वर्तमान में लोगों को दिल से जुड़ी समस्याएं बढ़ गई हैं. आए दिन लोग हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं. बड़ी बात ये है कि कई लोग हार्ट अटैक से कुछ ही पल में अपनी जान गवां रहे हैं. ऐसे में अब लोगों को अपने हार्ट की चिंता बढ़ गई है. इसलिए आपको एक ऐसे पेड़ की जानकारी दे रहे हैं जो हार्ट से जुड़ी समस्याओं के लिए किसी रामबाण से कम नहीं है. हम बात कर रहे हैं अर्जुन के पेड़ की जो एक मुख्य औषधीय पौधा है. आयुर्वेद में अर्जुन की छाल का मुख्य रूप से काढ़े के तौर पर इस्तेमाल होता है. जो बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने और गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने में कारगर होता है, साथ ही भीतरी गुम चोट, हड्डी टूटने, अल्सर हाइपरटेंशन और लीवर सम्बन्धी रोगों के लिए भी छाल से बना काढ़ा और चूर्ण लाभकारी होता है. इतना ही नहीं छाल की राख बिच्छू के डंक के जहर के असर को खत्म करने में लाभकारी है. वहीं इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर आदि बनाने में होता है. औषधीय गुण और व्यापारिक इस्तेमाल की वजह से खेती फायदेमंद होती है.
जलवायु- अर्जुन के पेड़ के लिए नम और ठंडी जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है. अधिकतम बारिश 380 सेमी. वाले क्षेत्र में इसका पेड़ अच्छी बढ़ोतरी करता है. प्राकृतिक विस्तार वाले क्षेत्रों का अधिकतम तापमान 35-47.5 डिग्री और ठण्ड के दिनों में शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान होना चाहिए. हालांकि पाले से पौधों के विकास पर असर पड़ता है.
मिट्टी का चयन- अर्जुन का पेड़ किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगा सकते हैं. हालांकि उपजाऊ जलोढ़-कछारी, बलुई दोमट मिट्टी में पौधे अच्छी गति में विकास करते हैं जबकि पूरी तरह से शुष्क भूमि पर पौधे अच्छी तरह स्थापित ही नहीं हो पाते हैं.
बीजोपचार- अर्जुन के बीजों के जल्दी और उत्तम अंकुरण के लिए बुवाई से पहले उपचारित करना जरूरी होता है. इसके लिए बीजों को उबलते हुए पानी में डालना चाहिए, फिर इसी पानी में ठंडे होने की स्थिति तक पड़े रहने देना चाहिए. इसके बाद 3- 4 दिन तक भिगोये रखना होता है. इस तरह उपचारित बीजों में अंकुरण 8-9 दिन में होता है, इनका अंकुरण 90 से 92 फीसदी होने की संभावना रहती है.
खेत की तैयारी- पौधशाला में तैयार पौधों को वर्षा ऋतु से पहले रोपना चाहिए, इसके लिए एक महीने पहले रोपण के लिए जरूरत के हिसाब से या 5-4x4-3 मीटर की दूरी पर एक घन फीट आकर के गड्ढे जून में खोदना चाहिए जिसमें गोबर की खाद और मिट्टी बराबर में मिलाकर भरना चाहिए और फिर पानी डालना चाहिए ताकी मिट्टी बैठ जाए.
बुवाई- बीजों की बुवाई पंक्ति में 4-4 मीटर की दूरी पर करना चाहिए क्योंकि अंकुरण के बाद लाइनों में पौधे के बीच की दूरी 3- 3.5 मीटर रखी जाती है. अर्जुन की स्वस्थ और अच्छी पौध तैयार करने के लिए पौधशाला में उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए. क्यारियों को अच्छी तरह से जुताई करके गोबर की सड़ी खाद मिलाकर तैयार करना चाहिए. बीजों की बुवाई अप्रैल से मई में 1-1 फीट की दूरी पर पंक्ति में 5-5 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए.
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उपज- जानकारी के मुताबिक एक अर्जुन का पेड़ 15- 16 साल में तैयार होता है, जिसकी लम्बाई 11-12 मीटर और मोटाई 59-89 सेमी तक हो जाती है.
(इसको स्वास्थ्य संबंधी इस्तेमाल से पहले चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें)
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