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Zero Budget Farming: 'जीरो बजट खेती' किसानों के लिए है बेहद लाभदायक, जानिए इसके बारे में सिलसिलेवार तरीके से सबकुछ

जीरो बजट फार्मिंग किसान के अपने पारंपरिक और मूलभूत तरीके है. एक तरह से जीरो बजट फार्मिंग का मतलब है कि किसान जो भी फसल उगाएं उसमें फर्टिलाइजर, कीटनाशकों का इस्तेमाल न हो. इसमें किसान रासायनिक खाद के स्थान पर वह खुद जानवरों के गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं. यह खाद गाय भैंस के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिटटी तथा पानी से बनती है. वह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम और गौमूत्र का इस्तेमाल करते हैं. इससे फसल में रोग नहीं लगता है. जीरो बजट फार्मिंग से किसान ना केवल कर्ज मुक्त होगा बल्कि वो आत्मनिर्भर भी बनेगा.

विवेक कुमार राय
जीरो बजट फार्मिंग
जीरो बजट फार्मिंग

जीरो बजट फार्मिंग किसान के अपने पारंपरिक और मूलभूत तरीके है. एक तरह से जीरो बजट फार्मिंग का मतलब है कि किसान जो भी फसल उगाएं उसमें फर्टिलाइजर, कीटनाशकों का इस्तेमाल न हो. इसमें किसान रासायनिक खाद के स्थान पर वह खुद जानवरों के गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं. यह खाद गाय भैंस के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिटटी तथा पानी से बनती है. वह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम और गौमूत्र का इस्तेमाल करते हैं. इससे फसल में रोग नहीं लगता है. जीरो बजट फार्मिंग से किसान ना केवल कर्ज मुक्त होगा बल्कि वो आत्मनिर्भर भी बनेगा.

जीरो बजट खेती क्या है? (What is Zero Budget Farming?)

जीरो बजट खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है. एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है. इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है.जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है.

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के लगभग 5.23 लाख किसान इस मिशन में जुड़ चुके हैं. जबकि कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और केरल के  भी किसान इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. बाकी राज्य इस मामले में धीरे–धीरे आगे आ रहे हैं. जीरो बजट खेती को बढ़ावा देने के पीछे मोदी सरकार का मदसद यह है कि किसानों को किसी भी फसल को उगाने के लिए किसी तरह का कर्ज न लेना पड़े. इससे किसान कर्ज से मुक्त होगा और आत्मनिर्भर बनेगा. जीरो बजट खेती का उत्पाद महंगा बिकेगा. इससे उसकी आय बढ़ेगी.

किस राज्य में कितने क्षेत्र में प्राकृतिक खेती (In which state, how many areas in natural farming)

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) के तहत आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक 2.03 लाख हेक्टेयर में किसान खेती कर रहे हैं. दूसरे नंबर पर है कर्नाटक जहां 19609 और तीसरे पर हिमाचल प्रदेश है जहां 1512 हेक्टेयर में ऐसी खेती शुरू हुई है. कृषि के जानकारों का कहना है कि आंध्र प्रदेश में इस खेती में किसान दिलचस्पी दिखा रहे हैं तो इसकी वजह भी है. वहां पर इसके प्रमोशन के लिए सरकार ने 280.56 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

जीरो बजट खेती के लिए काम (Work for zero budget farming)

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मोदीपुरम, पंतनगर, लुधियाना और कुरुक्षेत्र में बासमती/मोटे चावल और गेहूं में जीरो बजट प्राकृतिक खेती का मूल्यांकन करने के लिए एक अध्ययन शुरू किया है.

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  • हिमाचल प्रदेश में मई, 2018 से प्राकृतिक खेती खुशहाल किसानयोजना चल रही है.

  • कर्नाटक में बागवानी विश्वविद्यालयों के माध्यम से राज्य के 10 क्षेत्रों में प्रत्येक में 2000 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रायोगिक आधार पर जेडबीएनएफ पर काम शुरू किया गया है.

  • केरल में जेडबीएनएफ के प्रति किसानों में रुचि पैदा करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं.

English Summary: Zero budget farming: natural farming is very beneficial for farmers, know everything about it in a sequential manner Published on: 12 December 2019, 12:49 PM IST

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