छत्तीसगढ़ राज्य की जीवनदायिनी कही जाने वाली महानदी और शिवनदी से 10 साल पहले स्पोर्टस मछली कही जाने वाली महाशीर मछली आज विलुप्त हो चुकी है. इसके लिए रिसर्च जल्द ही शुरू होने वाला है. इस तरह के प्रोजेक्ट को कामधेनु विवि दुर्ग को भेजा है. बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य में यह मछली महानदी और शिवनाथ नदी में 10 साल पहले ही पाई जाती थी. यह मछली पानी में इतराने और खेलने वाली मछली थी, इस कारण इसको स्पोर्ट्र्स मछली भी कहा जाता है, लेकिन यह राज्य में विलुप्त हो चुकी है. इसीलिए इसकी रिसर्च की जा रही है. सबसे खास बात तो यह है कि इसे जिले के जंगल रेंज और वहां ककूदर क्षेत्र के डैम व एनीकट में रखकर पाला जाएगा. उन्होंने कहा कि जिले में सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश की मछलियां यहां पाई जाती है. वहां पर मछली का बीज डाला जाएगा, इसके बाद यहां पालकर नदी में छोड़ा जाएगा.
जलवायु परिवर्तन से विलुप्त हुई मछली
यहां की मछली अन्य मछलियों से हटकर है. यह पानी के न्यूनतम 20 तापमान व पर्याप्त ऑक्सीजन वाले क्षेत्र में रह सकती है. लेकिन राज्य के बीते 10 वर्षों के आंकड़ों को देखा जाए तो लागतार तापमान में भी वृद्धि हो रही है. साथ ही जलवायु परिवर्तन से इन मछलियों को ज्यादा प्रभाव हुआ है.
400 से 500 रूपए प्रति किलो में बेची जाती है
यह मछली सबसे महंगी मछली में शुमार है. इसका वैज्ञानिक नाम टोर-टोर और टोर खुदरी भी है, हिमाचल प्रदेश में इस मछली का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. वहां से दूसरे प्रदेश में एक्सपोर्ट भी किया जा रहा है. वहां मशीहार 400 से 500 रूपए तक बेची जाती है. मछली न्यूनतम 500 ग्राम से लेकर 30 से 40 किलो वजन की होती है. अगर रिसर्च के बाद इस मछली का पालन छत्तीसगढ़ में होता है तो इससे मत्स्य किसानों को फायदा होगा.
डैम में पलेगी मछली
जिले के बड़े बांध सरोदा, छिरपानी, सुतियापाट, कर्रानाला, में मछली पालन किया जाता है. लेकिन यहां मशहीर मछली नहीं पाली जा रही है. रिसर्च के दौरान इन बांध समेत एनीकट में मछली के बीज को डाला जाएगा. बाद में इन सभी को नदी में छोड़ा जाएगा,
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