
भारत में भैंसों की कई बेहतरीन नस्लें पाई जाती हैं, जिनमें "बन्नी भैंस" एक खास पहचान रखती है. यह नस्ल मुख्य रूप से गुजरात राज्य के कच्छ जिले के बन्नी क्षेत्र में पाई जाती है. बन्नी भैंसों को कच्छी और कुंडी नामों से भी जाना जाता है. यह नस्ल 500 साल पहले अफगानिस्तान के हलीब क्षेत्र से आई मालधारी समुदाय द्वारा लाई गई थी, जो अपने जानवरों को चराने के लिए भारत आए थे.
बन्नी क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की स्थिति के अनुसार यह नस्ल खुद को पूरी तरह अनुकूलित कर चुकी है. यहां की मिट्टी खारी, कम उपजाऊ और जलधारण क्षमता में कमजोर होती है, लेकिन बन्नी भैंसें इन विषम परिस्थितियों में भी दूध उत्पादन में पीछे नहीं रहतीं. इनका पालन मुख्यतः दूध और खाद्य उत्पादन के लिए किया जाता है. बन्नी भैंसें रात में चारागाहों में चरती हैं और दिन में आराम करती हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य और दूध उत्पादन बेहतर बना रहता है. ऐसे में आइए "बन्नी भैंस" (Banni Buffalo) के बारे में विस्तार से जानते हैं-
बन्नी भैंस कहां पाई जाती है?
बन्नी भैंसों का प्रजनन क्षेत्र गुजरात के कच्छ जिले के बन्नी क्षेत्र में स्थित है, जो 65° से 70° पूर्वी देशांतर और 23° से 23°52’ उत्तरी अक्षांश के बीच आता है. इस क्षेत्र की जलवायु गर्म और सूखी है, और मिट्टी खारी तथा रेतीली है. इस वजह से यहां सीमित कृषि होती है लेकिन पशुपालन में यह क्षेत्र काफी समृद्ध है.
बन्नी भैंस का मुख्य उपयोग और उत्पत्ति
बन्नी भैंस (Banni Buffalo) का प्रमुख उपयोग दूध और खाद्य उत्पादन है. इनका इतिहास बहुत रोचक है. लगभग 500 साल पहले, हलीब (अफगानिस्तान) से मालधारी समुदाय अपने पशुओं के साथ भारत आया था और बन्नी क्षेत्र में बस गया. स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार, इन भैंसों ने खुद को पूरी तरह ढाल लिया. आज यह नस्ल "बन्नी" नाम से प्रसिद्ध है, जो उस क्षेत्र का स्थानीय नाम भी है.
बन्नी भैस की पहचान
बन्नी भैंसों का रंग आमतौर पर काला होता है, हालांकि कुछ में कॉपर रंग की झलक भी देखी जाती है. इनके दो मजबूत और घुमावदार सींग होते हैं, जो ऊपर की ओर मुड़े होते हैं और कई बार डबल या सिंगल कुंडली बनाते हैं. ये भैंसें दिखने में भारी-भरकम होती हैं और उनकी संरचना मजबूत होती है. मादा भैंसों की औसत ऊंचाई 137 सेंटीमीटर और शरीर की लंबाई 153 सेंटीमीटर तक होती है.
बन्नी भैंस का पालन कैसे किया जाता है?
बन्नी भैंसों को मुख्य रूप से व्यापक (extensive) प्रणाली में पाला जाता है. ये भैंसें स्थायी रूप से किसी स्थान पर नहीं रहतीं, बल्कि रात के समय बन्नी घास के मैदानों में चरती हैं. एक झुंड में सामान्यतः 15 से 25 भैंसें होती हैं और कुछ स्थानों पर यह संख्या 100 से 150 तक भी जाती है. मादा भैंसों को गर्भावस्था के दौरान विशेष रूप से पोषक आहार दिया जाता है.
बन्नी भैंस की दूध उत्पादन क्षमता
एनडीडीबी के अनुसार, बन्नी भैंसों की औसत पहली ब्यांत की आयु 40.3 महीने होती है. इनके ब्यांत का अंतराल 12 से 24 महीनों तक होता है. एक ब्यांत में यह भैंस औसतन 2857.2 लीटर दूध देती है. अधिकतम दूध उत्पादन 6054 लीटर तक दर्ज किया गया है. दूध में वसा (फैट) की मात्रा औसतन 6.65% पाई जाती है, जो इसे उच्च गुणवत्ता वाला बनाती है.
बन्नी भैस की विशेषताएं
बन्नी भैंस (Banni Buffalo) की सबसे खास बात यह है कि यह बहुत कठोर और टिकाऊ होती है. कम जल संसाधन और गर्म वातावरण में भी यह भैंस उच्च मात्रा में दूध देती है. इसकी सींगों की बनावट और ऊंचा शरीर इसे अन्य नस्लों से अलग पहचान देते हैं.
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि बन्नी भैंस न केवल गुजरात की बल्कि पूरे भारत की एक अमूल्य धरोहर है. इसकी दूध उत्पादन क्षमता, कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता और परंपरागत चराई पद्धति से जुड़ाव इसे खास बनाते हैं. यदि इसे वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित और बढ़ावा दिया जाए, तो यह नस्ल भारत के दुग्ध उद्योग में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.
Share your comments