ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशी या कवकनाशी है जो मिट्टी में पाये जाने वाले कई प्रकार के हानिकारक कवकों या फफूंद को नष्ट करता है. फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, आर्द्र गलन जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है. यह जैविक फफूंदनाशी सभी प्रकार की फसलों में बीज उपचार के लिए, मिट्टी उपचार के लिए, जड़ो का उपचार के लिए तथा ड्रेंचिंग के लिए उपयोग किया जाता है.यह विभिन्न फसलों जैसे कपास, चना, जीरा, सब्जीवर्गीय फसलें, दलहनी फसलों में उपयोग किया जा सकता है.
ट्राइकोडर्मा को कैसे उपयोग करें
यह जैविक फफूंदनाशी बीज उपचार, मिट्टी उपचार तथा खड़ी फसल में किसी भी अवस्था में किया जा सकता है.
बीज उपचार: बीज उपचार के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा एक प्रति किलो दर से बीज उपचार किया जाता है. इसके लिए पानी में गुड मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें. इस घोल को ठंडा होने के पश्चात इसमें ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला दे. उसके बाद बीज को भी इस गाढ़ें घोल में मिलाकर पतली परत चढ़ा लें. इससे लगभग सभी प्रकार की बीजजनित रोगों की रोकथाम के लिए प्रयोग किया जाता है.
जड़ उपचार: जड़ो के उपचार के लिए 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करें फिर इसमें 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनो का मिश्रण तैयार कर लें अब इस मिश्रण में पौध की जड़ो को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं.या खड्डी फसल में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के आस पास ये घोल दिया जा सकता है. इससे पौधे को उकटा, जड़ सड़न, आद्र गलन जैसे रोगों से छुटकारा मिल जाता है.
मिट्टी उपचार: मिट्टी उपचार के लिए 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 4 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिलाया जा सकता है. इससे मिट्टी में उपस्थित उकटा, जड़ सड़न और विभिन्न प्रकार की अलग अलग फफूंद के विरुद्ध कारगर उपचार माना गया है.टाइकोडर्मा मित्र फफूंदनाशी को किसी भी रसायनिक फफूंदनाशी के साथ नही मिलाना चाहिए तथा टाइकोडर्मा मित्र फफूंदनाशी के 10 दिन बाद या पहले रसायनिक फफूंदनाशी का प्रयोग नही करें अन्यथा टाइकोडर्मा का असर खत्म हो जाएगा. क्योंकि टाइकोडर्मा स्वयं एक फफूंदनाशी है.
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