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किसानों की आय को दोगुना करने का बेहतर जरिया बागवानी

यह तो सभी जानते हैं कि फल और सब्जियां विटामिन और पोषक तत्वों का एक बेहतरीन जरिया है. भारतीय मसालें हमारी संस्कृति में एक बेहतर भारतीय खाद्य सामग्री का राजा माना जाता है, यह उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है. हर त्यौहार और कार्यक्रम की फूल और मालाओं से शोभा बढती है. यह भारतीय कृषि का एक हिस्सा है जिसको बागवानी कहा जाता है.

भारत में बागवानी की उपलब्धियों, परेशानियों और इनके आंकड़ों को जानने के लिए कृषि जागरण ने भारत सरकार के बागवानी आयुक्त डॉ. बी.एन.एस. मूर्ति से बात की जिन्होंने इसके अधिकतर विषयों के बारे में बताया पेश है कुछ प्रमुख अंश..

देश में बागवानी की स्थिति कैसी है ?

बागवानी 6 भागों में विभाजित है, जिसमें सब्जियाँ, फल वाली फसल, मसाले, सजावटी पौधे, बागानी फसलें और मशरुम शामिल है. दूसरी फसलों के मुकाबले देश में बागवानी अच्छी स्थिति में है. यदि दूसरी खाद्य फसलों से बागवानी की तुलना की जाए तो उसके मुकाबले किसानों को अच्छे दाम मिलते है.  लेकिन उत्पादन और पोस्ट हार्वेस्ट को लेकर कुछ समस्याए हैं. यदि कोई किसान 1 गेहूं बेचता है और यदि वह कोई बागवानी उत्पाद जैसे सेब या आम बेचता है तो उसको गेहूं के मुकाबले अधिक मूल्य मिल जाता है. फलों जैसे केला आदि में तो 30 गुना अधिक तक मूल्य मिल जाता है. फूलों में 30 से 35 गुना अधिक मूल्य किसान को मिल जाता है. इसलिए इसके जरिए किसान आसानी से अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं.

 

अन्तर्राष्ट्रीय उत्पाद गुणवत्ता कैसे भारतीय बागवानी उत्पादों से अलग है?

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार को एक छंटाई प्रोसेस से गुजरना होता है. इसके लिए एक ग्रेडिंग सिस्टम का पालन करना करना पड़ता है जब भी कोई उत्पाद को खेत से खरीदता है. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उत्पाद की गुणवत्ता देखी जाती है यदि A ग्रेड का उत्पाद मार्किट में पहुँचाया जाता है तो उसके अच्छे दाम मिलते हैं. C ग्रेड के उत्पाद को प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के काम में लिया जाता है जबकि भारत के उत्पादन का 2 से 5 प्रतिशत बागवानी उत्पाद प्रोसेसिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है. भारत में धीमी प्रोसेसिंग प्रक्रिया होने की वजह से बाजार मूल्य उसकी गुणवत्ता ग्रेड पर निर्भर करते हैं. उत्पाद के ग्रेड जैसे A,B,C आदि उसके वजन, गुणवत्ता और आकार पर निर्भर करता है. 

बागवानी गुणवत्ता एवं आंकड़ों के आधार पर कैसा प्रदर्शन कर रहा है. कृषि क्षेत्र के आधार पर इसकी आंकड़ों के अनुरूप तुलना कीजिए ?

भारत में 140 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि पर 17 प्रतिशत क्षेत्रफल बागवानी फसलों का है. जिससे कृषि की कुल जीडीपी का 30 प्रतिशत है. भारत लगभग 20 प्रतिशत A ग्रेड उत्पादन करता है इसको बेहतर कृषि क्रियाओं के जरिए और भी बढ़ाया जा सकता है. आंकड़ों के अनुसार लगभग 299.85 मिलियन टन उत्पादन इस साल हुआ है, जबकि पिछले साल यह 283.4 मिलियन टन था तुलना करें तो उत्पादन में   4.8 प्रतिशत और क्षेत्रफल में 2.6 में बढ़ोतरी हुई है. इस बार बागवानी उत्पादन चौकाने वाला रहा है, पिछले 5 सालों में यह दूसरी कृषि फसलों जिसका उत्पादन 271 मिलियन रह गया है से कहीं अधिक हुआ है. 25.5 मिलियन हेक्टेयर में 299.85 मिलियन टन उत्पादन मायने रखता है.

हम अपने उत्पाद की गुणवत्ता और उत्पादन कैसे बढ़ा सकते हैं ?

अच्छे उत्पाद के लिए हमें अच्छी ही शुरुआत करनी होगी. इसके लिए अच्छी किस्म के पौधे लगाने होंगे जो की बहुत जरुरी है. इसके अलावा समय पर खाद उर्वरक देना आदि लाभकारी है. सिंचाई देश में बड़ी समस्या है इसके चलते कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. बेहतर ग्रेड वाला उत्पादन  और भी बढाया जा सकता है लेकिन इसके लिए अच्छी किस्म और गुणवत्ता के पौधों का लगाना जरुरी है. सामान्य तौर पर हमारे भारतीयों में अकसर यह है कि गुटी विधि द्वारा तैयार किये गए पौधों को गलत लेबलिंग करके किसानों को दे दिया जाता है. यह एक समस्या है, किसान इसके विषय में जानकारी रखे यही एक बेहतर तरीका है. इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी किसानों की मदद कर रहे हैं. 

भारतीय जलवायु के हिसाब से कौन से फल व सब्जियाँ किसानों को लाभ पहुंचाते है ?  

बागवानी के अन्य विभागों में सब्जी के मुकाबले फल ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं.भारत में उगाये जाने वाले आम, केला, पपीता और अनार मुख्य फल हैं जो कि कृषि जलवायु के हिसाब से अलग-अलग क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, लेकिन इनमें भी अनार का प्रदर्शन सबसे बेहतर है. किसानों को चाहिए की वो राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से अधिकृत नर्सरी से ही गुणवत्ता वाले पौधे और अन्य प्लांटिंग मैटेरियल लें. स्टार रेटिंग और ग्रेडेड नर्सरी इसमें किसानों की मदद करती हैं.

मानसून उत्पाद की गुणवत्ता को कितना प्रभावित करता है ?

पिछले कुछ सालों से भारत में मानसून काफी अच्छा रहा है. इससे सिर्फ सूखाग्रस्त क्षेत्र प्रभावित हुए हैं. लेकिन ज्यादातर बागवानी फसलें इससे प्रभावित नहीं होती हैं. बागवानी फसलों को निश्चित सिंचाई की आवश्यकता हर समय बनी रहती है. इसके लिए टपक सिंचाई को अपनाना चाहिए. हमें सिंचाई के लिए पानी को स्टोर करने और वाटर  हार्वेस्टिंग की जरुरत है. ताकि ऐसे इलाकों में सिंचाई सही से की जा सके. जैसे गेहूं, दाल और धान आदि फसलों में सिंचाई की जाती है.

 भारतीय बागवानी उत्पादों के निर्यात की स्थिति कैसी है ? 

भारतीय बागवानी उत्पादों का निर्यात अच्छे स्तर पर है. साल 2014-15 में 28,628 करोड़ रूपये का एक्सपोर्ट किया गया था. जिसमें फल और सब्जियों का अकेले 7.7 करोड़ रूपये का निर्यात किया गया था जबकि फूलों का 460 करोड़ का निर्यात किया गया था. इसमें मुख्यत: काजू और मसाले निर्यात किए गए थे. भारत में काजू के प्रोसेसिंग के लिए बहुत विकल्प है लेकिन कच्चे माल की कमी के चलते प्रोसेसिंग इंडस्ट्री इनको इम्पोर्ट करके फिर प्रोसेस करके लाभ कमाती है. सरकार भी काजू के उत्पादन में बढ़ोतरी करने के प्रयास कर रही है. दक्षिण राज्यों तेलेगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू, गुजरात और छतीसगढ़ जैसे राज्यों को इसके लिए फोकस किया जा रहा है. इसकी कीमत 180 से 200 रुपए प्रति किलो है.  

एक अत्याधुनिक तकनीक वाला देश होते हुए भी हमें पोस्ट हार्वेस्ट की समस्या से जूझना पड़ रहा है. इसका क्या समाधान है ? 

देश में  कोल्ड स्टोरेज एक बड़ी समस्या है इसकी स्थिति दयनीय है. हर साल 20 -30 प्रतिशत तक इसकी वजह से उत्पादों का नुकसान होता है. यह सब किसानों को ही झेलना पड़ता है. इस नुक्सान की आपूर्ति कोल्ड स्टोरेज के जरिए की जा सकती है. फलों और सब्जियों की सुरक्षा के लिए  दूसरे तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. हम कुछ समस्याओं कोल्ड स्टोरेज, पैक्ड हाउसेस, राईपनिंग चैम्बर और कोल्ड वैन जैसी सुविधाए में पीछे हैं. इन सब सुविधाओं के होते हुए विभिन्न बागवानी फसलों को ज्यादा से ज्यादा 20 दिन से 6 महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है. आलू, प्याज टमाटर की बात करते हैं, बागवानी बाजार इन फसलों पर ही निर्भर करता है. इनको स्टोरेज में रखने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके लिए प्रयास करने जरुरी है. पिछले दो तीन  सालों में सरकार ने कुछ प्रयास किए है. 1 से 2 मीट्रिक टन के कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए 6 से 8 करोड़ रूपये के निवेश की आवश्यकता होती है.

किसानों की आय को दोगुना करने के लिए बागवानी विभाग का क्या कार्य कर रहा है ?

किसानों की आय दोगुना करने के लिए सबसे पहले उनके लिए सही तरीके से बाजार स्थापित करने की आवश्यकता है. उनके व्यवसाय को बढाने के लिए उनको बाजार से जोड़ा जाए. टमाटर, प्याज और आलू बाजार में उठा-पटक करने वाली फसलें हैं. हमारे पास विभिन्न फसलों का उत्पादन कैलेंडर होना आवश्यक है और उनकी अवस्थाओं को विश्लेषित किया जाना चाहिए. कुछ अलग राज्यों में विभिन्न फसलों के लिए उत्पादन क्षमता और जलवायु अलग है. इस तरह के राज्यों को अपनी प्रमुखता पर ध्यान देकर सही प्रणाली के जरिए देश के अच्छे बाजार से जोड़ा जाना चाहिए. अभी बागवानी फसलों के बाजार को अत्याधुनिक तकनीकों से लैस करने करने की जरुरत है जिससे किसानों को फायदा मिल सके. इसके अलावा किसानों की आय बढाने का एक और ज़रिया है कि किसान फसलों के साथ मधुमक्खी पालन, मशरूम, मसाले उत्पादन और सुगंध एवं औषधीय पौधों का उत्पादन करें . इससे उनकी आय में इजाफा होगा. सरकार इसके लिए मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट हॉर्टिकल्चर (एमआईडीएच) स्कीम के जरिए किसानों को सहयोग कर रही है. इस योजना के तहत किसानों को नर्सरी विकास, औद्यानिक क्रियाए , सिंचाई और सब्सिडी जैसी सुविधाए उपलब्ध है. डॉ. बी.एन.एस मूर्ति कहते है कि जो स्मार्ट किसान हैं  उनको सब्सिडी की ओर नहीं देखते हुए अपने उत्पाद की गुणवत्ता और अच्छे मूल्य की और ध्यान देना चाहिए.

 

English Summary: Horticulture: Better to double the income of farmers: Dr. BNS Murthy

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