औषधीय खेती के जरिए भी अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है। मौजूदा सरकार भी किसान की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से आज परंपरागत खेती के साथ-साथ औषधीय खेती के प्रचलन को बढ़ाने का कार्य कर रही है। इस बीच सीएसआईआर, केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान ( सीएसआईआर- सीमैप) भी आज देश में इस खेती के जरिए किसानों को अवगत कराने का कार्य कर रहा है।
इस दौरान कृषि जागरण ने लखनऊ (उत्तर प्रदेश) संस्थान के निदेशक, अनिल कुमार त्रिपाठी से बातचीत की और संस्थान द्वारा विभिन्न स्थानों पर औषधीय खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए जा रहे कार्यों के बारे में जाना और साथ ही इसकी प्रचलित खेती के बारे में जाना।
प्रोफेसर अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि संस्थान परंपरागत खेती जलवायु परिवर्तन के दौरान अच्छा उत्पादन नहीं दे पा रही है। इसके फलस्वरूप किसानों की भी हिम्मत टूटती जा रही है। उन्हें इसके साथ-साथ विकल्प भी चाहिए जिसके लिए औषधीय खेती अच्छा उदाहरण है। प्रधानमंत्री के द्वारा किसान की आय दोगुनी के लक्ष्य को हासिल करने में यह जरूर सहायक होगी हालांकि पौधों को बढ़ाने में वक्त जरूर लगता है।
कम पानी में सगंध खेती सफल-
प्रोफेसर अनिल कहते हैं कि कम पानी वाली जगहों पर सगंध एवं औषधीय खेती अच्छा उत्पादन देती हैं। देश में विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में पानी की कमी है वहां कम पामारोजा और लेमनग्रास जैसी खेती का प्रचलन बढ़ाया जा रहा है। जो कि एक बार उगाने के बाद कई बार तक फसल देती है। पामारोज़ा, लेमनग्रास और खस में देश वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि मेंथा के क्षेत्र में अच्छी रुचि किसानों ने दिखाई जिसके फलस्वरूप देश वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सके।
जानवरों से नुकसान नहीं-
सगंध पौधों में तेल होने की वजह से इन्हें जानवरों से नुकसान नहीं होता है। वह उसे खाते नहीं है। इस प्रकार छुट्टा जानवर खाते नहीं है।
तेल के बाद चारा के रूप में उपयोग-
वह बताते हैं कि तेल निकलने के बाद इन फसलों के अवशेष चारा के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह एक अतिरिक्त फायदा है।
पामारोज़ा का बढ़ता प्रचलन-
गुजरात के कच्छ इलाके में इसकी खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप किसानों को फायदा मिला। आज वहां किसान इसकी खेती में रुचि दिखा रहे हैं।
खस की खेती-
तमिलनाडु में खस की खेती के लिए कार्य किया गया। अधिक तेल वाली किस्म से अच्छा फायदा हो रहा है। आज उसके दाम भी अच्छे मिल रहे हैं।
तटीय इलाकों में खस की खेती-
तटीय इलाकों में जैसे गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में खस की खेती की जा सकती है। ऐसे इलाकों में लोग बाढ़ आदि के कारण खेती छोड़ जाते हैं। लेकिन खस की खेती यदि करें तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। जहां किसान खेती करने डरते हैं ऐसे इलाके में यदि प्रति एकड़ सालाना 80 से 90 हजार रुपए किसान को मिल जाते हैं तो यह वास्तव में आमदनी को दो से तीन गुना करने वाली बात है।
औषधीय पौधों से कमाएं अच्छा लाभ-
प्रोफेसर अनिल बताते हैं कि शतावर की खेती एक एकड़ से दो लाख रुपए तक शुद्ध आमदनी कमाई जा सकती है। इसमें कांटे होने के कारण इसे जानवर नहीं नुकसान पहुंचाते हैं। इसे उद्दान, जंगलों व छाया में उगाया जा सकता है। शतावर को बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है।
अश्वगंधा भी कम पानी वाले इलाकों में उगाया जा सकता है। इसकी मांग अमेरिका जैसे बड़े देशों में बढ़ती जा रही है। लेकिन प्रोसेसिंग के लिए अभी कार्य करना है। इसकी जड़ से लेकर पाउडर बनाने तक का प्राथमिक प्रसंस्करण यदि किसानों को पास ही उपलब्ध हो जाएगा तो फिर परिवहन का खर्च नहीं ज्यादा आएगा और आमदनी बढ़ जाएगी। इसके साथ ही किसानों को बिचौलियों से भी मुक्ति मिल जाएगी।
एरोमा मिशन की प्रयोगशालाएं कर रहीं कार्य -
एरोमा मिशन की प्रयोगशालाएं अच्छा कार्य कर रही हैं। जम्मू, जोरहाट एवं पालमपुर की प्रयोगशालाएं हाईअल्टीट्यूड वाली खेती को बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं। जिरेनियम, जटामांसी लैवेंडर की खेती का प्रचलन बढ़ाया जा रहा है।
सरकार बढ़ा सकती है उद्दमिता-
सरकार को उद्दम बढ़ाने के उद्देश्य से कार्य करना होगा। यदि एमएसएमई ( सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम मंत्रालय) सहयोग करे तो सगंध पौधों से तेल निकालने एवं औषधीय पौधे जैसे अश्वगंधा से पाउडर बनाने का कार्य करने के लिए युवा उद्दम बढ़ाया जा सकता है। इससे किसानों को कई मायने में फायदा होगा। एक प्रकार से किसानों में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी साथ ही उन्हें अपने उत्पाद को लेकर दर-दर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए हो विकास-
प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है, औषधीय एंव सगंध पौधों की खेती को किसानों तक जानकारी एवं उसकी खेती का प्रशिक्षण अभी कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से कम किया जा रहा है। यदि आने वाले समय में केंद्र के माध्यम से किसानों को जानकारी मिलेगी तो निश्चित ही किसानों की इसमें रुचि बढ़ेगी।
English Summary: Farmer becomes self-sufficient by earning from medicinal farming
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