इंग्लैंड के पूर्वी हिस्से में उद्यमियों की 17 प्रजातियां विलुप्त घोषित कर दी गई हैं. इसमें ग्रेट येलो बम्बल बी और वाटर फ्लावर बी जैसी दुर्लभ मधुमक्खियां शामिल है जो पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं. यह इंग्लैंड का ऐसा हिस्सा है जो खासतौर पर मधुमक्खियों के लिए लंदन में सबसे बेहतर जगह है. यह जानकारी वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की रिपोर्ट में दी गई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि मधुमक्खियों के रहने की जगह खत्म होना कीटनाशकों का अधिक प्रयोग और प्रदूषण की बढ़ती मात्रा का कारण है कि इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है. मधुमक्खियों की संख्या में कमी उपभोक्ताओं से लेकर किसान तक को प्रभावित करेगी. जैसे सेब के उत्पादन पर इसका असर दिखाई पड़ेगा क्योंकि उसके परागण में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा योगदान होता है शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्रिटेन में सेब का उत्पादन तभी बेहतर होगा जब उनकी संख्या पर्याप्त होगी और सेहतमंद होगी.
लंदन के 90 फ़ीसदी जंगली पौधे और 95 फ़ीसदी मुख्य फसल परागण पर निर्भर है. यहां की अर्थव्यवस्था में इनका 6000 करोड रुपए सालाना का योगदान होता है. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की चीफ एग्जीक्यूटिव का कहना है कि लंदन दुनिया के उन शहरों में से है जहां प्रकृति को नुकसान पहुंच रहा है इसके साथ ही परागण करने वाली यह बहुमूल्य खतरे में है दुनिया भर में इनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है जल्द से जल्द इनको बचाए जाने की जरूरत है. मधुमक्खियों को 228 जातियों के आंकड़ों का विश्लेषण भी किया गया है जिसमें देखा गया है कि कई मधुमक्खी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं.
देखा गया है कि 25 मधुमक्खियों की प्रजातियां ऐसी हैं जिनका अस्तित्व खतरे में है इसका कारण जलवायु परिवर्तन रहने के लिए जगह खत्म होना और इनमें होने वाले रोगों को भी बताया गया है. रिपोर्ट में मधुमक्खियों को लंदन के लिए वेतन जरूरी भी बताया गया है. चैरिटी संस्था वर्कलाइफ की चीफ एग्जीक्यूटिव का कहना है कि शोध में पाया गया है कि कई दुर्लभ और खास तरह की मधुमक्खियां जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं लगातार तापमान बढ़ने से इनके लिए मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं इनमें से 6 प्रजातियां ऐसी हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं और सिर्फ एक खास हिस्से में देखी गई हैं इससे पता चलता है कि बदलते हुए वातावरण का मधुमक्खी पर प्रभाव पड़ रहा है.
मौसम की मार के कारण इस बार मधुमक्खियों के छत्ते में शहद का कम उत्पादन
मौसम के अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव के कारण इस बार मधुमक्खियों पर भी इसका असर दिखाई पड़ा है. फूल और फल आंकड़ों के उपयोगी पदार्थ लेकर शायद जमा करने वाली मधुमक्खियां इस बार अपने बॉक्स की पूरी मात्रा में शहद नहीं जमा कर पा रही है क्योंकि मौसम में लगातार जो बदलाव हुआ इसके चलते मधुमक्खियां शहद जुटाने के लिए फूलों तक नहीं पहुंच सकी जिससे उत्पादन कम होने की संभावना है देखा गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में 40% तक उत्पादन मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण कम हुआ है. मौसम साफ होने के बाद प्रत्येक बॉक्स में 10 किलो तक शहद प्राप्त हो जाता था लेकिन अब केवल चार 5 किलो तक ही शहद एक बॉक्स से निकल पा रहा है जिसके चलते किसान काफी परेशान हैं. उत्पादन कम होने का कारण सरसों दिखी व अन्य फूलों से रस लेकर मधुमक्खियां शहद जमा करती हैं उन पर मौसम की सीटी मार पड़ी है
पिछले साल की तुलना में इस बार गर्मी और ठंड के तापमान में काफी अंतर हो रहा है. इस वजह से फूलों में पाए जाने वाले पुष्प राष्ट्र की मात्रा भी कम हो गई है. इस कारण मधुमक्खियां शहद नहीं जमा कर पा रही है. जनवरी से मार्च तक सरसों का फूल रहता है मगर इस बार इस में पुष्प रकम बन पाया है. इस कारण एक बॉक्स में जहां 10 किलो शहद निकलता था वहां इस बार 3 से 4 किलो ही मिल पा रहा है यही हाल लीची के बागान में भी दिख रहा है. मौसम की मार का असर लीची के फूलों पर दिख रहा है अधिक शहद प्राप्त करने के लिए किसान बागानों में ले जाकर भक्तों को लगाते हैं लेकिन इस बार फूलों की संख्या कम होने के कारण शहद के कम उत्पादन होने की संभावना है.
भारत दुनिया में शहद का बड़ा निर्यातक
भारतीय शहद को इसकी गुणवत्ता के कारण पूरे विश्व भर में जाना जाता है. देश से विशेषकर सरसों के फूल से जो शहद निर्यात किया जाता है. उसकी विधि शो में काफी मांग है अजवाइन लीची जामुन नीम व अन्य फूलों से बने शहद की घरेलू स्तर पर ही खपत हो जाती है. विश्व में कुल निर्यात मूल्य का लगभग 5% अकेले भारत में निर्यात करता है गत वर्ष भारत में 115000 टन शहद का उत्पादन हुआ था जिसमें 62500 टन शहद का निर्यात किया गया भारत को शहद के लिए वैश्विक बाजार में $15 00 प्रति टन का भाव आसानी से मिल जाता है बिहार के विभिन्न जिलों में काफी मात्रा में मधुमक्खी के बॉक्स लगाए जाते हैं जिससे वहां पर शहद का उत्पादन काफी अच्छा होता है.
डॉ. आर एस सेंगर, प्रोफेसर
सरदार वल्लभ भाई पटेल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, मेरठ
ईमेल आईडी: [email protected]
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