लंपी वायरस गाय, बकरियों जैसे दूध देने वाले मवेशियों को अपना निशाना बनाता है. इस वायरस के प्रभाव से बकरियों के शरीर पर गहरी गांठें बन जाती हैं और यह बड़ी होकर घाव के रुप में तब्दील हो जाती हैं. इसको आम भाषा में गांठदार त्वचा रोग के नाम से भी जाना जाता है. बकरियों में यह बीमारी होने से उनका वजन कम होने लगता है और उनकी दूध देने की क्षमता कम होने लगती है.
लंपी वायरस के लक्षण
इस रोग के कारण बकरियों को बुखार आने लगना, आंखों से पानी निकलना, लार बहना, शरीर पर गांठें आना, पशु का वजन कम होना, भूख न लगना और शरीर पर घाव बनना आदि जैसे लक्षण होते हैं. आपको बता दें कि लंपी रोग सिर्फ जानवरों में होता है. यह लंपी वायरस गोटपॉक्स और शिपपॉक्स फैमिली का होता है. इन कोड़ो में खून चूसने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है.
बकरियों पर इसका असर
इस वायरस की चपेट में आने के बाद बकरियों में इसका संक्रमण 14 दिन के भीतर दिखने लगता है. जानवर को तेज बुखार, शरीर पर गहरे धब्बे और खून में थक्के पड़ने लगते हैं. जिस कारण बकरियों का वजन कम होने लगता है और इनकी दूध देने की क्षमता कम हो जाती है. इसके साथ ही पशु के मुंह से लार आने लगता है और गर्भवती बकरियों का गर्भपात होने का भी खतरा बढ़ जाता है.
लंपी वायरस की उत्पत्ति
दुनिया में पहली बार लंपी वायरस को अफ्रीका महाद्वीप के जाम्बिया देश में पाया गया था. वर्तमान में यह पहली बार 2019 में चीन में सामने आया था. भारत में भी यह 2019 में ही आया था. भारत में पिछले दो सालों से इसके काफी सारे मामले देखने को मिले हैं.
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क्या बकरियों का दूध पीने योग्य होता है?
लंपी वायरस मच्छर, मक्खी, दूषित भोजन और संक्रमित पाशुओं के लार के माध्यम से ही फैलता है. इस वायरस को लेकर लोगों के मन में यह डर बना है कि क्या इस वायरस से पीड़ित पशुओं के दूध का सेवन करना चाहिए या नहीं. आपको बता दें कि पशुओं के दूध का उपयोग किया जा सकता है लेकिन आपको दूध को काफी अच्छे से उबाल लेना होगा. ताकि दूध में मौजूद वायरस पूरी तरह से खत्म हो जाए.
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