1. Home
  2. पशुपालन

आईवीएफ और ईटीटी से बढ़ाएं गाय और भैंस के बच्चे पैदा करने की दर

पशुपालन, किसानों के लिए सदियों से एक मुख्य पेशा रहा है. पशुओं की उपयोगिता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कृषि से जुड़े कई प्रमुख कामों में इनका इस्तेमाल किया जाता रहा है. इनके गोबर से बनी खाद कृषि उपज को बढ़ा देती है. गाय, भैंस और बकरी देश के तीन प्रमुख पशु हैं जो किसान के लिए खेती के बराबर जरुरी हैं.

पशुपालन, किसानों के लिए सदियों से एक मुख्य पेशा रहा है. पशुओं की उपयोगिता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कृषि से जुड़े कई प्रमुख कामों में इनका इस्तेमाल किया जाता रहा है. इनके गोबर से बनी खाद कृषि उपज को बढ़ा देती है. गाय, भैंस और बकरी देश के तीन प्रमुख पशु हैं जो किसान के लिए खेती के बराबर जरुरी हैं. इन पशुओं का प्रमुख स्रोत दूध, खाना तो है ही इसके साथ यह किसानों के लिए आय का प्रमुख साधन भी है. आम तौर पर किसान गाय और भैंस पालते हैं क्योंकि यह दूध देती हैं जो आमदनी का एक ज़रिया है. किसान खेती के उपयोग के लिए बछड़ा या भैंसे को प्रजनन शक्ति से महरूम कर देते हैं. एक गांव में बमुश्किल एक या दो भैंसे या सांड मिलते हैं जिनसे प्रजनन की प्रक्रिया कराई जाती हैं. ऐसे में गाय और भैंस को अनुकूल वक़्त पर गर्भधारण नहीं मिल पाता और कई बार दो या तीन वर्षों तक वह प्रजनन नहीं कर पाती. इससे उनकी दूध देने की क्षमता प्रभवित होती है और इसका सीधा असर किसानों की आय पर पड़ता है. बिना आय के किसान को इन पशुओं को रखना मुश्किल हो जाता है और मजबूरन उसे इन पशुओं को छोड़ना पड़ता है.

इस मुश्किल का हल है 'इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन. इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) में मादा पशु के अंडाशय से अंडे निकाल कर प्रयोगशाला में कृत्रिम वातावरण में 'एम्ब्रियो' बनाये जाते हैं. फिर ये एम्ब्रियो सामान्य प्रकार की गाय या बछड़ियों के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिए जाते हैं. इसके लिए हर जिले में क्षेत्रीय स्तर पर कई केंद्र स्थापित किये गए हैं. कई निजी कंपनियां और स्थानीय पशु चिकित्सक भी इस तकनीक को मुहैया कराते हैं. इस तकनीक से एक गाय के एम्ब्रियो से एक साल में 10 या इससे अधिक बच्चे लिए जा सकते हैं. इस तकनीक का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि कम उम्र की बछियों से भी अंडे लेकर एम्ब्रियो बनाये जा सकते हैं. इसका फायदा दो पीढ़ियों के बीच के समय अंतराल को कम करने में मिलता है.

प्रक्रिया :

सबसे पहले गायों या बछियों के गर्भाशय से अण्ड लिया जाता है. यह पूरी तरह से सुरक्षित रहता है. डोनर (दाता) से मिले हुए अण्ड को प्रयोगशाला में ले जाया जाता है. यहां आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल करके इन अण्डों से 'भ्रूण' बनाया जाता है. इसके लिए नर पशु के वीर्य की जरुरत होती है. आईवीएफ तकनीक से बने भ्रूण को भविष्य के लिए 'हिमीकृत' करके रखा जाता है. इसके लिए ठीक वैसा ही वातावरण तैयार किया जाता है जैसा गर्भ में भ्रूण के सुरक्षित रहने के लिए परिस्थितियां जरुरी रहती हैं.

आईवीएफ तकनीक से बने हुए भ्रूण को गाय के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस तकनीक से उन्नत नस्लें विकसित की जा सकती हैं. इसके माध्यम से देशी गाय के गर्भ में 'साहीवाल' या 'मारवाड़ी' गाय का भ्रूण प्रत्यारोपित करके इसी नस्ल के बच्चे लिए जा सकते हैं.

दूसरी तकनीक है - भ्रूण-प्रत्यारोपण तकनीक (ईटीटी)

भ्रूण-प्रत्यारोपण तकनीक (ईटीटी) अच्छी गाय एवं भैंस से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की तकनीक है. इस तकनीक में डाता गाय के अंडकोष से एक बार में कई अंडे बनाये जाते हैं. इन सब अंडों को अच्छे गुणवत्ता वाले वीर्य से गर्भित किया जाता है. करीब सात दिन के बाद बने हुए सभी भ्रूण गर्भाशय से बाहर निकाल लिए जाते हैं. भ्रूण प्राप्त करने वाली गाय का उच्च गुणवत्ता का होना जरुरी नहीं है. हालांकि, उसकी तथा दाता गाय की हीट की स्थिति एक जैसी होनी जरुरी है. भ्रूण-प्रत्यारोपण की पूरी प्रक्रिया बगैर सर्जरी के की जाती है. इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाली गाय और भैंस का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करके अधिकतम बच्चे पैदा करना है.

रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण

English Summary: Increase by IVF and ETT Rate of Cattle and Buffalo Breeding Published on: 05 November 2018, 04:41 IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News