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फरवरी में पशुओं की कैसे करें देखभाल? जानें स्वास्थ्य और प्रजनन के लिए उपयोगी सुझाव

फरवरी का महीना पशुपालन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस समय मौसम के बदलाव के साथ पशुओं की देखभाल में विशेष ध्यान देना पड़ता है. उचित पोषण, स्वच्छ पानी और सही प्रबंधन से पशु स्वस्थ रहते हैं और उनकी उत्पादकता में सुधार होता है.

मोहित नागर
मोहित नागर
February livestock management
फरवरी में पशुओं की कैसे करें देखभाल?

February livestock management: फरवरी का महीना सर्दी से गर्मी की ओर बढ़ने का समय होता है, जो पशुओं के स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है. इस दौरान सही प्रबंधन से न केवल पशुओं की सेहत को बनाए रखा जा सकता है, बल्कि उनकी उत्पादकता भी बढ़ाई जा सकती है. पशुओं को संतुलित आहार, स्वच्छता, और उचित देखभाल प्रदान करना बेहद जरूरी है. इस लेख में डेयरी, भेड़-बकरी, मुर्गी, खरगोश, और मछली पालन से जुड़े सुझावों पर चर्चा की गई है, ताकि किसानों को अपने पशुधन की देखभाल में मदद मिल सके और उनका उत्पादन बेहतर हो सके.

डेयरी पालन

दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए गायों को खनिज मिश्रण देना अत्यंत आवश्यक है. गायों के दूध उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्हें कैल्शियम, फास्फोरस, और मैग्नीशियम जैसे खनिजों से भरपूर आहार देना चाहिए. यह न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि करता है, बल्कि गायों की सामान्य सेहत को भी बेहतर बनाता है. खनिजों की कमी से गायों में दूध उत्पादन में कमी आ सकती है, इसलिए खनिज मिश्रण को नियमित रूप से देना चाहिए. गर्भवती और दूध देने वाली गायों और भैंसों को संतुलित आहार खिलाएं. पशुओं को दिन के समय धूप में रखें. पशुओं को आवश्यकतानुसार चारे का प्रबंध भी करें. पशु शेड को बंद करते समय रोशनदान पर हल्के पर्दे लगा दें ताकि शेड से हवा बाहर निकल सके. शेड के फर्श पर सूखे भूसे की एक मोटी परत बिछाएं. गीले भूसे को निकालकर खाद में मिला दें.

भेड़ व बकरी पालन

फरवरी का महीना भेड़ों और बकरियों के लिए प्रजनन का उपयुक्त समय होता है. इस महीने में भेड़ों का मेटिंग करवाना सुनिश्चित करता है कि वे अच्छे मौसम में स्वस्थ बच्चों को जन्म दें. इस समय में फ्लशिंग करना बेहद महत्वपूर्ण है. फ्लशिंग का मतलब है प्रजनन से पहले भेड़ों और बकरियों को उच्च प्रोटीन वाली दलहन चारा और ऊर्जा से भरपूर चारा, खनिज मिश्रण और विटामिन्स देना. इससे उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ती है और अधिक स्वस्थ बकरियां और भेड़ें उत्पन्न होती हैं. उचित पोषण से प्रजनन दर में सुधार होता है और यह सुनिश्चित करता है कि मादा पशु स्वस्थ संतान को जन्म दे सके. एक वर्ष से अधिक उम्र के बकरों एवं बकरियों को 250-500 ग्राम संतुलित आहार एवं चारा खिलायें. इससे अंडाशय का बेहतर विकास होता है.

मुर्गी पालन

मुर्गी पालन में पानी की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस महीने में मुर्गियां जलजनित रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं यदि पानी की गुणवत्ता ठीक न हो. पानी को नियमित रूप से जांचना और यह सुनिश्चित करना कि यह पीने योग्य है, बेहद जरूरी है. पानी की शुद्धता और सही तापमान मुर्गियों की सेहत पर सीधा असर डालता है, जिससे उनके अंडा उत्पादन में भी सुधार होता है. अधिकतम अंडा उत्पादन के लिए अंडे देने वाली मुर्गियों की फ़ीड में 5% शेल ग्रिट मिलाएं. मुर्गियाँ पालने के लिए फरवरी बहुत उपयुक्त महीना है. चूजों को अच्छी तरह से विकसित होने के लिए जीवन के पहले महीने के दौरान लगभग 32°C तापमान की आवश्यकता होती है. इस बीच चूजों की जांच की जानी चाहिए और कमरे/शेड में ब्रूडर के नीचे रखा जाना चाहिए. अंडे देने वाली नस्ल के चूजों को 0-1 सप्ताह तक 24 घंटे, 2-3 सप्ताह तक 20 घंटे, 4-12 सप्ताह तक 1 घंटा प्रकाश प्रदान किया जाना चाहिए.

खरगोश पालन

फरवरी का महीना खरगोशों के लिए प्रजनन के लिए उपयुक्त है. इस समय वातावरण की स्थिति खरगोशों के लिए अनुकूल होती है और वे अधिक बच्चे पैदा कर सकते हैं. उचित प्रजनन प्रबंधन सुनिश्चित करता है कि स्वस्थ और मजबूत बच्चों का जन्म हो. खरगोशों को सही आहार और स्वच्छ पर्यावरण देना महत्वपूर्ण है, ताकि उनके बच्चे अच्छे से बढ़ सकें.

सूअर पालन

सूअर शेड की पूरी तरह से सफाई करें. आवश्यकतानुसार फर्श पर पुआल फैलाएं. पिगलेट पिंजरे में लगभग 2 फीट की दूरी पर बल्ब लगाकर गर्म रखें.

मछली पालन

तालाब के चारों ओर छायादार वृक्ष लगाएं. फरवरी के आखिरी सप्ताह में मछलियों को खाना खिलाना शुरू करें. मछली के बच्चों के लिए प्रतिदिन शरीर के वजन का 3 से 5% की दर से मछली का चारा दिया जाना चाहिए. मछलियों के लिए तालाब में उचित वातायन सुनिश्चित करें.

मवेशियों का कृमिनाशन

घोंघा जनित टे्रमेटोड संक्रमण, जैसे कि ऐम्फिस्टोमोसिस और फासियोलोसिस, जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल के महीनों में मवेशियों (भेड़, बकरी, गाय) में बहुत सामान्य होते हैं, खासकर उन छोटे पशुओं में जो पानी के निकायों के पास चरने जाते हैं. प्रभावित छोटे मवेशियों में गंभीर गंधयुक्त दस्त, एनीमिया, सब-मैंडिबुलर एडिमा (जबड़े के नीचे सूजन), बार-बार पानी पीना, और मवेशियों में पुनरावृत्त गैस्ट्रिक सूजन (ब्लोट/अफ़ारा) हो सकता है. इन फ्लूक संक्रमणों को शीघ्र पहचान और उपचार द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है. उचित कृमिनाशक दवाइयों का उपयोग और पशुओं के मल परीक्षण के द्वारा इन संक्रमणों का जल्दी इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा, पशुओं को पानी के निकायों के पास चरने नहीं दिया जाना चाहिए. पशुओं में टिक्स और माइट्स के नियंत्रण के लिए पशुओं के शरीर त्वचा पर 2 मिली प्रति लीटर ब्यूटॉक्स और गौशालाओं में 1-3 मिली/लीटर पानी का छिड़काव करें. साथ ही गौशाला को साफ रखें और गौशाला में पानी जमा न होने दें.

ओस लगी घास पर चराना

मवेशियों (गाय, बकरी, भेड़) को सूर्योदय से पहले ओस लगी घास पर नहीं चरने देना चाहिए. ओस में घास का गीला होना उनके पाचन तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है और इससे पेट की समस्याएं हो सकती हैं. घास पर ओस के पानी के असर से बचने के लिए केवल धूप में सूखी घास पर ही चरने देना चाहिए.

English Summary: February livestock management tips health and productivity Published on: 23 January 2025, 04:02 IST

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