केंद्र सरकार ने हाल ही में छह राज्यों को सूखे को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं. केंद्र सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देश में यह साफ कहा गया है कि 6 राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के बांधों में पानी गंभीर स्तर तक नीचे पहुंच गया है.
आने वाले दिनों में इन राज्यों में जल संकट और गहराने के आसार हैं. इसी के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने हरियाणा में लगातार गिरते भूजल स्तर से निपटने के लिए एक नई योजना की शुरुआत की है. हालांकि केंद्र सरकार ने जिन छह राज्यों में सूखे को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं उनमें हरियाणा का नाम नहीं है.
दरअसल वर्तमान में हरियाणा के 21 क्षेत्र तो डार्क जोन एरिया में हैं, जबकि कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर पानी का दोहन जरुरत से ज्यादा हो रहा है. यहां पर अगर यही आलम रहा तो आने वाले समय में ये क्षेत्र भी डार्क जोन एरिया में तब्दील हो जाएंगे. इसीलिए हरियाणा सरकार ने किसान एवं कल्याण विभाग और सिंचाई विभाग के जरिए इस गिरते भूजल स्तर की वजह जाने का प्रयास किया तो विभागों की रिपोर्ट के बाद ये साफ हो गया है कि प्रदेश में लगातार बढ़ता धान का रकबा भूजल दोहन की सबसे बड़ी वजह है.
इसके बाद राज्य सरकार ने अब किसान एवं कल्याण विभाग और सिंचाई विभाग के साथ मिलकर प्रदेश में पहली बार एक नई योजना तैयार की है. इसकी शुरुआत सरकार 21 में से 7 डार्क जोन एरिया से करेगी.
बता दे कि इस योजना के तहत सरकार 7 डार्क जोन एरिया में कुल धान के रकबे में से 50 हजार हेक्टेयर रकबे में मक्का व दलहन लगवाएगी. हालांकि ऐसा करने के लिए किसानों को मजबूर नहीं किया जाएगा, बल्कि ऐसा करने वाले किसानों को सरकार 4,000 से लेकर 4,500 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देगी, जो कि अलग- अलग तरह से होगा. इस योजना में किसानों को गैर बासमती धान का मोह छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा.
गौरतलब है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 21 मई को चुनाव आयोग की अनुमति के बाद एक प्रेसवार्ता के जरिए इस योजना की जानकारी दी और किसानों से आह्वान किया कि वे इस योजना में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें. इससे न तो उनका मुनाफा कम होगा, बल्कि उनके प्रयासों से प्रदेश का जलस्तर जरूर बढ़ जाएगा.
नई योजना का लक्ष्य (New plan target)
योजना के तहत पहले ब्लाक करनाल के असंध क्षेत्र में 44500 हेक्टेयर धान के रकबे में से 12000 हेक्टेयर एरिया में मक्का व दलहन की खेती करवाने का लक्ष्य रखा गया है. इसी तरह कैथल के पूंडरी में 40000 हेक्टयर धान की खेती किए जाने वाले क्षेत्र में से 11000 हेक्टयर में जींद के नरवाना में 34907 हेक्टेयर धान की खेती किए जाने वाले क्षेत्र में से 7000 हेक्टेयर में, कुरुक्षेत्र के थानेसर में धान की खेती किए जाने वाले क्षेत्र 18200 हेक्टेयर में से 7000 हेक्टेयर में, अंबाला शहर में धान के 25212 हेक्टेयर धान की खेती किए जाने वाले क्षेत्र में से 8000 हेक्टेयर में, यमुनानगर के रादौर में धान के 14000 हेक्टेयर में से 2500 हेक्टेयर व सोनीपत के गन्नौर में धान के 18538 हेक्टेयर में से 2500 हेक्टेयर एरिया में मक्का व दलहन की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा.
खेती बदली तो ये मिलेगा प्रोत्साहन (If agriculture is changed then it will get encouragement)
धान के बजाए यदि कोई किसान मक्का व दलहन की फसल की खेती करता है, तो सरकार उसे प्रति एकड़ 2000 रुपये देगी. 200 रुपये तभी उसके खाते में पहुंच जाएंगे, जब इसके लिए वे कृषि विभाग के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाएगा. फसल की खेती करने के बाद सत्यापन होगी और शेष 1800 तुरंत उसके खाते में पहुंच जाएंगें . 27 मई से यह पोर्टल रजिस्ट्रेशन करने के खोल दिया जाएगा .
ऐसे किसानों को मक्का व दलहन की खेती के लिए हाई क्वालिटी, हाई इल्ड हाईब्रीड बीज जिसकी कीमत बाजार में 1200 से 2000 रुपये प्रति एकड़ होगी सरकार उसे मुफ्त में मुहैया करवाएगी.
मुफ्त में इन फसलों का बीमा होगा यानि इस फसल को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत लाने में किसान के खाते से कटने वाला करीब 766 रुपये का प्रीमियम भी राज्य सरकार ही देगी.
सबसे खास बात यह है कि इस फसल की सरकारी खरीद भी हरियाणा सरकार सुनिश्चित करवाएगी, जिससे किसानों का अच्छा मुनाफा भी सुनिश्चित होगा .
गौरतलब है कि राज्य सरकार की यह योजना देश में अपनी तरह की एक अनोखी होगी. जिसे हरियाणा देश में सबसे पहले लागू कर रहा है. इस योजना के अंतर्गत गैर-बासमती धान के क्षेत्र में मक्का और दाल की फसल की खेती होने से पानी की कुल बचत 0.71 करोड़ सेंटीमीटर यानी लगभग एक लाख लीटर होना अपेक्षित है.
सरकार के इस पहल से पानी और बिजली की बचत के साथ मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. अन्य राज्य भी हरियाणा सरकार की इस पहल से प्रेरणा लेकर अपने राज्य में इस योजना को लागू कर जल का दोहन होने से बचाव कर सकते है. हालांकि इसके लिए सरकार के साथ - साथ किसानों को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना होगा.
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