देश के हर राज्य में कोरोना (COVID-19) का संकट मंडरा रहा है. इस कारण बाहरी राज्यों से लाखों की संख्या में प्रवासी अपने गांव लौट रहे हैं. इसी दौरान उत्तराखंड में भी लाखों प्रवासी लगातार अपने घर वापसी कर रहे हैं. बता दें कि सरकार को अभी तक 2 लाख से अधिक प्रवासियों के वापस आने के आवेदन मिल चुके हैं, साथ ही 1 लाख से अधिक प्रवासी लौट भी चुके हैं. ऐसे में सभी लोगों को चिंता सता रही है कि घर लौटने के बाद हम करेंगे क्या? यह सावल काफी चिंताजनक भी है, क्योंकि देश में अभी भी हालत सुधरे नहीं हैं. ऐसे में उत्तराखंडी प्रवासी बाहरी राज्यों में वापसी नहीं कर सकते हैं और शायद वापसी करना भी नहीं चाहते हैं इसलिए सवाल उठता है कि प्रवासियों की जीविका चलेगी कैसे? मगर आज हम आपको एक ऐसा व्यवसाय बताने जा रहे हैं, जिसको गांवों में आसानी से किया जा सकता है. हम मत्स्य पालन की बात कर रहे हैं, जो कि खेती की तुलना में कई गुना ज्यादा मुनाफ़ा दे सकता है.
उत्तराखंड मस्त्य विभाग की मानें, तो विभाग द्वारा मत्स्य पालन के लिए भौगोलिक परिस्थतियों के अनुरूप कई तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं. खास बात है कि जो लोग मत्स्य पालन करने के इच्छुक होते हैं, उन्हें विभाग की तरफ से ट्रेनिंग भी दी जाती है. बता दें कि मत्स्य पालन से खेती की तुलना में अधिक कमाई हो सकती है. जानकारी है कि राज्य में मछलियों की खपत स्थानीय स्तर पर ही हो जाती है, लेकिन अब इसे अन्य शहरों तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है. इसके लिए डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का खास नेटवर्क तैयार किया जा रहा है.
ट्राउट पालन को बढ़ावा
आपको बता दें कि मत्स्य विभाग उन इलाक़ों में ट्राउट पालन पर जोर दे रहा है, जो 4000 मीटर से ऊंचाई पर स्थिति हैं. विभाग अधिकतर को-ओपरेटिव मत्स्यपालन को बढ़ावा दे है. इसके लिए को-ओपरेटिव सोसायटी के पास 25 से 30 नाली पक्की ज़मीन, पानी का प्रबंध समेत काम करने वाले लोग होने चाहिए. खास बात है कि को-ओपरेटिव सोसायटी इन सभी आवश्यकताओं को पूरा करने वाली है. इसके लिए 50 लाख रुपए तक का लोन भी मिल सकता है.
कैसे होता है ट्राउट मछली का पालन
इन मछलियों को तालाब के जगह रेसवे में पाला जाता है, जो कि लगभग 25 मीटर लंबे और 2 मीटर चौड़े होते हैं. इनकी गहराई लगभग 1 मीटर की होती है. बता दें कि एक साथ 20, 25, 30 रेसवे बनाए जा सकते हैं. एक रेसवे से 8 से 9 महीने में 1 टन से अधिक ट्राउट मछली का उत्पादन होता है.
ट्राउट मछली पालन से मुनाफ़ा
अगर ट्राउट मछली पालन से होने वाले मुनाफ़े की बात की जाए, तो साल भर में 10 से 11 लोगों की कोऑपरेटिव सोसायटी को लगभग 25 लाख रुपए तक का मुनाफ़ा मिल सकता है. खास बात है कि, फ़िश फ़ार्मिंग पर काम करने वालों को वेतन भी मिलता है.आपको बता दें कि उत्तराखंड को प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध माना जाता है. यहां 1 हजार से अधिक छोटी-बड़ी नदियां हैं इसलिए राज्य में चाल-खाल, तालाब बनाकर, वर्षा जल का संरक्षण कर मत्स्य पालन के लिए पानी मिल जाता है. अगर मत्स्य पालन को गंभीरता से किया जाए, तो इसमें बड़े स्तर पर रोज़गार देने की क्षमता है. राज्य में मत्स्य विभाग ट्राउट पालन की तरह कई विभिन्न योजनाएं चला रहा है. इनके द्वारा स्वरोज़गार शुरु करके अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है.अगर किसी को इस संबंध में अधिक जानकारी लेनी है, तो वह मत्स्य विभाग की वेबसाइट fisheries.uk.gov.in पर जाकर ले सकता है. इसके साथ ही विभाग के ज़िला कार्यालय से भी संपर्क किया जा सकता है.
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