गेहूं की फसल में सिंचाई एक प्रमुख कारक है, जिसके कारण पैदावार पर असर पड़ता है. पैदावार कम होने की एक वजह सिंचाई का समय पर या गलत ढंग से सिंचाई करना है. भारत में 60% गेहूं की खेती सिंचित क्षेत्र में की जाती है.
फसल को पानी देना अतिआवश्यक है, क्योंकि यह फसल को बढ़वार के साथ जमीन में पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है जिससे पौधे ग्रहण कर पाते हैं. पोषक तत्वों के अवशोषण और पौधों के हर हिस्से में उन्हें पहुंचाने में जल जरूरी होता है. इसलिए जरूरत के अनुसार और सही समय पर सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है. सिंचाई के लिए खेत को छोटी-छोटी आयताकार क्यारियों में बांट लिया जाता है. इस विधि से सिंचाई करने के लिए खेतों की काफी लंबी और कम चौड़ी क्यारियों में बांट लिया जाता है. क्यारियों की चौड़ाई 8 से 10 मीटर और लंबाई 50 से 200 मीटर तक हो सकती है.
गेहूं की फसल में कितनी सिंचाई करें (How much irrigation should be done in wheat crop)
गेहूं फसल में सिंचाई की संख्या रबी समय पर वर्षा होने पर भी निर्भर करता है, फिर भी अच्छी फसल लेने के लिए लगभग 40 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है. गेहूं फसल की जल मांग के लिए साधारणत: लगभग 4 से 6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है लेकिन रेतीली जमीन 6 से 8 सिंचाई की जानी चाहिए. मटियार या भारी मिट्टी में तीन से चार सिंचाई ही काफी होती है.
मिट्टी में जल की मात्रा का किस विधि से पता करें (How to find the amount of water in the soil)
मिट्टी में उपलब्ध जल ही पौधों को के काम आता है. मिट्टी में जल की मात्रा के आधार पर सिंचाई करने के लिए सरल और वैज्ञानिक विधियां भी अपनाई जा सकती है. पृष्ठ तनाव मापी (टेंशियोमीटर) और जिप्सम ब्लॉक विधि द्वारा मिट्टी में नमी की मात्रा का पता लगाया जा सकता है.
पृष्ठ तनाव मापी से इस बात का पता या पता लगता है कि जल मिट्टी के कणों से कितने बल से जुड़ा है. यह बल ऋनात्मक बल या तनाव कहलाता है. जैसे-जैसे जमीन में पानी की मात्रा घटती है तनाव बढ़ता है. गेहूं की फसल में अधिकतम पैदावार के लिए 0.5 बार रीडिंग पर सिंचाई करनी चाहिए.
जलवायु के आधार पर सिंचाई (Climate based Irrigation)
फसल द्वारा वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन क्रिया से जल का उड़ना वहां सूर्य प्रकाश की मात्रा, तापमान, आपेक्षिक आद्रता और वायु की गति पर निर्भर करता है. फसल द्वारा उपयोग किए गए जल और उस अवधि में वाष्पन (जल का उड़ जाना) के बीच एक खास संबंध है. गेहूं में सिंचाई इस तरह की जानी चाहिए कि सिंचाई द्वारा दिया गया पानी कुल वाष्पन का 90% हो.
सीधे तौर पर 6 सेंटीमीटर पानी सिंचाई से तब देना चाहिए जब वाष्पन 6.7 सेंटीमीटर हो जाए. गेहूं की सभी अवस्थाओं में एक यही आधार लिया जा सकता है. वाष्पन मालूम करने का एक सरल उपाय है जो सस्ते उपकरण द्वारा नापा जा सकता है. जिसे पैन वाष्पन मापी कहते हैं. यदि पहली सिंचाई मुख्य जड़ विकास (CRI stage) शुरू होने पर कर दें तो उसके बाद सिंचाई अथवा वाष्पन के अनुसार सफलतापूर्वक कर सकते हैं. यह सीआरआई स्टेज गेहूं की बुवाई के 21 दिन बाद आता है.
फसल अवस्था के आधार पर सिंचाई (Irrigation based on crop stage)
गेहूं में मुख्य जड़ बनते (CRI स्टेज) समय सिंचाई नहीं करने से सबसे ज्यादा नुकसान होता है. जिन क्षेत्रों में सिंचाई के लिए कम पानी दिया जाता है वहाँ जल जड़ों की गहराई तक नहीं पहुँच पाता और इसके विपरीत नहरी क्षेत्रों में या सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में किसान अधिक गहरी सिंचाई करते हैं, क्योंकि वहाँ अगली सिंचाई कब उपलब्ध होगी यह निश्चित नहीं होता, जिससे आवश्यकता से अधिक पानी दे दिया जाता है, जिससे पोषक तत्व जमीन में जड़ क्षेत्र से अधिक गहराई में बह जाते है. जो पौधों को उपलब्ध नहीं होते.
गेहूं की फसल में 6 क्रांतिक अवस्थाओं में सिंचाई जरूर करनी चाहिए जिससे पैदावार अधिक मिल सके. पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद मुख्य जड़ बनते समय (Crown Root Initiation) करनी चाहिए. इस समय गेहूं को सिंचाई की अति आवश्यकता होती है.
इस समय सिंचाई नहीं करने पर बहुत अधिक नुकसान होता है. दूसरी सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद कल्लों के विकास के समय, तीसरी सिंचाई तने में गांठ पड़ते समय (65-70 दिन), चौथी सिंचाई फूल आते समय (90-95 दिन), पाँचवी सिंचाई दानों में दूध पड़ते समय (105-110) और अंतिम सिंचाई बुवाई के 120-125 दिनों में जब दाना सख्त हो रहा हो, करनी चाहिए.
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