बाज़ार की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए किसानों के दिमाग में यह डालने की कोशिश की बिना उनके उत्पादों के खेती संभव नहीं हो सकती. धीरे-धीरे कंपनियों का यह प्रभाव किसान भाईयों पर भी कहीं ना कहीं देखने को मिला. आज़ हर प्रकार की खेती में रसायनों और दवाईयों का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है, जिसके दुशपरिणाम कैंसर जैसे बीमारियों के रूप में सामने आ रहे हैं.
गौरतलब है कि कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे महंगे कीटनाशक एवं अन्य दवाईयां कीटों के साथ-साथ हमारे लिए भी विषाक्त का काम कर रही है, जिससे मनुष्यों में गंभीर बीमारियों और रोगों की एक श्रृंखला पनपती जा रही है. इन्हीं बीमारियो से लोगों को बचाने एवं शुद्ध खेती को बढ़ावा देने के लिए एक तरफ जहां सरकार प्रयासरत है, वहीं कुछ किसान भाई भी ओर्गेनिक खेती कर अपना लोहा मनवा रहे हैं.
हरियाणा राज्य के पलवल जिले में एक ऐसा ही गांव है 'वड़ा', जहां किसान ओमवीर सिंह ने ओर्गेनिक खेती से जुड़े सभी भ्रमों को तोड़ते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. उनकी कामयबी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार से उन्हें दर्जनों आवार्ड एवं सम्मान मिल चुके हैं. इतना ही नहीं भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद ने भी उनके कामों की सराहना करते हुए उन्हें आवार्ड से सुशोभित किया है. पेश है उन से बातचीत के कुछ खास अंश.
1. आप कितने सालों से खेती कर रहे हैं?
जवाब: जी खेती तो मैं कई सालों से कर रहा हूं, लेकिन नई तकनीकों के सहारे ओर्गेनिक एवं शुद्ध खेती मेनें 5 साल पहले ही शुरू की थी. पहले छोटे स्तर पर यह काम शुरू किया था, लेकिन अब जब मुनाफा अच्छा हो रहा है तो आधे एकड़ में खीरा, आधे में ककड़ी एवं आधे में तरबूज़ एवं टमाटर उगा रहा हूं
2. क्या शुरू में किसी तरह की समस्या आई
जवाब: किसी भी क्षेत्र में जब कोई नया काम करता है, तो निश्चित ही अड़चने तो आती ही है. मुझे भी शूरू में बहुत परेशानी हुई. लोग मज़ाक उड़ाया करते थे और परिवार को भी लगता था यह मैं क्या कर रहा हूं. शुरू में कुछ समय मुनाफा भी नहीं हुआ, लेकिन मैं काम करता रहा. आज़ जब मैं अच्छा कमा रहा हूं, तो परिवार भी खुश है और गांव में भी लोगों ने ओर्गेनिक खेती करनी शुरू कर दी है.
3. क्या ओर्गेनिक खेती से लागत वसुल हो जाती है.
अक्सर लोगों को लगता है कि ओर्गेनिक खेती में कमाई ना के बराबर है, लेकिन मैं यहां लागत से बहुत अधिक कमा रहा हूं. उदाहरण के लिए आज बाजार में 15 रूपये किलो ककड़ी मिल रही है, लेकिन मैं यहां गांव में ही 30 रूपये किलो बेच रहा हूं. इस समय गर्मी के मौसम में तरबूज़, खीरा एवं ककड़ी से भी अच्छी आमदनी हो जाती है.
4. यह तो बाज़ार के दाम से भी अधिक है, फिर लोग कैसे खरीद लेते हैं
देखिए ग्राहक को अगर अच्छी और शुद्ध चीज़ मिले तो वह दो पैसे ज्यादा देने को भी तैयार होता है. आज़ वैसे भी हमारे चारों तरफ प्रदूषण इतना फैल चुका है, ऐसे में किसानों को यह बात समझने की आवश्यक्ता है कि शुद्ध उत्पादों की मांग बढ़ रही है.
5. इन उत्पादों को बेचने के लिए कहां मार्केट कहां जाते हैं
देखिए अगर आपके उत्पाद में शुद्धता है, तो मार्केट खुद आपकी पहचान कर लेता है. अब क्योंकि मुझे कुछ अच्छा-खासा वक्त हो गया है इस काम को करते हुए तो कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती. अच्छी चीज़ को खोजते हुए लोग यहां खुद आ जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यहां का उत्पाद स्वास्थवर्धक एवं शुद्ध होगा.
6. आप अति आधुनिक एवं विदेशी तरीकों से कृषि कर रहे हैं, इतना सब कुछ कहां से पता लगा
मेरा मानना है कि एक किसान को मेहनती होने के साथ-साथ जागरूक भी होना चाहिए. हमारे देश में किसान मेहनत तो कर रहा है, लेकिन उसे सरकार की योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. मैं हमेशा कृषि योजनाओं को जानने का इच्छूक रहा और सरकार द्वारा ओयोजित कैंपों, मेलों प्रर्दशियों में जाता रहा. फिर कृषि जागरण जैसी कुछ अच्छी पत्रिकाएं भी है जहां से खेतीबाड़ी के बारे में नई-नई बाते पता लगती है.
7. सरकार कितना सहयोग कर रही है
जैसा कि मेनें बताया सरकार काम कर तो रही है, लेकिन जागरूक्ता की कमी है. अब मुझे ड्रीप सीस्टम लगाने के लिए 85 प्रतिशत की छूट मिली, मलचींग पेपर निशुल्क मिला, इसी तरह सौर ऊर्जा लगाने के लिए भी सरकार ने अच्छी अनुदान मिला.
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