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स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना

भारत सरकार की नीति में गरीबी उन्मूलन हमेशा से एक प्राथमिकता रही है। वर्ष 2002-2003 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अभी लगभग 27.1 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे आती है। इसलिए पिछले दशकों के सतत् प्रयासों के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी गरीबी दिखाई पड़ती है, जो देश के विकास के काफी प्रभावित करती है।

मनीशा शर्मा
मनीशा शर्मा

हमारे देश में गरीबों की सहायता के लिये बहुएजेन्सी एवं बहु कार्यक्रम के दृष्टिकोण को अपनाया गया है। बहुत सारे कार्यक्रमों तथा कार्यान्वयन कर रही विभिन्न संस्थाओं के बीच पर्याप्त समन्वयन न होने के कारण प्रयासों के दोहराव होने के साथ-साथ भारी मात्रा में संसाधनों की क्षति हुई है। बड़े पैमाने पर एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम पहला बड़ा प्रयास था। यह कार्यक्रम वर्ष 1998-1999 तक लागू किया गया। इस प्रकार लागू किये गये अन्य प्रमुख कार्यक्रम में ग्रामीण युवा रोजगार प्रशिक्षण” ट्राइसेम” ग्रामीण क्षेत्र महिला एवं बाल विकास (ड्वाकरा) ग्रामीण कारीगरों को बेहतर उपकरण आपूर्ति “सिट्रा” गंगा कल्याण योजना (जीoकेoवाईo) तथा दस लाख कूप योजना (एमoडब्ल्यूoएसo) प्रमुख थे। यद्यपि  यह कार्यक्रम एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के साथ-साथ लागू किये गये फिर भी कार्यान्वयन की दृष्टि से इन कार्यक्रमों को अलग-अलग माना गया, इससे न नही सामाजिक प्रेरणा जागृति हुयी और न ही उचित सहबद्धता बन पाई और न ही सहभागिता उभर पाई। इसके कलस्वरूप ग्रामीण परिवारों द्वारा सतत् आमदनी बढ़ाने के स्थान पर प्रत्येक कार्यक्रम के अधीन लक्ष्य की उपलब्धि चिन्ता का विषय बन गई है।

संसाधनों की खपत और उपलब्धियों के बीच की खाई को देखते हुए भारत सरकार ने टिकाऊ आधार पर ग्रामीण परिवारों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर स्वरोजगार के अवसर तथा स्थानीय समुदाय की सहभागिता को अपने विचार के बिन्दु में रखते हुए कार्यक्रम तैयार करने का विचार किया। तदनुसार भारत सरकार ने 1 अप्रैल 1999 से स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसoजीoएसoवाईo) नामक एक नये कार्यक्रम को लागू किया।

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना क्या है?

  1. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना गरीबों को स्वयं सहायता समूहों में संशोधित करने का एक वृहत कार्यक्रम है इसमें, ऋण, प्रौद्योगिकी, बुनियादी सुविधायें तथा विपणन शामिल है।

  2. यह योजना पूर्व में लागू आईo आरo डीo पीo, ट्राईसेम, डीo डब्ल्यूo सीo आरo एo, सिट्रा, जीoकेoवाईo तथा एमo डब्ल्यूo एसo का स्थान लेगी।

  3. एसo जीo एसoवाईo गरीब उन्मूलन के लिए स्वयं सहायता समूहों के गठन के माध्यम से दी जाने वाली सहायता की अधिकांश राशि समूह स्तर पर या समूह के सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर स्थापित किये जाने वाले छोटे उद्यमों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की जाती है।

  4. एसoजीoएसoवाईo के अन्तर्गत प्रयास रहेगा कि गरीब लोगों द्वारा कलस्टरों में स्थापित किये गये छोटे से उन्हे स्वरोजगार के मोके प्राप्त “हों” जिससे उद्योग की गतिविधियों का उचित कार्यान्वयन तथा अनुप्रवर्तन किया जा सके। प्रत्येक विकास खण्ड के लिए कुछ प्रमुख गतिविधियों की पहचान की जायेगी। और सम्बन्धित प्रभागों/एजेन्सियों द्वारा आवश्यक सुविधायें प्रदान की जायेगी ताकि स्वरोजगारी अपने निवेश से टिकाऊ आमदनी पाने में सक्षम हो सकें।

एसo जीo एसo वाईo का उद्देश्यः

एसo जीoएसoवाईo का उद्देश्य स्वरोजगारों (गरीब परिवार) को बैंक ऋण तथा अन्य वित्तीय सहायता के माध्यम से उत्पादक स्रोंतों को उपलब्ध करवाना है, जिससे लम्बे समय तक सतत् आय सुनिश्चित हो सके।

लक्ष्य समूहः

एसoजीoएसoवाईo  के आधीन गरीबी रेखा के नीचे आने वाले सभी परिवारों को शामिल किया गया है। वर्तमान में गरीबी रेखा को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिमाह प्रति व्यक्ति पर हुए उपभोक्ता खर्च के रूप में परिभाषित की जाती है। ऐसे परिवार जो इस सीमा के नीचे आते हैं। उन्हें गरीबी रेखा के नीचे कहा जाता है।

एसoजीoएसoवाई-एक समग्र कार्यक्रम

एसoजीoएसoवाईo में समग्रता की अवधारणा

एसoजीoएसoवाईo की प्रमुख विशेषाएं

  1. एसoजीoवाईoएसoवाईo के आधीन वित्त पोषित परिवारों को स्वरोजगारी कहा जाता है।

  2. गरीबी उन्मूलन हेतु समूह अवधारणा अपनायी जाती है और सामाजिक प्रोत्साहन के माध्यम से गरीबों को स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित किया जाता है।

  3. छोटे उद्यमों के स्थापित करने के लिए समूह (कलस्टर ) अवधारणा अपनायी जाती है ।

  4. स्वरोजगारियों के छोटे उद्यम स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

  5. स्थानीय संसाधनों तथा लोगों की कुशलता के आधार पर प्रत्येक विकास खण्ड में प्रमुख गतिविधयों की पहचान की जाती है। जिन्हें कलस्टरों के रूप में सहायता दी जाती है।

  6. बुनियादी सुविधाओं में महत्वपूर्ण कमियों को दूर करने के लिए एसoजीoएसoवाईo आधारभूत निधि से सहायता दी जाती है।

  7. अनुदान योजना का एक छोटा हिस्सा होता है अधिकतर राशि बैंक ऋण के रूप में दी जाती है। और आवश्यकता पड़ने पर दूसरी या तीसरी बार भी ऋण दिया जा सकता है।

  8. स्वरोजगारियों के कौशल उन्नयन ,प्रद्योगिकी संवर्धन को उच्च प्राथमिकता दी जाती है।

स्वयं सहायता समूह- समूह अवधारणाः

  1. गरीबों में आपसी सहयोग की सम्भावना अधिन होती है।

  2. गरीबों की इसी सहयोगी सम्भावना का उपयोग करते हुये उन्हें समूह में संगठित करना।

  3. समूह गरीबों की इसी सहयोगी सम्भावना का उपयोग करते हुये उन्हें समूह में संगठित करना ।

  4. समूह के सदस्य अपने विकास के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सक्षम होते है।

  5. समूह के रूप में शक्ति असीमित हो जाती है।

स्वयं सहायता समूह क्या है?

स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों, में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले चिन्हित परिवरों के 10 से 20 लोगों का एक समूह है जिनकी आर्थिक एवं समाजिक स्थिति  एक जेसी हैं वह लोग अपनी इच्छा से एक समूह में संगठित होकर नियिमत रूप से 10, 20 या इससे अथिक बचत करके जरूरत मन्द सदस्थों को ऋण का लेन-देन करते है।

अशिक्षा, कुपोषण सामजिक व आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिये गरीबों के पास पूँजी नहीं है गतिविधियों हेतु शिवाल्विग फण्ड बैंक ऋण एवं अनुदान उपलब्ध कराया जाता है। ताकि आच्छदित समूदाय के पात्र लोग (सदस्य) अपनी आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु स्वयं संगठित रूप में सक्षम हो सकें। 

समूह क्यों बनायें?

स्वयं सहायता समूह गठन से उसके सदस्यों को निन्म लाभ होंगे।

  1. नियमित बचत द्वारा प्रत्येक सदस्य के आर्थिक स्तर में सुधार तथा स्वावलम्बी बनना विकास का पहला कदम है।

  2. छोटे ऋण समूह के कारपस फण्ड से आसानी से प्राप्त होता है, ऋण किसी भी कार्य के लिए हो सकता है।

  3. बैंक द्वारा और समूह के ग्रुप कारपस फण्ड के आधार पर नगद सीमा का निर्वारण करने से बार-बार ऋण लेने में आसानी हो जाती है।

  4. आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के निराकरण में समूह द्वारा मार्गदर्शन।

  5. छोटे रोजगार सम्बन्धी जानकारी एवं मार्गदर्शन।

  6. विशेषज्ञों/ सरकारी विभागों से साक्षरता, परिवार नियोजन तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी समूह के रूप में प्राप्त करना ।

  7. समूह से सहयोग की भावना ,आपसी विश्वास, क्षमता तथा आत्मनिर्भरता का विकास।

  8. आवश्यक वस्तुओं आदि की सामूहिक खरीद एवं विक्रय द्वारा लाभ।

  9. स्वयं के सर्वागीण विकास के साथ-साथ बाद में सहभागिता द्वारा गाँव का भी विकास।

समूह गठन से लाभः

  1. एक तरह से गरीबों का यह का छोटा अपना बैंक है। इसके सही रुप से चलाने के लिए नियम स्वयं बनाये होंगे।

  2. नियमित छोटी-छोटी बचतों से धीरे-दीरे समूह के सदस्यों में सामर्थ्ता आ जायेगी।

  3. समूह के क्रियाकलापों में पारदर्शिता है तथा समस्त निर्णय समूह के सदस्यों को मिलकर स्वयं करना है।

  4. समूह के रूप मं संगठित होने से परिसम्पत्तियों के रखरखाव तथा उनको अनु श्रवण में सहायता मिलेगी तथा आय सृजन गतिविधियों हेतु आर्थिक सहायता श्विवाल्विंग फण्ड/बैंक ऋण अनुदान मुहैया करावा जायेगा।

  5. विभिन्न स्तर पर बैंको द्वारा समूह अनुश्रवण में आसानी होती।

  6. नियमित बचत के फलस्वरूप बैंक तथा समूह सदस्य के बीच सीधा सम्पर्क हो सकेगा।

  7. साहूकार अथवा महाजन के चंगुल से छुटकारा।

एस.जी.एस.वाई.के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह के गठन, प्रवर्तक एवं सुदृणीकरण सम्बन्धी नियमः

(क) समूह गठन (संस्थान)

स्वयं सहायता समूह ग्रामीण गरीबों का समूह है जिसके अन्तर्गत गरीबी उन्मूलन के लिये स्वेच्छा से स्वयं एक समूह के रूप में संगठित हुए, वे नियमित रूप से बचत करने और अचतों को सम्मिलित निधि (कारपस फण्ड) में परिवर्तित करने के लिये सहमत हैं समूह के सदस्य कारपस फण्ड और ऐसे अन्य फण्ड का उपयोग करने के लिये सहमत हो सकते हैं जिसे वे एक समूह के रूप में सामान्य प्रकार से प्राप्त कर सकते हैं।समूह गठन में निम्न बिन्दुओं पर आवश्यक ध्यान दिया जाना है।

  1. स्वयं सहायता समूह में 10-20 व्यक्ति सदस्य होंगे। लघु सिंचाई एवं विकलांग के मामले में यह संख्या न्यूनतम 5 हो सकती है। प्रत्येक विकास खण्ड मे कुल समूहों के सापेक्ष 50 प्रतिशत समूह महिलाओं के होंगे।

  2. समूह के समस्म सदस्व गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले चिन्हित परिवारों के होने चाहिये। समूह में एक परिवार से एक से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिये।

  3. स्वयं सहायता समूह की सदस्यता हेतु18 से 60 वर्ष की आयु होनी चाहिए।

  4. समूह के सदस्यों का लगभग समान सामाजिक एवं आर्थिक स्तर होना चाहिए।

  5. स्वयं सहायता समूह एक अनौपचारिक समूह होना तथाति स्वयं को रजिस्ट्रेशन एक्ट, राज्य सहकारिता एक्ट,साझीदारी कर्म एक्ट के तहत पंजिकृत कराने की आवश्यकता नहीं है।

(ब) समूह आचारसंहिता एवं बैठकों का आयोजनः

  1. समूह को अपने को नियन्त्रित करने हेतु एक आचार संहिता (समूह प्रबन्धन नाम से) होनी चाहिए। आपसी सहमति से विभिन्न विचारणीय मुद्दों पर स्वतंत्र विचारों के आदान प्रदान को अनुमन्य करते हुये निर्णय लेने की प्रक्रिया में सदस्यों की समान सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

  2. समूह को प्रत्येक बैठक का एजेण्डा बनाने तथा प्रत्येक एजेण्डे पर विचार करने में सक्षम होना चाहिए। समूह के सफल संचालन के लिये नियमित बैठक की एक निश्चित तिथि व समय पर करें।

  3. एजेण्डा में बैठक का दिन समय व स्थान क साथ – साथ विभिन्न बिन्दुओं पर चर्चा होने का उल्लेख होना चाहिए।

(स) नियमित बचत एवं बैंक खाता खुलवाकर धनराशि जमा करनाः

  1. सदस्यों को नियमित बचतों के माध्यम से अपना कोष बनाना चाहिए। सदस्य नियमित बचत की मात्रा (धनराशि) स्वयं निश्चित कर सकते हैं। बचत की एक ही राशि सभी सदस्यों के लिये अच्छी है।

  2. समूह के सदस्यों से नियमित तौर पर न्यूनतम धनराशि संग्रह के लिये समर्थ होना चाहिए। समूह द्वारा चयनित कोषाध्यक्ष द्वारा धनराशि प्राप्त कर सदस्य के पासबुक में इंगित कर देना चाहिये।

  3. समूह द्वारा नियमित बचत कर एकत्रित धनराशि को समूह कोमन फण्ड (ग्रुप कारपस फण्ड) के नाम से जाना जायेगा। धनराशि को बैंक खाते में जमा किया जाना चाहिए। फण्ड से समूह द्वारा बैठक में पारित प्रस्ताव के आधार पर सदस्यों को ऋण दिया जाना चाहिए।

  4. बैंक में बचत खाता खुलवाने हेतु समूह द्वारा बैंक को-

  • (क) समूह नियमावली।

  • (ख) समूह का प्रस्ताव जिसमें प्रबन्धकीय समिति के सदस्यों को बचत खाता खोलने व खाता संचालन करने का अधिकार ।

  • (ग) प्रस्ताव नमूना हेतु

  • (घ) प्रबन्धकीय समिति के सदस्यों का फोटो उपलब्ध कराना होगा।

स्वयं सहायता समूह के पदाधिकारियों का परिचय, खाता खोलने के फार्म पर ग्राम पंचायत विकास अधिकारी अथव विकासखण्ड के अन्य अन्य सक्षम अधिकारी अथवा बैंक शाखा में जिस व्यक्ति का खाता हो द्वारा खाता सम्बन्धी कार्य पर परिचय कराया जा सकता है।

यह भी पढ़ें: जानें स्वयं सहायता समूह क्या है और यह कैसे कार्य करता है

समूह स्तर पर रखे जाने वाले रजिस्टर, लेखा पुस्तिका व अन्य अभिलेखः

  1. समूह नियमावली स्वयं सहायता समूह द्वारा विभिन्न विषयों पर नियमावली स्वयं तैयार की जानी चाहिये। नियमावली का एक प्रारुप है जिसे समूह सदस्यों के विचारोपरान्त आवश्यक सुधार / संशोधन के साथ समूह द्वारा अपनाया जा सकता है।

  2. कार्यवाही रजिस्टर ।

  3. समूह स्तर पर सदस्यों से प्राप्त धनराशि सम्बन्धी लेखा हेतु समूह का बचत खाता।

  4. समूह द्वारा सदस्यों को प्राप्त ऋण से सम्बन्धित लेखा हेतु समूह का ऋण खाता व व्यक्तिगत ऋण खाता।

  5. समूह द्वारा तैयार किया जाने वाला लाभ हानि खाता।

समूह के विकास के चरणः

  1. समूह गठन चरणः इस चरण में समूह के गठन एवं विकास की प्रक्रिया होती है।

  2. समूह की स्थिरता का चरणः आन्तरिक ऋण का लेनदेन शुरू होता है।

  3. सूक्ष्म ऋण चरणः यह समूह का तीसरा चरण है जिसमें बैंक नकद ऋण सीमा की स्वीकृति देता है।

  4. सूक्ष्म उद्यम विकास चरणः यह समूह विकास का चौथा चरण है जिसमें समूह आर्थिक गतिविधि करना आरम्भ करता है।

लेखक- 

विशाल यादव (शोध छात्र),
प्रसार शिक्षा विभाग,
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या

English Summary: swarna jayanti gram swarozgar yojana Published on: 05 February 2023, 02:01 IST

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