ताड़गोला (Tadgola) एक ऐसा अनोखा फल है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं, लेकिन जो इस गुणकारी फल को खाते हैं, वो कभी इसका स्वाद भूल नहीं पाते हैं. हालांकि, इसे आइस एप्पल (Ice Apple) के नाम से भी जाना जाता है जो इस बीच सोशल मीडिया पर तेज़ी से सुर्खियां बटोर रहा है. ऐसे में बहुत लोगों के मन में यह इच्छा जग रही है कि यह उगता कैसा है, इसलिए आज हम आपको इसके उगने का अनोखा तरीका बताने वाले हैं.
ताड़गोला की ख़ासियत और खेती (Tadgola Farming in India)
नारियल जैसा दिखने वाला Tadgola फल गोवा, कोंकण, चेन्नई सहित दक्षिण भारत में उगाया जाता है. ख़ासकर उड़ीसा और तमिलनाडु के किसान इसकी खपत को देखते हुए बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती करते हैं, जिससे उन्हें तगड़ा मुनाफा होता है.
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक ताड़ के पेड़ पर 250 ताड़गोले इकट्ठे किए जा सकते हैं और करीब 5000 लोगों की आजीविका का यह एकमात्र और मुख्य साधन है. इसको स्थानीय भाषा में तालसाजा और नुंगू भी कहते हैं.
बता दें कि ताड़गोला एक सफ़ेद जेली जैसा दिखाई देता है, जो खाने में हल्का मीठा होता है. इसमें पोषक के साथ पानी की भरपूर मात्रा पाई जाती है, इसलिए इसको गर्मियों में अधिक खाया जाता है, ताकि शरीर हाइड्रेट रहे. साथ ही यह आपके इम्यून सिस्टम को भी दुरुस्त रखता है.
तड़गोला के पोषक तत्व और खनिज (Nutrients And Minerals in Targola)
इसमें कैलोरी, फैट, सोडियम, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, शुगर, प्रोटीन, पोटैशियम, कॉपर, विटामिन बी6 और जिंक प्रचूर मात्रा में पाया जाता है.
ताड़ की खेती के लिए जलवायु की आवश्यकता (Climate Requirement for Palm Tree Cultivation)
- ताड़ एक आर्द्र उष्णकटिबंधीय (Humid Tropical) फसल है और उन क्षेत्रों में सबसे अच्छी तरह से उगती है जहां तापमान 22 डिग्री सेल्सियस से 24 डिग्री सेल्सियस और 20 डिग्री सेल्सियस से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है.
- इस फसल को 2500 से 4000 मिमी या 150 से 150 मिमी हर महीने वर्षा की आवश्यकता होती है.
ताड़ की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता (Soil Requirement for Palm Tree Cultivation)
- आमतौर पर Tad Ki Kheti को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अच्छी तरह से सुखी गहरी दोमट और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर जलोढ़ मिट्टी में सबसे अच्छा उगती हैं.
- इन पेड़ों को कम से कम 1 मीटर मिट्टी की गहराई की आवश्यकता होती है.
- इसकी खेती के लिए किसानों को अत्यधिक खारा, अत्यधिक क्षारीय, तटीय रेतीली और पानी की स्थिर मिट्टी से बचना चाहिए.
ताड़ की खेती में भूमि की तैयारी, दूरी और रोपण (Land preparation, Spacing and Planting in Palm Oil Cultivation)
- Tad Ki Kheti के लिए भूमि को खरपतवार मुक्त बनाया जाना चाहिए और मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरी बनाने के लिए दो बार जुताई करनी चाहिए.
- मिट्टी को समृद्ध क्षेत्र बनाने के लिए खेत को अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ पूरक करें.
- त्रिकोणीय रोपण विधि (Triangular Planting Method) के मुताबिक, इसको 9 मीटर x 9 मीटर x 9 मीटर की दूरी के साथ लगाना चाहिए.
- साथ ही 1 हेक्टेयर भूमि में 143 से 145 ताड़ के पौधे लगाए जा सकते हैं.
- रोपण गड्ढों में 60 सेमी x 60 सेमी x 60 सेमी के आकार के साथ किया जाना चाहिए.
ताड़ की खेती में कीट और रोग (Pests and Diseases in Oil Palm Cultivation)
ताड़ की खेती में पाए जाने वाले सामान्य कीट और रोगों में पेस्टलोटिप्सिस लीफ स्पॉट, गैनोडर्मा बट रोट, बैक्टीरियल बड रोट, पाम विल्ट, गैंडा बीटल और मीली बग शामिल हैं. इन कीटों और रोगों के लिए निकटतम कृषि विभाग से संपर्क करके उचित नियंत्रण के उपाय किए जाने चाहिए.
तड़गोला के औषधीय गुण (Medicinal Properties of Targola)
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसके कई औषधीय गुण भी होते हैं. ताड़गोला आपके पित्त को बाहर निकालने और वीर्य की संख्या को बढ़ाता है. साथ ही यह खून को साफ रखने और इससे संबंधित समस्याओं पर काबू पा सकता है.
तड़गोला के अन्य फायदे (Benefits of Targola)
- भोजन ना पचा पाने के कारण लोगों को अक्सर डकार आने की समस्या हो जाती है. इस फल के पानी से लोगों में डकार की समस्या को दूर किया जाता है. इसके साथ यह जी मिचलाना और उल्टी जैसी समस्याओं को भी कुछ हद तक कम कर देता है.
- ताड़गोला पेट के रोगों को दूर रखने में भी सहायक है. इसको दिन में दो बार गुड़ के साथ खाने से पेट के रोग दूर हो जाते हैं और डाइजेशन अच्छा भी बना रहता है. ध्यान रहे कि आप इसका सही मात्रा में भी सेवन करें, क्योंकि अधिक सेवन आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है.
- इसके पत्तों का रस सूजन कम करने में दवाई का काफी अच्छा विकल्प माना जाता है. इसके अलावा, आप सूजन में इसका रस का सेवन भी कर सकते हैं जो आपको अंदरूनी फायदा भी देगा.
- आइस एप्पल में कुछ अनोखे औषधीय गुण मौजूद होते हैं, जिनसे मानसिक समस्याओं को कम किया जा सकता है. इसके रस के सेवन से आप अवसाद और बेहोशी जैसी समस्या पर काबू पा सकते हैं.
- टाइफाइड जैसे गंभीर बुखार को कम करने में यह काफी मदद करता है. दिन में इसका दो बार सेवन करने से बुखार का तापमान नियंत्रित हो जाता है.
तड़गोला के नुकसान (Tadgola Side Effects)
- अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में दर्द और ऐंठन हो सकती है.
- स्तनपान कराने वाली और गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
- जिन लोगों की पाचन शक्ति कमजोर होती है उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
- जिन लोगों को इस फल का सेवन करने के बाद एलर्जी की समस्या होती है, उन्हें इनसे बचना चाहिए.
ताड़ी रस (Neera/Tadi Juice)
ताड़गोला से निकले रस ताड़ी व नीरा नाम से भी जाना जाता है. यह एक ग्रीष्मकालीन पेय है जो मधुमेह, यकृत, गुर्दे या हृदय की समस्याओं पर निजात पा लेता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नीरा सुबह के तड़के पेड़ के रस से एकत्र किया गया पेय है जिसे सूर्योदय के समय ही पिया जाता है. क्योंकि यह इस समय शुद्ध होता है और सूर्यास्त के समय नशा में तब्दील हो जाता है.
रस एक, फायदे अनेक (Opportunity for Startups)
जिन लोगों ने कृषि क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में चुना है व इसमें अपना स्टार्टअप करना चाहते हैं उनके लिए ताड़गोले का फल एक बेहतर मौका लेकर आया है. दरअसल, ज्यादातर लोग ऐसी मॉर्निंग ड्रिंक की तलाश करते है जिसके कई फायदे हों, ऐसे में आप ताड़गोले के रस की प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और पैकेजिंग (Neera Processing, Marketing and Packaging) से अपनी आय में अत्यधिक बढ़ोतरी कर सकते हैं. हालांकि, इसकी खेती में मजदूरों की जरूरत होती है जो इसमें सबसे बड़ा चैलेंज है लेकिन आने वाले समय में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इसकी लोकप्रियता चीते की तरह रफ़्तार पकड़ सकती है.
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