पशुपालक को नवजात पशुओं का खास ख्याल रखना चाहिए क्योंकि जब पशु छोटे होते हैं तो उनमें कई बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है. इससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है. पशुपालक को काफी आर्थिक हानि होती है. ऐसे में नवजात पशु को कई बीमारियों से बचाकर रखना अति आवश्यक है.
काफ अतिसार
अक्सर नवजात पशु की मृत्यु दस्त लगने के कारण हो जाती है. इसका कारण अधिक दूध पी जाना, पेट में संक्रमण होना और पेट में कीड़े लगना आदि है. ऐसे में छोटे पशुओं को दूध उचित मात्रा में ही पिलाना चाहिए. इससे वह सफेद अतिसार का शिकार नहीं होंगे. कई बार पशु खूंटे से खुलकर अधिक मात्रा में मां का दूध पी लेते हैं. इस कारण उन्हें दस्त लग जाते हैं. इस स्थिति में उन्हें एंटीबायोटिक्स समेत कई अन्य दवा दे सकते हैं. इसके साथ ही पानी की कमी होने पर ओ.आर.एस. का घोल पिला सकते हैं इसके अलावा इंजेक्शन द्वारा डेक्ट्रोज-सैलाइन दे सकते हैं.
पेट में कीड़े होना
अक्सर छोटे पशु कमजोर पड़ जाते हैं क्योंकि उनके पेट में कीड़े लग जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए पिपराजीन दवा का उपयोग अच्छा माना जाता है. अगर गाय या भैंस के गर्भावस्था की अंतिम अवधि में पेट में कीड़े मारने वाली दवा दी जाए, तो पशुओं को जन्म के बाद कीड़े नहीं होते हैं. बता दें कि पशुओं को जन्म के बाद करीब 6 महीने तक बाद नियमित रूप से पेट के कीड़े मारने वाली कई दवा देते रहना चाहिए.
नाभि का सड़ जाना
कई बार नवजात पशुओं की नाभि सूज ( उभार ) जाती है. ऐसा मक्खियों के बैठने से होता है. ऐसे में पशुपालक को तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करना चाहिए. कई बार छोटे पशु की इस रोग से मृत्यु हो जाती है, क्योंकि उनका सही समय पर इलाज नहीं कराया जाता है. इसके साथ ही जब पशु का जन्म होता है, तो उसकी नाभि को उचित स्थान से काट दें और उसकी नियमित रूप से एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करें. इस तरह बीमारी को रोका जा सकता है.
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छोटे पशुओं को टायफाइड होना
नवजात पशुओं में यह रोग एक बैक्टीरिया द्वारा फैलता है. इस रोग में पशु को तेज़ बुखार और खूनी दस्त होने लगते हैं. अगर सही समय पर इलाज न मिले, तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है. ऐसे में उन्हें एंटीबायोटिक्स या कई अन्य दवा दे सकते हैं. ध्यान दें कि रोग प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए. इसके साथ ही पशुशाला में साफ-सफाई रखनी चाहिए.
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