पशुओं में खूनी पेचिस या बबेसिया जैसे रोग होते रहते हैं. देशी गायों में ऐसे रोग होने की आशंका ज्यादा रहती है. बबेसिया प्रजाति के प्रोटोज़ोआ पशुओं के रक्त में चिचडियों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और यह लाल रक्त कोशिकाओं में घुसकर अपनी प्रजनन क्षमता को बढ़ाते हैं, जिसके फलस्वरूप खून की यह लाल रक्त कोशिकायें नष्ट होने लगती हैं.
बबेसिया रोग के लक्षण
इस रोग के कारण पशुओं को काफी तेज बुखार हो जाता है, जिस कारण उनके पेशाब का रंग गहरा भूरा हो जाता है और साथ ही उसमें खून भी आने लगता है. बबेसिया रोग के कारण पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है और इनका वजन भी कम हो जाता है. इसके साथ ही अधिक गंभीर स्थिति में पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है.
बचाव का तरीका
किसानों के लिए यह जानना जरूरी है कि बबेसिया रोग की पहचान करने के लिए प्रभावित पशु के खून की प्रयोगशाला में जांच करानी चाहिए और डॉक्टरी की सलाह से ही दवा देनी चाहिए.
हेमट्यूरिया रोग का लक्षण
पशुओं में होने वाले हेमट्यूरिया रोग भी शरीर की जीव रक्त कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट कर देता है. हेमट्यूरिया रोग आमतौर पर गर्मी के महीनों में होता है क्योंकि इन महीनों में किलनी की संख्या बढ़ जाती है. हेमट्यूरिया रोग में पशुओं का पेशाब गुलाबी और लाल रंग का हो जाता है. लाल मूत्र खून के कारण होता है और यह खून के ज्यादा थक्के जम जाने पर और ज्यादा दर्दनाक हो सकता है.
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बचाव का तरीका
यह बीमारी किलनी से फैलती है. किसानों को किलनी से बचाव के उपाय के बारे में अवगत रहना चाहिए. कीटनाशकों का उपयोग करते समय, फर्श से ऊपर चढ़ने वाले किलनी को मारने के लिए जानवरों के साथ-साथ उनके शेड, शेड के फर्श पर भी कीटनाशकों का छिड़काव निरंतर करते रहना चाहिए. यदि शेड में कोई दरार हो तो वहां भी कीटनाशकों का छिड़काव करें, क्योंकि चिगर्स आमतौर पर दरारों और दरारों में अपने अंडे देते हैं.
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