सें.मी. निकला रहे रखना चाहिए.

  • 200 मि.ग्रा. गन्धक धूल प्रति फ्रेम की दर से फ्रेम के ऊपरी हिस्सों पर 7 दिन के अंतराल पर बुरकाव करें.

एकेरिन माइट

यह मकड़ी भारत में पहली बार सन् 1956 में पंजाब में देखी गई इसके बाद इसको हिमांचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश एवं बिहार में भी देखा गया. मकड़ियाँ मधुमक्खियों की श्वास नली में प्रविष्ट होकर अण्डे देती है और वहीं पर फलने फूलने लगती है धीरे-धीरे श्वास नली को बन्द कर देती है और शरीर के रक्त को चूसकर शक्तिहीन बना देती है.

लक्षण

ग्रसित  मधुमक्खियों का छत्ते के इर्द-गिर्द रेंगना उनके पर का अँग्रजी शब्द K तरह हो जाना, पीले मटमैले पदार्थों का बूंदों के रूप में तलपट या प्रवेश द्वार पर नजर आना एवं कामेरी मक्खियों की संख्या कम होते जाना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं.

प्रबंधन

  • 5 ×2.0 सेमी नाप के मोटे कागज की पट्टी को क्लोरोबेन्जीलेट में भिगोकर पट्टी तैयार कर उसका धुआँ 7 दिनों तक लगातार देने से इस माइट को नष्ट किया जा सकता है.

  • मौनवंशो को पर्याप्त भोजन देकर सुदृढ़ बनाए रखें.

  • गन्धक का धुआँ प्रयोग करने से इस बीमारी को कम किया जा सकता है.

  • फार्मिक अम्ल (85%) की 2-5 मि.ली. मात्रा प्रति मौनवंश 15 दिन तक व्यवहार करने से इसका प्रकोप कम किया जा सकता है.

लेखक: डॉ. प्रवीण दादासाहेब माने
वरिष्ठ वैज्ञानिक,कीट विज्ञान विभाग
नालन्दा उद्यान महाविधालय, नूरसराय
ईमेल: [email protected]

English Summary: Mites problem and management in mongooses Published on: 20 November 2021, 10:01 IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News