मटर की फसल के ये प्रमुख रोग है. जिसकी वजह से पैदावार में भारी कमी आती है, अतः इसकी पहचान और उपाय जानने आवश्यक है.
चूर्णिल आसिता या छछिया रोग के लक्षण:
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सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफ़ेद-धूसर धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़कर सफ़ेद रंग के पाउडर में बदल जाते हैं.
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ये फफूंद पौधे से पोषक तत्वों को खींच लेती है और प्रकाश संश्लेषण में बाधा डालती है जिससे पौधे का विकास रूक जाता है.
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रोग की वृद्धि के साथ संक्रमित भाग सूख जाता है और पत्तियां गिर जाती है.
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पत्तियों और अन्य हरे भागों पर सफेद चूर्ण दिखाई देती हैं जो बाद में हल्के रंग के सफेद धब्बेदार क्षेत्र हो जाते हैं.
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ये धब्बे धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं और निचली सतह को भी कवर करते हुए गोलाकार हो जाते हैं.
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गंभीर संक्रमण में, पर्णसमूह पीला हो जाता है जिससे समय से पहले पत्तियाँ झड़ जाती है.
बचाव के कारगर उपाय:
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रोग की रोकथाम के लिए प्रति 500 ग्राम घुलनशील सल्फर या थिओफिनेट मिथाइल 75 WP 300 ग्राम या प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.
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पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23 SC का 200 मिली प्रति एकड़ 200 पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
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जैविक उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 250 ग्राम/एकड़ + सूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें.
मृदोमिल आसिता या डाउनी मिलड्यू के लक्षण:
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पत्तियों के ऊपरी सतह पर पीले रंग के छितराये धब्बे दिखाई देते है.
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ये भूरे रंग के धब्बे गहरे और अनियमित हो जाते है तथा पूरी पत्ती को ढक देता है.
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इन धब्बों के नीचे की तरफ सफ़ेद से भूरे रंग की रुई जैसी फफूंद की बढ़वार साफ़ देखी जा सकती है.
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रोग संक्रमित पौधों में जल्दी परिपक्वता आ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उपज में भारी नुकसान होता है.
बचाव के कारगर उपाय:
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जैविक उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 250 ग्राम/एकड़ + सूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें.
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क्लोरोथलोनिल 75% WP की 400 ग्राम या एजेस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 3% SC @ 300 मिली या टेबूकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें.
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