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जानिए गेहूं की फसल में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम का तरीका

गेहूं की फसल का पैदावार कितना होगा वो सबकुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करता है. गेहूं में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है. खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूं की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है. इसके अलावा गेहूं के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते है. यदि इन पर नियंत्रण नही किया गया तो गेहूं की उपज मे 10-40 प्रतिशत तक हानि संभावित है.

विवेक कुमार राय
wheat
Wheat

गेहूं की फसल का पैदावार कितना होगा वो सबकुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करता है. गेहूं में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है. खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूं की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है. इसके अलावा गेहूं के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते है. 

यदि इन पर नियंत्रण नही किया गया तो गेहूं की उपज मे 10-40 प्रतिशत तक हानि संभावित है. बुवाई से 30-40 दिन तक का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक क्रांतिक रहता है. गेहूं की फसल में रतुवा, कंडुवा औप मोल्या रोग प्रमुख माने जाते हैं. इसके अलावा गेहूं में लगने वाली खरपतवार भी रासायनिक विधि से रोकी जा सकती है. साथ ही गेहूं की सिंचाई में फव्वारा पद्धति अपनाकर 40 फीसदी तक पानी की बचत कर सकते हैं.

रोगों से पौधों का संरक्षण (Protection of plants from diseases)

गेहूं को 3 तरह के रोग रतवा, कंडुवा और मोल्या रोग लगते हैं. इनके उपचार की अलग-अलग विधियां हैं-

 

रतुवा रोग (Rheumatic disease)

यह 3 प्रकार के होते हैं. इनमें पीला, भूरा और काला रतुवा रोग शामिल है. मैदानी भागों में पीला व भूरा रतुवा हानि पहुंचाते हैं.

बचाव के उपाय

बुवाई के लिए गेहूं की नवीनतम रतुवारोधी किस्में जैसे राज. 3077, राज. 3785, राज. 3777, राज. 4083, राज. 4120 और राज.4079 आदि का चयन करें.

कंडुवा रोग (Congestive disease)

गेहूं की फसल को कवकजनित पत्ती कंडवा एवं अनावृत कंडवा रोगों से काफी नुकसान होता है. कंडवा रोग से गेहूं के उत्पादन में 40 से 80 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है. अनावृत कंडवा रोग संक्रमित बीज एवं मृदा से हो सकता है.

बचाव के उपाय

इन दोनों का उपचार बीजोपचार से ही संभव है. बीजोपचार के लिए कवकनाशक रसायन टेबूकोनाजोल 2 डीएस 1.25 ग्राम या कार्बोक्सिलिक 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से प्रयोग में लेना चाहिए.

मोल्या रोग (Molytic disease)

यह गेहूं की फसल को काफी हद तक प्रभावित करता है.

बचाव के उपाय

मोल्याग्रसित क्षेत्र में बुवाई के लिए मोल्यारोधी किस्म आर.एम.आर-1 काम में लेनी चाहिए. ऐसे खेत में 2-3 वर्ष तक गेहूं की फसल नहीं लेनी चाहिए. इसके लिए फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए, जिसमें चना, सरसों, प्याज, मेथी, सूरजमुखी या गाजर बोये जा सकते हैं. गर्मी के दौरान गहरी जुताई करें, ताकि रोग जनक जीवाणु खत्म हो जाएं.

दीमक से बचाव के उपाय (Termite prevention) 

दीमक नियंत्रण के लिए कीटनाशक उपचार 6 मि.ली. फिप्रोनिल 5 एस.सी. अथवा 1.5 ग्राम क्लोथियानिडिन 50 डब्ल्यू डी जी. दवा से प्रति किलो बीज दर से करें. अन्तिम बीजोपचार एजोटोबेक्टर जीवाणु कल्चर से करें. एक हैक्टेयर के बीज के लिए 3 पैकेट कल्चर काम में लें. दीमक की रोकथाम लिए क्लोरोपायरीफोस 20 ई.सी. 4 लीटर प्रति हैक्टेयर सिंचाई के साथ दें.

खरपतवार नियंत्रण (weed control)

गेहूं की फसल में प्रथम सिंचाई के 10-20 दिन के अन्दर निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देना चाहिए. नुकसान पहुंचाने वालों में चौड़ी पत्ती की खरपतवार में बथुआ, खरथुआ, हिरनखुरी, सत्यानाशी, कृष्णनील, कटेली चोलाई, जंगलीपालक इत्यादि तथा संकरी पत्ती खरपतवार में गेहूंसा, जंगली जेई एवं मौथा प्रमुख है.

English Summary: wheat crop prevention: Know the diseases of wheat crop and their prevention Published on: 19 December 2019, 03:42 PM IST

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